असम से इस साल हट जाएगा अफस्पा
असम से इस साल हट जाएगा अफस्पाSyed Dabeer Hussain - RE

असम से इस साल हट जाएगा अफस्पा, जानिए क्या है यह कानून और इस पर इतना विवाद क्यों?

सशस्त्र बल विशेष शक्तियां कानून को साल 1958 में तत्कालीन गृह मंत्री द्वारा संसद में पेश किया गया था। इस कानून को अशांत इलाकों में लागू किया जाता है।
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राज एक्सप्रेस। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Biswa Sarma) ने सोमवार को बड़ा ऐलान किया है। उन्होंने कहा है कि इस साल के अंत तक असम (Assam) से सशस्त्र बल विशेष शक्तियां कानून-1958 (Armed Forces Special Power Act) यानी अफस्पा (AFSPA) को पूरी तरह से हटा लिया जाएगा। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा है कि प्रदेश के पुलिस कर्मियों को ट्रेनिंग देने के लिए पूर्व सैन्य कर्मियों की सेवा ली जाएगी। गौरतलब है कि पूर्वोत्तर के राज्यों में अफस्पा को हटाने की मांग सालों से की जा रही है। तो चलिए जानते हैं कि अफस्पा क्या है, इसके तहत क्या अधिकार मिलते है और इस कानून को लेकर विवाद क्यों है?

अफस्पा क्या है?

दरअसल सशस्त्र बल विशेष शक्तियां कानून को साल 1958 में तत्कालीन गृह मंत्री द्वारा संसद में पेश किया गया था। इस कानून को अशांत इलाकों में लागू किया जाता है। इस कानून के जरिए सुरक्षा बलों और सेना को कुछ विशेष अधिकार मिल जाते हैं। अफस्पा को सबसे पहले साल 1958 में नगाओं के विद्रोह से निपटने के लिए लागू किया गया था।

क्या मिलते हैं अधिकार?

दरअसल इस कानून के तहत सुरक्षा बल किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को बिना वारंट के ही गिरफ्तार कर सकती है। अगर कोई व्यक्ति चेतावनी देने के बावजूद कानून उल्लंघन कर रहा है तो इस स्थिति में सुरक्षा बलों को उस पर गोली चलाने या मृत्यु होने तक बल प्रयोग की छूट होती है। अफस्पा के तहत सुरक्षा बल किसी के भी घर, परिसर और वाहन की तलाशी ले सकती है। अगर किसी घर या बिल्डिंग में उग्रवादी या उपद्रवी छिपे हैं तो सुरक्षा बलों को यह छूट है कि वह उस बिल्डिंग को तबाह कर दें। इसके अलावा सबसे अहम् बात यह है कि केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना सुरक्षाबलों के खिलाफ कोई मुकदमा या कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती है।

कानून को लेकर विवाद क्यों?

दरअसल कई बार सुरक्षा बलों पर अफस्पा कानून की आड़ में मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप भी लगते आए हैं। उन पर फर्जी मुठभेड़ के आरोप लगते रहे हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस कानून की आड़ में सुरक्षा बल मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और हिरासत में टॉर्चर करते हैं। संयुक्त राष्ट्र भी भारत से इस कानून को हटाने की मांग कर चुका है।

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