चाइना वायरस से पंजाब के 14 जिलों में धान की फसल प्रभावित
जालंधर। चीन में पाये जाने वाले वायरस ‘सदर्न राइस ब्लैक-स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस (एसआरबीएसडीवी) पहली बार पंजाब के खेतों में पाया गया है, जिससे राज्य के लगभग 14 जिलों में धान की फसल की पैदावार कम होने की आशंका है। पहली बार वर्ष 2001 में दक्षिणी चीन के ग्वांगडोंग प्रांत में पाया गया यह वायरस वियतनाम और जापान जैसे अन्य देशों में फैलने से पहले अगले कुछ वर्षों तक चीन तक ही सीमित था। इस वायरस से संक्रमित चावल के पौधे में बौनेपन, कठोरता और पत्तियां काली पड़ने लगती हैं। यह वायरस सफेद पीठ वाले टिड्डे (सोगेटेला फुर्सीफेरा) द्वारा प्रेषित होता है, जो जड़ के विकास और पौधों की वृद्धि में बाधा डालता है।
यह वायरस चावल की बासमती (सुगंधित) और गैर-बासमती दोनों किस्मों को प्रभावित करता है। यह पता लगाने के लिए जांच चल रही है कि यह वायरस भारत में कैसे पहुंचा और यह चावल के पौधों के खिलाफ कैसे काम करता है। बलाचौर के कृषि अधिकारी राज कुमार ने गुरुवार को बताया कि राज्य में लगभग 30 लाख हैक्टेयर में धान की बोवाई की गई है, जिसमें से 34 हजार हैक्टेयर धान पर एसआरबीएसडीवी का हमला हुआ है। उन्होंने बताया कि कृषि विभाग द्वारा गत सप्ताह करवाए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार राज्य में धान की फसल को लगभग पांच फीसदी नुकसान हुआ है। उन्होने बताया कि समय के साथ यह आंकड़े और भी बढ़ सकते हैं।
श्री राज कुमार ने बताया कि इन लक्षणों के होने की प्रारंभिक रिपोर्ट श्री फतेहगढ़ साहिब, पटियाला, होशियापुर, लुधियाना, पठानकोट, जालंधर, मोहाली और गुरदासपुर जिलों से मिली थीं। एक महीने के भीतर लगभग पूरे पंजाब और उसके आसपास के राज्यों में धान के अविकसित पौधे देखे गए। संक्रमित पौधे संकरी खड़ी पत्तियों से बौने हो गए थे, जिससे पौधों की जड़े और अंकुर दोनों बुरी तरह प्रभावित हो गए थे। गंभीर रूप से संक्रमित धान के खेतों में, संक्रमित पौधे मुरझा गए। बौने पौधों की ऊंचाई सामान्य पौधों की तुलना में एक तिहाई से घटकर एक तिहाई रह गई। इन पौधों की जड़ें उथली थीं और इन्हें आसानी से उखाड़ा जा सकता था। ये पौधे खेतों में लगभग सभी खेती की किस्मों में देखे गए थे। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की एक टीम ने होशियारपुर, रोपड़, मोहाली, लुधियाना, श्री फतेहगढ़ साहिब और पटियाला जिलों के प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया और व्यवस्थित रूप से इन ठप पड़े पौधों के कारणों का पता लगाया। टीम ने देखा कि जल्दी बोई गई धान की फसल में इसका प्रकोप अधिक था, चाहे वह किसी भी किस्म का हो। बुवाई परीक्षणों की तिथि से यह प्रमाणित हो गया कि 15-25 जून के दौरान रोपित धान की फसल बाद की तिथियों की तुलना में अधिक प्रभावित हुई थी।
भारत सरकार को डर है कि इसका प्रकोप अनियमित दक्षिण-पश्चिम मानसून की बारिश से होने वाले नुकसान को बढ़ा सकता है। पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में इस अगस्त में धान की खेती का रकबा 6 प्रतिशत कम रहा है। भारत के कुल खाद्यान्न पूल में चावल की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत है। भारत के कुल चावल उत्पादन में अकेले पंजाब और हरियाणा का योगदान लगभग 16 प्रतिशत है। हालांकि, संक्रमित पौधे के बीज और अनाज में वायरस नहीं पाया गया है। कृषि विभाग ने किसानों को सलाह दी गई है कि वे अपने धान को पानी से न भरें और साप्ताहिक आधार पर वेक्टर की उपस्थिति के लिए पौधों की निगरानी करें। उन्हें खरपतवार हटाने और कीटनाशकों और उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग से बचने के लिए भी कहा गया है।अधिकारियों का कहना है कि इस वायरस से बचाव के लिए कोई दवाई नहीं है, लेकिन इसके प्रसार को रोकने के लिए जब बड़ी संख्या में सफेद पीठ वाले टिड्डे दिखाई दें तो प्रभावित चावल के डंठल के आधार पर ट्राइफ्लुमेज़ोपाइरिम, डाइनोटफ्यूरन या पाइमेट्रोज़ीन, चैस, शीन, पैक्सालोन जैसे कीटनाशकों का छिड़काव किया जा सकता है।
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