देश के पहले दक्षिण भारतीय प्रधानमंत्री बने थे पीवी नरसिम्हाराव, जानिए कैसा था उनका सफर?
राज एक्सप्रेस। आज भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और दिवंगत राजनेता पीवी नरसिम्हाराव की जन्म जयंती है। उनका जन्म आज ही के दिन यानि 28 जून 1921 को तेलंगाना में हुआ था। वे हैदराबाद में वंदे मातरम आंदोलन का हिस्सा भी बने और कांग्रेस के विभाजन के भी साक्षी रहे। उन्होंने राजनीति से दूर होकर अपने गांव जाने की तैयारी भी की और फिर पलटकर देश के प्रधानमंत्री भी बने। पीवी नरसिम्हाराव हमेशा से ऐसी शख्सियत रहे जिनकी चर्चाएं हर और रहती थीं। आज उनकी जयंती के अवसर पर चलिए जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ ऐसी बातें जिनसे आप भी अंजान होंगे।
वंदेमातरम आंदोलन का हिस्सा
एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे नरसिम्हाराव शुरुआत से ही आजादी की लड़ाई में मशगूल रहे। उन्होंने साल 1930 के अंत में हैदराबाद में शुरू हुए वंदेमातरम आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। इसके उपरांत वे एक स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर आगे आए, और फिर देखते ही देखते पूरी तरह से आजादी अभियान में जुड़ गए। इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए नरसिम्हाराव कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए और कुशल राजनेता बनने की राह पर चल पड़े। एक स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता होने के साथ ही उनकी पहचान कई भाषाओँ के विद्वान, वकील, अर्थशास्त्री आदि रूप में की जाती थी।
कैसे बने प्रधान सेवक?
पीवी नरसिम्हाराव ने कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद साल 1969 के दौरान जब पार्टी का विभाजन हुआ तो इंदिरा गांधी का समर्थन किया। इसके बाद वे साल 1970 के दूरं आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर उस वक्त चर्चा में आए जब उन्होंने पिछड़ी जाति लोगों को आरक्षण दिया। इसके बाद वे देश में कई बड़े पदों पर रहे। हालांकि साल 1991 के दौरान जब वे कांग्रेस के युवाओं को मौका देने के लिए राजनीति से दूर होने लगे। तब ही उन्हें देश का प्रधानमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ। पीवी नरसिम्हाराव दक्षिण भारत के पहले प्रधानमंत्री बने और देश की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया।
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