प्रदेश सरकार नए सिरे से कराए पीएससी की परीक्षा : कमलेश्वर पटेल
भोपाल, मध्यप्रदेश। मप्र हाईकोर्ट ने गुरुवार को पीएससी 2019 की वैधानिकता को चुनौती देने वाली करीब आधा सैकड़ा याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाते हुए प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा परिणाम को निरस्त कर दिया है। हाईकोर्ट ने संशोधित नियम 17 फरवरी 2020 को असंवैधानिक करार देते हुए यह फैसला सुनाया।
फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूर्व मंत्री और विधायक कमलेश्वर पटेल ने कहा कि यह संशोधन कूट रचित दस्तावेजों के माध्यम से शिवराज सरकार बैक डेट में लेकर आई थी। इस संशोधन के जरिए मप्र सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के छात्रों को मेरिट में अच्छे नंबर लाने के बावजूद अपने आरक्षण कोटा के अंतर्गत ही उत्तीर्ण होने का मौका दिया था। सरल शब्दों में कहें तो शिवराज सिंह सरकार ने अपना दलित, पिछड़ा और आदिवासी विरोधी चेहरा उजागर करते हुए अनारक्षित वर्ग को सिर्फ अगड़ी जातियों के लिए आरक्षित कर दिया था। संविधान के मुताबिक अनारक्षित वर्ग किसी के लिए आरक्षित नहीं होता, उसमें कोई भी योग्यतम छात्र चयनित हो सकता है। ऐसे में ओबीसी, एससी और एसटी के जो छात्र बहुत अच्छे नंबर लाते हैं उन्हें उनके कोटे से बाहर सामान्य श्रेणी में चयनित माना जाता है। श्री पटेल ने कहा कि प्रदेश सरकार शिक्षा और नौकरियों में घोटाले करने की मास्टरमाइंड बन चुकी है। हाईकोर्ट के फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि शिवराज सरकार का संविधान और कानून में कोई विश्वास नहीं है। अजा, जजा और पिछड़ा वर्ग के हितों पर हमला करने के लिए शिवराज सरकार किसी भी स्तर तक जा सकती है। श्री पटेल ने कहा कि सरकार को तत्काल हाईकोर्ट के फैसले का अनुसरण करते हुए नए सिरे से परीक्षा करानी चाहिए। अन्य पिछड़ा वर्ग अनुसूचित जाति और जनजाति के जिन छात्रों को असंवैधानिक तरीके से परीक्षा कराए जाने से मानसिक और आर्थिक हानि हुई है, उसकी भरपाई सरकारी खजाने से होनी चाहिए।
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