जीवा तीन दिवसीय वार्षिक कार्यशाला
जीवा तीन दिवसीय वार्षिक कार्यशाला RE Bhopal

लोकतंत्र का सही भाव तभी सामने आ सकता है जब न्याय अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे : भोपाल पुलिस आयुक्त

पुलिस कई बार अपनी वैधानिक परिधि से बाहर आकर भी समाज में अपना योगदान देती है। महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को न्याय दिलाने में पुलिस अपनी इसी परिधि से बाहर आकर कार्य कर रही है।
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भोपाल,मध्यप्रदेश। हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में रहते हैं। उस लोकतंत्र का सही भाव तभी सामने आ सकता है जब न्याय का प्रवाह, न्याय का प्रकाश अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे। इस पर हम लगातार प्रयास तो करते हैं, लेकिन मौलिक चिंतन की आवश्यकता भी है। हमारे जीवन में तकनीक का जो प्रवेश हुआ है उसने न्याय की लड़ाई को धार दी है, पारदर्शिता दी है। यह बात भोपाल पुलिस आयुक्त हरिनारायण चारी मिश्र ने द प्रैकेडमिक एक्शन रिसर्च इनिशिएटिव फॉर मल्टीडिसिप्लिनरी एप्रोच लैब (परिमल) और जस्टिस इंक्लूशन एंड विक्टिम एक्सेस (जीवा) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय वार्षिक कार्यशाला के शुभारंभ कार्यक्रम में कहीं।

भोपाल पुलिस आयुक्त ने कहा कि महिलाओं ने जुड़े अपराधों को रोकने में तकनीक का काफी लाभ हुआ है। इसी तरह डायल 100 में जो कॉल आते हैं, हम पाते हैं कि ये किसी विशेष क्षेत्र से होते हैं, हम इनकी मैपिंग कर ऐसे इलाकों को चिह्नित कर सकते हैं और इन पर निगरानी रख सकते हैं। पुलिस अपने संसाधनों और तकनीक का प्रयोग ऐसे स्थानों पर कर सकती है। इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं। पुलिस कई बार अपनी वैधानिक परिधि से बाहर आकर भी समाज में अपना योगदान देती है। महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को न्याय दिलाने में पुलिस अपनी इसी परिधि से बाहर आकर कार्य कर रही है।

पुलिस मुख्यालय स्थित पुलिस ऑफिसर्स मेस के पारिजात हॉल में आयोजित इस कार्यशाला के उद्धघाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि विधि एवं विधायी कार्य विभाग के प्रमुख सचिव बीके द्विवेदी उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता भोपाल पुलिस आयुक्त हरिनारायणचारी मिश्र ने की। प्रमुख अतिथियों में सीबीआई और मध्यप्रदेश पुलिस के सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक ऋषि शुक्ला, मध्यप्रदेश पुलिस मुख्यालय में आईजी (एडमिनिस्ट्रेशन) दीपिका सूरी, आईपीएस सुष्मा सिंह, राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी की प्रो.गीता ओबेराॅय, जे-पल व युनिवर्सिटी ऑफ वर्जिनिया के प्रोफेसर संदीप सुखंतकर एवं प्रोफेसर गेब्रियला, जे-पल व यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के प्रोफेसर अक्षय मंगला उपस्थित रहे। संचालन परिमल के सचिव एवं डीसीपी डॉ. विनीत कपूर ने किया।

इन्हें किया गया सम्मानित

कार्यक्रम में अपने दायित्वों का निर्वहन करने के साथ शोध कर उदाहरण प्रस्तुत करने वाले प्रैक्टिसनर्स को सम्मानित किया गया। इस दौरान उत्तरप्रदेश पुलिस में एडीजी डॉ. जीके गोस्वामी, पुलिस मुख्यालय आईजी (एडमिनिस्ट्रेशन) दीपिका सूरी एवं एआईजी डॉ. वीरेंद्र मिश्रा और  नई दिल्ली सीबीआई में पदस्थ एसपी प्रवीण मंंडलोई को उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए अतिथियों के हाथों  जीवा सम्मान से सम्मानित किया गया।   

महिलाओं के सशक्तिकरण पर दें जोर 

कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि विधि एवं विधायी कार्य विभाग के प्रमुख सचिव बीके द्विवेदी ने कहा कि सही न्याय तभी मिल पाता है जब विवेचना अच्छे ढंग से की गई हो। तकनीक के सहयोग से विवेचना की गुणवत्ता बढ़ी है, यही वजह है कि न्यायपालिकाओं के जो निर्णय आ रहे हैं वो सही और अच्छे आ रहे हैं। आगामी समय में यह और अच्छे होते रहेंगे। चुनौतियां यदि जीवन में नहीं होगी तो हम आगे नहीं बढ़ेंगे। समाज के लोगों को दृष्टिगत रखते हुए जब आप उचित विवेचना करते हैं तो उचित न्याय दिलाना आसान हो जाता है।

रिसर्च की ओर ध्यान देकर समाज में योगदान दें प्रैक्टिसनर्स  

सीबीआई और मध्यप्रदेश पुलिस के सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक ऋषि शुक्ला ने कहा कि क्रिमिनल इंवेस्टीगेशन मात्र 200 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ था। उसमें भी हम धीरे-धीरे प्रगति की ओर अग्रसर हैं। साइंटिफिक इंवेस्टीगेशन शामिल होता आया है। पहले कुछ सीमित क्षेत्र तक इंवेस्टीगेशन होता था, इसमें आरोपी और पीड़ित एक ही क्षेत्र के हुआ करते थे। वर्तमान में आरोपी और फरियादी कहीं के भी हो सकते हैं। विगत दो दशकों में महिला अपराध काफी बढ़े हैं। भारत जैसे देश में इंटरनेट की दुनिया में महिलाओं की सुरक्षा बहुत बड़ी चुनौती है। प्रतिदिन नई चुनौतियां सामने आ रही हैं और हम उनका सामना कर रहे हैं। कई पुलिस अधिकारियों ने अपने दायित्वों के साथ रिसर्च में रुचि ली है। मुझे आशा है कि प्रैक्टिसनर्स रिसर्च की ओर अग्रसर होंगे और समाज में अपना महत्वपूर्ण योगदान देंगे।  

यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चों की सुरक्षा और देखभाल की आवश्यकता

राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी की प्रो.गीता ओबेराॅय ने बच्चों के यौन उत्पीड़न के संबंध में जानकारी साझा की। उन्होंने बताया कि हमारे देश की 31 प्रतिशत आबादी 18 वर्ष से कम उम्र की है, इसलिए हमारे देश को युवा कहा जाता है। उन्होंने कहा कि इस युवा आबादी में यौन उत्पीड़न के शिकार कई बच्चे ऐसे हैं, जो न्याय पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इन बच्चों की देखभाल करने और उन्हें सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है। कार्यक्रम में रेलवे चाइल्ड लाइन, सिटी चाइल्ड लाइन, बचपन संस्था, भोपाल के सदस्यों ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस दौरान इंदौर, जबलपुर, झाबुआ, उज्जैन, अनूपपुर और भोपाल में ऊर्जा डेस्क में कार्यरत पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों ने भी अपने अनुभव साझा किए।

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