गांव तिरोदा बना उद्यमिता सशक्तिकरण की मिसाल, महिलाएं ही चला रहीं ग्रामीण अर्थव्यवस्था
सिंगरौली, मध्यप्रदेश। अडाणी फाउंडेशन का एक कार्यक्रम महाराष्ट्र के तिरोदा की महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को समग्र रूप से बदल रहा है, जो इस तरह की एक मिसाल है।लेखक डायने मैरीचाइल्ड ने एक महिला को 'फुल सर्कल' सही ही कहा है क्योंकि उसके भीतर सृजन, पोषण और रूपांतरण करने की शक्ति है'। महिलाओं को केवल प्रोत्साहन, अवसर, संसाधन और कौशल की जरूरत है ताकि वे खुद को संवार सकें और सशक्त बना सकें। सशक्तिकरण महिलाओं को जीवन के सभी क्षेत्रों में उनकी पूरी पहचान हासिल करने, क्षमता और शक्ति का अनुभव करने में सक्षम बनाता है। शक्ति कोई वस्तु नहीं है जिसका लेन-देन किया जाना है; न ही इसे भिक्षा के रूप में दिया जा सकता है। शक्ति को अर्जित करना, प्रयोग करना, कायम रखना और संरक्षित करना होता है।
इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए अडाणी फाउंडेशन पूरे भारत में अपने सीएसआर स्थलों पर स्थायी आजीविका को बढ़ावा देने के लिए बड़े पैमाने पर काम कर रहा है, जो महिलाओं को केवल कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थी बनाने के लिए ही नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण में सक्रिय योगदान के लिए भी है।
1,87,331 की आबादी वाले महाराष्ट्र के गोंदिया जिले के तिरोदा ब्लॉक की महिलाएं आत्मनिर्भरता और आर्थिक स्वतंत्रता के मामले में एक मिसाल कायम कर रही हैं। ऐसे कई कार्यक्रम हैं, जो इन महिलाओं के जीवन को समग्र रूप से बदल रहे हैं, जिससे अच्छे स्वास्थ्य के साथ जीवन स्तर बेहतर हो रहा है।
फाउंडेशन की पोषण हस्तक्षेप परियोजना, फॉर्च्यून सुपोषण, सामाजिक-आर्थिक आजादी हासिल करती हुई महिलाओं को चेंजमेकर्स बनने में मदद कर रही है। यह कार्यक्रम महिलाओं को ‘क्म्यूनिटी रिसोर्स पर्सन’ के रूप में नियुक्त करता है, जिन्हें सुपोषण संगिनी कहा जाता है, और उन्हें पोषण तथा स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं के बारे में समुदायों का मार्गदर्शन करने के लिए प्रशिक्षित करता है। ये संगिनियां मानदेय प्राप्त करने के साथ-साथ, इस प्रक्रिया में अपनी पहचान भी बनाती हैं। इस परियोजना के तिरोदा में हाल ही में चार साल पूरे हुए हैं।
महाराष्ट्र सरकार के सहयोग से, अडाणी फाउंडेशन और मानव विकास मिशन विभिन्न पहलों को संचालित कर रहे हैं जिसमें सुगंधित सामग्री (अगरबत्ती और धूप) और लाख की चूड़ियाँ बनाने के साथ-साथ सीप व मशरूम की खेती भी शामिल है। वर्तमान में, फाउंडेशन 43 महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के कुल 253 सदस्यों के साथ काम कर रहा है, जो जानकारी साझा करने, कौशल बढ़ाने और मार्केट लिंकेज सहायता प्रदान करने के आधार पर उद्यमिता को बढ़ावा दे रहा है। यहां तक कि कोविड-19 के दौरान भी, हमारे परियोजना हितधारक कमाई करना जारी रख सके। यह एक महत्वपूर्ण मोड़ था क्योंकि जिन पुरुषों ने कोविड-19 के कारण अपनी नौकरियां खो दी थीं, घर की महिलाओं द्वारा की गई कड़ी मेहनत की सराहना करने लगे, जिन्होंने घरेलू जिम्मेदारियों के साथ-साथ अपने काम को भी पूरे आत्मविश्वास के साथ संभाला।
