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नगर निगम कर्मी के प्रमोशन संबंधी मामले में हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी, ननि को जमकर लिया आड़े हाथों

याचिकाकर्ता के साथ ना केवल भेदभाव किया गया है बल्कि नगर निगम के अधिकारियों ने उसको तृतीय श्रेणी के पद पर पदोन्नति ना देकर नियमों का उल्लंघन किया है।
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जबलपुर। मप्र हाईकोर्ट ने एक कर्मी के प्रमोशन संबंधी मामले में नगर निगम जबलपुर के रवैये को जमकर आड़े हाथों लिया। पूर्व आदेश के परिपालन में हाजिर हुए निगामायुक्त व स्थापना अधीक्षक की कार्यप्रणाली को आड़े हाथों लेते हुए जमकर नाराजगी व्यक्त की। जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने मामले में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि न्यायालय अपने आप को धृतराष्ट्र नहीं मान सकती तथा नगर निगम के अधिकारी को संजय की तरह कार्य करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता के साथ ना केवल भेदभाव किया गया है बल्कि नगर निगम के अधिकारियों ने उसको तृतीय श्रेणी के पद पर पदोन्नति ना देकर नियमों का उल्लंघन किया है। एकलपीठ ने 15 दिनों के भीतर आवेदक को पदोन्नति देते हुए समस्त लाभ  प्रदान करने के निर्देश दिये है। इसके साथ ही गुम हुए रिकार्ड पर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिये है।

उल्लेखनीय है कि नगर निगम जबलपुर के कर्मचारी लक्ष्मण बरुआ ने वर्ष 2004 में याचिका दायर कर बताया था कि उसे प्रमोशन से वंचित रखा जा रहा है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने बताया कि लक्ष्मण चतुर्थ से तृतीय श्रेणी में पदोन्नति का पात्र है, लेकिन उसका हक उसे नहीं दिया जा रहा है। इतनाही नहीं याचिकाकर्ता को 2003 में चतुर्थ श्रेणी के पद से चतुर्थ श्रेणी के पद पर पदोन्नति दी गई थी जो कि नियमानुसार नहीं है क्योंकि चतुर्थ श्रेणी के पद से तृतीय श्रेणी के पद पर पदोन्नति दी जाती है तथा नगर निगम जबलपुर में याचिकाकर्ता के समान अन्य चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को तृतीय श्रेणी के पद पर पदोन्नति दी थी किंतु याचिकाकर्ता के साथ भेदभाव किया गया था। पूर्व में कई बार कोर्ट ने याचिकाकर्ता की नियुक्ति व प्रमोशन से जुड़ी  फाइल पेश करने के निर्देश न्यायालय ने दिये थे। न्याायालय  ने 31 जनवरी को कहा था कि यदि रिकॉर्ड पेश नहीं किए गए तो निगमायुक्त को हाजिर होना पड़ेगा। इसके बाद 28 फरवरी को निगमायुक्त स्वप्निल वानखेड़े कोर्ट में उपस्थित हुए थे। मामले की पिछली सुनवाई पर न्यायालय के पूछने पर नगर निगम की ओर से बताया गया था कि रिकॉर्ड गुम हो गए हैं और एफआईआर दर्ज कराई जा रही है।

आवेदक को प्रमोशन के साथ दो समस्त लाभ

मामले की सुनवाई दौरान पूर्व आदेश के बावजूद मूल अभिलेख प्रस्तुत नहीं किया गया एवं नगर निगम के कमिश्नर स्थापना अधिकारी एवं अधिवक्ता ने विरोधाभास पूर्ण कथन न्यायालय में किए। जिस पर न्यायालय ने गंभीर टिप्पणी करते हुए नगर निगम के नगर निगम के अधिकारी एवं अधिवक्ता के कथनों पर गंभीर रुख अपनाते हुए तख्त टिप्पणी की। न्यायालय अपने आप को धृतराष्ट्र नहीं कर सकती मान सकती तथा नगर निगम के अधिकारी एवं उनके अधिवक्ता को संजय की तरह कार्य करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। एकलपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के साथ ना केवल भेदभाव किया गया है बल्कि नगर निगम के अधिकारियों ने उसको तृतीय श्रेणी के पद पर पदोन्नति ना देकर नियमों का उल्लंघन किया है आता याचिकाकर्ता को तृतीय श्रेणी के पद पर 15 दिन के अंदर पदोन्नति आदेश जारी करते हुए सभी लाभ दिए जाने की निर्देश दिए।

रिकार्ड गुम होने के दोषियों पर करो सख्त कार्रवाई

न्यायालय ने अपने आदेश में नगर निगम कमिश्नर एवं स्थापना अधीक्षक के कार्य व्यवहार पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए याचिका स्वीकार की है। इसके साथ ही साथ यह निर्देश दिए हैं एफआईआर की आड़ में नगर निगम अभिलेख गुमने की एवं आगे की कार्यवाही नहीं रोक सकता है। एकलपीठ ने रिकार्ड गुम होने पर निगामायुक्त को दाषियों पर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिये है।

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