असम के तामुलपुर में बोडो साहित्य सभा के 61वें वार्षिक सम्मेलन को राष्‍ट्रपति ने किया संबोधित

असम के तामुलपुर में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि, ''बोडो समाज के लोगों से मेरा पुराना परिचय रहा है। मेरे लिए बोडो संस्कृति और भाषा से संपर्क कोई नई बात नहीं है।''
बोडो साहित्य सभा के 61वें वार्षिक सम्मेलन को राष्‍ट्रपति ने किया संबोधित
बोडो साहित्य सभा के 61वें वार्षिक सम्मेलन को राष्‍ट्रपति ने किया संबोधितSocial Media
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असम, भारत। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद आज बुधवार को असम दौरे पर है, इस दौरान उन्‍होंने असम के तामुलपुर में बोडो साहित्य सभा के 61वें वार्षिक सम्मेलन में भाग लिया और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने असम के तामुलपुर में बोडो साहित्य सभा के 61वें वार्षिक सम्मेलन को संबोधित भी किया।

बोडो साहित्य सभा के 61वें वार्षिक सम्मेलन को किया संबोधित :

असम के तामुलपुर में बोडो साहित्य सभा के 61वें वार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति कोविंद ने अपने संबोधन में कहा- बोडो भाषा, साहित्य तथा संस्कृति के उत्थान हेतु लगभग 70 वर्षों से अमूल्य योगदान देने के लिए बोडो साहित्य सभा का प्रयास उल्लेखनीय है। बोडो भाषा और साहित्य को आगे बढ़ाने वाले महानुभावों का इतिहास बहुत प्रेरणादायक है।

मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि, अनेक महिलाएं बोडो साहित्य की विभिन्न विधाओं में साहित्य सृजन कर रही हैं। मैं चाहता हूं कि, महिला रचनाकारों को राष्ट्रीय स्तर पर और अधिक मान्यता प्राप्त हो।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद

बोडो समाज के लोगों से मेरा पुराना परिचय रहा है :

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने संबोधन के दौरान आगे यह भी कहा कि, ''बोडो समाज के लोगों से मेरा पुराना परिचय रहा है। मेरे लिए बोडो संस्कृति और भाषा से संपर्क कोई नई बात नहीं है।''

  • बोडो भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने हेतु संविधान संशोधन वर्ष 2003 में हुआ और उसकी घोषणा जनवरी 2004 में की गई। उस समय भारत-रत्न श्रद्धेय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी देश के प्रधानमंत्री थे।

  • केंद्र सरकार और पूर्वोत्तर के राज्यों की सरकारों के संयुक्त प्रयासों से इस क्षेत्र में सौहार्द और शांति का वातावरण और मजबूत बनता जा रहा है। इस परिवर्तन के लिए मैं केंद्र सरकार, राज्य सरकार तथा बोडो क्षेत्र के सभी भाइयों और बहनों को बधाई देता हूं।

बता दें कि, बोडो साहित्‍य सभा की स्‍थापना 1952 में हुई थी और यह साहित्‍य, संस्‍कृति और भाषा के विकास के लिए काम कर रही है।

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