वास्तव में, जब सब कुछ ठप हो गया था, सुगंधित सामग्री की मांग चरम पर थी और इसी तरह हमारे एसएचजी सदस्यों की कमाई भी अपनी ऊंचाइयों पर थी। यही वह समय था जब सुपोषण संगिनियों के एक समूह ने अडाणी फाउंडेशन के सहयोग से स्वयं सहायता समूहों का हिस्सा बनने का विचार किया। जब सभी घर में बंद पड़े थे और बेकार बैठे थे, हमारी सुपोषण संगिनियों में कुछ अलग और अतिरिक्त काम करने की इच्छा पैदा हो चुकी थी।
जरूरत को देखते हुए, फाउंडेशन ने पांच गांवों - गरड़ा, रामतोला, टीकारामटोला, मेंदीपुर और गुमाधवाड़ा - में 20 अगरबत्ती मशीनों की व्यवस्था की। अगरबत्ती बनाने में कुल 60 महिलाएं शामिल थीं। पूरे वर्ष के दौरान, जब कई लोगों को अपनी नौकरी से बाहर कर दिया गया और वे लोग बेकार बैठे रहे, तब इनमें से प्रत्येक महिला सदस्य प्रति दिन 50-100 किलोग्राम का उत्पादन करने में सक्षम थी और इस उत्पादन को पुनर्खरीद नीति (बायबैक पॉलिसी) के माध्यम से गोंदिया बाजार में बेचता थी, जिससे उनको प्रति माह 3,000-4,000 रुपये की कमाई होती थी।
ऐसे ही एक समूह में सरिता चौधरी, ललिता चौधरी और गुणवंता चौधरी भी शामिल थीं। इस समूह ने शुरू में केवल 5-10 किलो अगरबत्ती का उत्पादन किया, क्योंकि उनमें आत्मविश्वास नहीं था। हालांकि, फरवरी 2020 में, सरिता, जो मेंदीपुर और बरबसपुरा के लिए सुपोषण संगिनी भी थी, और उनकी टीम के अन्य सदस्यों ने लगभग 50 किलो अगरबत्ती का उत्पादन किया। उनके उत्पादों की गुणवत्ता के कारण उन्हें अधिकतम बाजार दर भी मिला। इसने उन्हें सुगंधित सामग्री उत्पादन में अधिक समय देने के लिए प्रोत्साहित किया। बाद में सरिता का पति भी कच्चा माल खरीदने और तैयार माल बेचने में उनकी मदद करने लगा। मार्च और अप्रैल में, उन्होंने लगभग 150-200 किलोग्राम अगरबत्ती बनाई। जून 2020 तक उत्पादन 500-550 किलोग्राम तक पहुंच गया, जिससे उन्हें 35,200 रुपये की कमाई हुई। छह महीने के लंबे लॉकडाउन के दौरान उनकी कुल आय 70,000 रुपये तक पहुंच गई।
सरिता की तरह, अन्य सुपोषण संगिनियां हैं जो विभिन्न गतिविधियों में शामिल हैं। इनमें से दो मिल्क कलेक्शन एंड चिलिंग सेंटर्स (एमसीएंडसीसी) से जुड़ी हुई हैं, नौ घरेलू डेयरी व्यवसाय में और 22 मशरूम की खेती में हैं। लाख की चूड़ी बनाना एक और पहल है जो कई हितधारकों को आकर्षित करती है क्योंकि गोंदिया में किसान बड़े पैमाने पर लाख की खेती करते है। इसमें तिरोदा की आदिवासी महिलाओं समेत 45 एसएचजी महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया।
अडाणी फाउंडेशन ने उन्हें एक बायबैक प्लेटफॉर्म प्रदान किया जिसके जरिये वे एक गैर सरकारी संगठन, दुल्हनदेवी संस्था को चूड़ियाँ बेचती हैं। ये महिलाएं रंगीन डिजाइनें बनाती हैं और प्रति माह 3,000-4,000 रुपये कमाती हैं। जहां तिरोदा में महिलाएं परंपरागत रूप से मौसमी धान की खेती में पांच से छह महीने शामिल रहती हैं, वहीं शेष महीनों के लिए भी उनके पास कुछ काम दिखता रहता है। लाभकारी आय-सृजन गतिविधियों में शामिल होने से, कुल घरेलू आय में वृद्धि होती है, और महिलाओं में आत्म-गौरव की भावना पैदा होती है। वास्तव में, स्थाई आय के एक स्रोत के साथ एक सुपोषित परिवार हमारे सपनों के आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे राज एक्सप्रेस वाट्सऐप चैनल को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। वाट्सऐप पर Raj Express के नाम से सर्च कर, सब्स्क्राइब करें।