World Health Day : कोराना के बाद मर्ज को लेकर लोगों में लापरवाही हुई कम
World Health Day : कोरोना काल के दो वर्ष इस पीढ़ी के ऐसे रहे हैं, जो वो जिंदगी भर नहीं भूलेंगे। 24 मार्च की आधी रात के बाद इंदौर में पहला कोविड पॉजिटिव केस मिला था। इसके बाद जो सिलासिला शुरू हुआ, तो करीब दो वर्ष बाद जाकर थमा। यह वो दौर था, जिसमें हरेक समझदार व्यक्ति को लग रहा था वो कभी भी इस महामारी के चपेट में आ सकता है और उसका मौत से साक्षात्कार हो सकता है।
कोरोना काल बीतने के बाद लोगों की जिंदगी में बड़ा बदलाव आया। जो लोग छोटी-मोटी बीमारी को कुछ समझते ही नहीं थे, वो इतने जागरुक हो गए कि अब सर्दी-खांसी, बुखार हो या सीने में हल्का सा दर्द होते ही सीधे डॉक्टर से संपर्क करने लगे हैं। न सिर्फ संपर्क कर रहे हैं, बल्कि इलाज भी पूरा ले रहे हैं और डॉक्टर के कहे मुताबिक मेडिकल टेस्ट भी पूरे करा रहे हैं।
फीटनेस पर दे रहे ज्यादा ध्यान
कोरना काल के दौरान उन लोगों की ज्यादा मौते हुई हैं, जो मेडिकल रूप से फीट नहीं थे। उन्हें मधुमेह, हार्ट, लीवर, किडनी, मोटापा आदि बीमारियां थी, उनकी मौतें ज्यादा हुई थीं। कोरोना काल खत्म होते ही लोगों ने अपनी फिटनेस की तरफ ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया। सुबह लोग बड़ी संख्या में मार्निंग वॉक पर निकल रहे हैं। नियमित रूप से अस्पतालों में पहुंचकर बड़ी संख्या में लोग रुटिन हेल्थचेक करा रहे हैं। चोइथराम अस्पताल के उप निदेशक, चिकित्सा सेवाएं डॉ. अमित भट्ट बताते हैं कि कोरोना के बाद से लोगों में जागरुकता बड़ी है। बिना डॉक्टर की सलाह के भी लोग हेल्थ चेकअप कराने अस्पताल आ रहे हैं।
वहीं विशेषज्ञों ने बढ़ा दी फीस
एक ओर जहां लोगों में हेल्थ को लेकर जागरुकता बढ़ी , तो दूसरी ओर शहरभर के लगभग सभी विशेषज्ञों ने कोरोना के बाद अपनी फीस डेढ़ से दो गुनी कर दी। ज्यादातर निजी सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल की ओपीडी की फीस भी आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गई। जो विशेषज्ञ पहले ओपीडी 400-500 से रहे थे, वो अब 700-800 से रहे हैं और जो 700 रुपए फीस लेते थे, वो 1100 से 1300 रुपए तक ले रहे हैं। निजी सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल की फीस 1300 से 1700 रुपए हो गई है। पहले ओपीडी की फीस की मियाद 15 दिन से 7 दिन रहती थी, अब यह 5 से 3 दिन हो गई है। यानि इतने दिन बाद जाओ, तो दोबारा फीस देना होती है। इस संबंध में आईएम के पूर्व अध्यक्ष डॉ. संजय लोंढे का कहना है कि हर क्षेत्र में आर्थिक रूप से बदलाव आया है, तो हमारे पेश में भी ऐसा हुआ है। सब का अपना नजरिया है। वहीं एक आम नागरिक की सोच है कि यह पेशा सेवा का है, इसलिए सरकार को इस पर हस्तक्षेप करते हुए नियंत्रित करना चाहिए।
गली-मोहल्लों में कलेक्शन सेंटर
जहां एक ओर डॉक्टरों की फीस बड़ी है, तो दूसरी तरफ कोविड के बाद शहर में मेडिकल इन्वेस्टिगेशन में कम्पीटिशन बढऩे के कारण इसकी फीस कम हो गई है। बड़ी पैथॉलाजी लैब के साथ शहर के हर गली-मोहल्लों में कलेक्शन सेंटर और पैथालॉजी लैब खुलने से लोगों के लिए जांच कराना सस्ता और आसान हो गया है। पैकेज के तहत बड़ी लैब घर पहुंच सेवा दी रही है, जिसमें ब्लड, यूरिन आदि कलेक्शन घर से कर लिया जाता है। वहीं इसमें स्थानीय लैब भी पीछे नहीं है। कम दर में बेहतर सेवा देते हुए घर पहुंच सेवा दे रहे हैं।
यह कहना है इनका
कोविड कॉल के बाद निश्चिततौर पर लोगों में जागरुकता बड़ी है। कोई भी तकलीफ होने पर तुरंत डॉक्टर, अस्पताल इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। हमारे अस्पताल में भी जनरल ओपीडी में कोरोना के बाद मरीजों की संख्या बड़ी है।
डॉ. पीएस ठाकुर, अधीक्षक, एमवायएच, इंदौर
लोग अब ज्यादा सतर्क हो गए हैं। लोगों को समझाना नहीं पड़ता है। इंटरनेट और गूगल के माध्यम से लोग स्वयं अपने लक्षणों के आधार पर बीमारी ढूंढने की कोशिश करते हैं, यहां तक तो ठीक है, लेकिन स्वयं इलाज करना कभी-कभी घातक साबित हो जाता है। फिर भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में कोविड के बाद लोगों में बहुत ज्यादा जागरुकता आई है।
डॉ. अतुल खराटे, पूर्व संयुक्त एवं राज्य क्षय अधिकारी, इंदौर
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