जम्मू कश्मीर: कारगिल विजय दिवस समारोह में राजनाथ सिंह का संबोधन
जम्मू-कश्मीर, भारत। कारगिल विजय, भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम का गौरवपूर्ण अध्याय है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने जम्मू में कारगिल विजय दिवस समारोह में हिस्सा लिया।
आजादी के बाद भारत को पांच युद्ध लड़ने पड़े है :
इस दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कारगिल विजय दिवस समारोह में कहा- भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करने के लिए भारतीय सेना और सुरक्षा बलों ने जो बलिदान दिया है उसकी जितनी भी चर्चा की जाये कम है। मैं उनके माता पिता को भी शीश झुका कर नमन करता हूँ जिन्होंने ऐसे बहादुरों को जन्म दिया है। आजादी के बाद भारत को पांच युद्ध लड़ने पड़े है जिनमें 1948 का हमला, 1962 का चीन के साथ युद्ध उसके बाद 1965 और 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध और सबसे आखिर में 1999 में हुआ कारगिल युद्ध, जो कि एक Full Scale War न होकर पाकिस्तान के साथ लड़ा गया एक Limited War था।
इन पांचों युद्धों में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का यह पूरा इलाका 'Main War Theatre' रहा है। आजादी के बाद से ही, इस पूरे इलाके पर देश के दुश्मनों की गिद्ध दृष्टि लगी रही है, मगर भारतीय सेनाओं ने अद्भुत पराक्रम और बलिदान का परिचय देते हुए हर बार दुश्मनों के मंसूबों को नाकाम किया है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह
यहीं जम्मू क्षेत्र का एक जिला है राजौरी जहां एक छोटी सी जगह है, झंगड़। इस झंगड़ पर 1948 में कबाइलियों ने कब्जा कर लिया था और उसे मुक्त कराने की जिम्मेदारी जिस बहादुर फौजी अफसर डाली गई थी, उनका नाम था ब्रिगेडियर उस्मान।
जब झंगड़ हाथ से निकला था तो ब्रिगेडियर उस्मान ने संकल्प लिया था कि जब तक झंगड़ पर पुन: भारत का झण्डा नहीं लहराएगा तब तक वे किसी पलंग पर नहीं सोएंगे। जैसे महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की आजादी को लेकर संकल्प किया था, वैसा ही कुछ संकल्प ब्रिगेडियर उस्मान ने भी किया था।
झंगड़ पर पुन: कब्जा करने के अभियान का नाम था ‘आपरेशन विजय’ जिसे आने वाले दिनों में भारतीय सेनाओं ने दोहराया है। मार्च 1948 में झंगड़ पर कब्जा करने के बाद उन्हें वीरगति प्राप्त हो गई। अपनी बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र दिया गया।
ब्रिगेडियर उस्मान को आज आजादी अमृत महोत्सव में बार-बार याद करने की जरूरत है। 1948 के युद्ध में इसी तरह मेजर सोमनाथ शर्मा का बलिदान भी स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा।मेजर सोमनाथ शर्मा ने बहादुरी और बलिदान से जम्मू और कश्मीर को दुश्मनों के हाथों में जाने से बचाया।
1948 में पहली बार भारतीय सेना ने पाकिस्तान के नापाक इरादों को नाकाम किया और आज जो जम्मू और कश्मीर का जो स्वरूप हम देख रहे है उसे बनाने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है।
रिजांग-ला की लड़ाई, भारत ही नहीं विश्व के सैन्य इतिहास की कठिन लड़ाइयों में से एक है। मैं याद करना चाहूंगा मेजर शैतान सिंह और उनके साथ लड़े 120 बहादुर सैनिकों को, जिन्होंने रिजांग-ला में अपने से दस गुना से अधिक संख्या में चीनी सैनिकों का डट कर मुक़ाबला किया।
1971 मे जिस Decisive तरीके से भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान की फौज को हराया और अपनी 'Conventional Superority' पूरी तरह स्थापित कर दी वह अपने आप में बेमिसाल है। करीब 91 हजार से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया और उनके दो टुकड़े हो गये।
1965 और 1971 की लड़ाई में बुरी तरह परास्त होने के बाद पाकिस्तान ने Direct War का रास्ता छोड़ कर Proxy War का रास्ता पकड़ा। लगभग दो दशकों से भी अधिक समय तक पाकिस्तान ने भारत को ‘प्राक्सी वार’ में उलझाए रखा और वे सोचते थे कि We can bleed India by Thousand Cuts: रक्षा मंत्री
कारगिल युद्ध में हमारी तीनों सेनाओं के बीच jointness का भी एक बड़ा उदाहरण देखने को मिला। थलसेना के support में Indian Air Force ने ऑपरेशन 'सफेद सागर' चलाया, तो हमारी Navy ने भी अरब सागर में कराची तक पहुंचने वाले Sea routes को अवरुद्ध करने में अपनी बड़ी भूमिका निभाई।
आज हमारा देश आत्मनिर्भर भारत के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है। हमने तय किया है कि Make In India और Make for the World। आज हालात बदल गए हैं पहले भारत केवल Defence Importer के रूप में जाना जाता था। आज भारत की गिनती दुनिया के टाप 25 Defence Exporters के रूप में होती है।
कारगिल युद्ध में अनेक ऐसी शौर्य गाथाएं है जिनका स्मरण करके हर भारतवासी रोमांच और गौरव के भाव से भर उठता है। कैप्टन विक्रम बतरा ने कहा था कि जीत गया तो तिरंगा लहराऊंगा, अगर हार गया तो तिरंगे में लिपट कर आऊंगा पर आउंगा जरूर उन्होंने भारत के लिये लड़ते हुए अपना बलिदान कर दिया।
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