महाराणा प्रताप जयंती
महाराणा प्रताप जयंतीSyed Dabeer Hussain - RE

जयंती : महाराणा प्रताप के दो वफादार जानवर, जिन्होंने वतन के लिए कुर्बान कर दी अपनी जान

आज महाराणा प्रताप की जयंती पर हम उनके दो ऐसे वफादार जानवरों के बारे में जानेंगे, जिन्होंने महाराणा प्रताप के लिए अपनी प्राणों की कुर्बानी भी दे दी।
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Maharana Pratap Jayanti : आज मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप की जयंती है। महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को ज्येष्ठ मास की तृतीया को गुरु पुष्य नक्षत्र में हुआ था। यही कारण है कि कुछ लोग 9 मई को महाराणा प्रताप की जयंती मनाते हैं तो वहीं कई लोग हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की तृतीया को उनकी जयंती मनाते हैं। महाराणा प्रताप की वीरता की कहानियां तो हम सभी बचपन से ही सुनते आ रहे हैं। मेवाड़ की आन-बान और शान की रक्षा के लिए वह मुगलों से भीड़ गए थे। इस लड़ाई में कई लोगों ने उनका साथ दिया। आज महाराणा प्रताप की जयंती पर हम उनके दो ऐसे वफादार जानवरों के बारे में जानेंगे, जिन्होंने महाराणा प्रताप के लिए अपनी प्राणों की कुर्बानी भी दे दी।

चेतक

महाराणा प्रताप और उनके घोड़े चेतक की कहानी हम बचपन से सुनते आ रहे हैं। आपको बता दें कि चेतक एक अरबी नस्ल का घोड़ा था। दरअसल एक अरबी व्यापारी तीन घोड़े लेकर महाराणा प्रताप के पास पहुंचा था। तीनों का अच्छी तरह से परीक्षण करने के बाद महाराणा प्रताप ने चेतक को अपने पास रख लिया। चेतक लंबी छलांग लगाने में माहिर था। युद्ध के मैदान में उनकी फुर्ती देखने लायक होती थी। कहा जाता है कि हल्दीघाटी के युद्ध में घायल महाराणा प्रताप की जान बचाने के लिए चेतक ने 26 फीट नाले को छलांग लगाकर पार कर लिया था। लेकिन मुगल सैनिकों के घोड़े उस नाले को पार करने की हिम्मत नहीं कर पाए। हालांकि इस दौरान चेतक भी घायल हो गया और उसने युद्धस्थल के पास ही दम तोड़ दिया। चेतक की मौत पर महाराणा प्रताप भी फूट-फूटकर रोए थे। आज भी लोग चेतक की पूजा करने के लिए उसकी समाधी पर जाते हैं।

रामप्रसाद

चेतक की तरह महाराणा प्रताप का हाथी भी बहादूर और वफादार था। हल्दीघाटी के युद्ध में उसने अकेले ही अकबर की सेना के 13 हाथियों को मार गिराया था। मुगलों की सेना ने 7 हाथियों के चक्रव्यूह और 14 महावतों के जरिए बड़ी मुश्किल से उसे बंदी बनाया। बंदी बनाने के बाद अकबर ने उसका नाम वीरप्रसाद रख दिया। मुगलों ने हाथी को खाने के लिए गन्ने दिए लेकिन रामप्रसाद ने कुछ नहीं खाया। कहा जाता है कि रामप्रसाद ने लगातार 18 दिनों तक मुगलों का दिया हुआ पानी तक नहीं पीया और दम तोड़ दिया। रामप्रसाद की मौत पर अकबर ने कहा था कि, ‘जिसके हाथी को मैं अपने सामने नहीं झुका पाया, उस महाराणा प्रताप को मैं क्या झुका पाऊंगा।‘

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