चचाई/ शहडोल, मध्य प्रदेश। चचाई स्थित अमरकंटक ताप विद्युत गृह की कॉलोनी का कचरा प्रबंधन की मनमानी के कारण ठेकेदार के द्वारा सोन नदी के तट पर फेंका जा रहा है, जिस कारण यह पूरा कचरा धीरे-धीरे पानी के बहाव उड़ कर नदी में जा रहा है यहां एनजीटी के आदेशों का उल्लंघन तो हो ही रहा है ताप विद्युत गृह के अधिकारियों की मनमानी से सोन का पानी भी दूषित हो रहा है।
संभाग अंतर्गत अनूपपुर जिले के चचाई थाना अंतर्गत अमरकंटक ताप विद्युत गृह की कॉलोनी का समूचा कचरा प्रबंधन द्वारा उठाकर पुराने कॉलोनी के पीछे मस्जिद के पीछे पाया जाता है कचरे के विशालकाय पहाड़ जैसे ढेर यहां दूर से ही नजर आते हैं, सोन नदी से महज कुछ मीटर की दूरी पर कचरे के ढेर नदी के लिए नासूर बन चुके हैं, एक तरफ राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण और पर्यावरण विभाग ऐसे किसी भी कचरे का संग्रह नदी के आसपास करने पर प्रतिबंध लगाने की बात कहते हैं, वही ताप विद्युत गृह के अधिकारी की मनमानी के कारण नदी का पानी दूसरे तो हो ही रहा है, नदी का अस्तित्व भी संकट में नजर आ रहा है।
दूषित पानी पीने को मजबूर :
नगर में बहने वाली प्रमुख सोन नदी में गंदे कचरे से होकर नालों का पानी बहाया जा रहा है। इस कारण नदियों का जल प्रदूषित होता जा रहा है। साथ ही नदियों के पास बने ओरियंट पेपर मिल के साथ आगे नदी में बने अन्य बांधों का जल भी दूषित होता जा रहा है। यही पानी लोगों के घरों में जा रहा है, लोग इस दूषित पानी को ही पीने को मजबूर हैं। सवाल यह है कि ताप विद्युत ग्रह प्रबंधन के पास गंदगी डालने के लिए कोई भी जगह नहीं है। मंडल के ठेके के सफाई कर्मचारी जगह-जगह से गंदगी उठाकर नदी से जुडऩे वाले नाले में डाल रहे हैं। इससे नदी का जल दूषित होता जा रहा है। गर्मी के दिनों में अधिकतर लोग नदी नालों में ही नहाने के लिए जाते हैं और उन्हें गंदे पानी के उपयोग से चर्मरोग भी हो रहा है।
हर दिन टनों कचरा :
चचाई के मस्जिद के पीछे रोजाना टनों कचरा नाले में डाला जा रहा है, यह नाला कुछ मीटर के बाद सोन नदी में जाकर गिरता है। इससे सोन नदी का पानी प्रदूषित हो रहा है। लेकिन पर्यावरण की इस बड़ी हानि हो रोकने के लिए प्रशासन द्वारा कोई भी अभियान नहीं चलाया गया है। वहीं कचरों के समुचित प्रबंधन एवं निष्पादन के हाईकोर्ट के दिशा- निर्देश से बेपरवाह मंडल प्रशासन अब मैदानी इलाकों को छोड़ सोन में कचरा डालने का काम कर रहा है। सामाजिक संगठनों द्वारा एक तरफ सोन बचाओ का नारा बुलंद किया जा रहा है। स्वयंसेवी संस्थाएं, समाज के प्रबुद्ध वर्ग, एनजीओ समेत अन्य लोग दिन-रात एक कर सोन को पुर्नजीवित करने में भिड़े हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ यहां खुला उल्लंघन हो रहा है।
बेपरवाह है मंडल प्रबंधन :
मंडल प्रशासन इन सब बातों से बेपरवाह कचडे को डंप कर, केन्द्र सरकार के स्वच्छ भारत अभियान को पलीता लगा रहा है। गत दिनों पूर्व ही कचरा डंपिंग के एक मामले में हाईकोर्ट ने दिशा-निर्देश जारी कर कचड़े के समुचित प्रबंधन के निर्देश दिए हैं। दूसरी तरफ कोर्ट के आदेश को धता बताते हुए तू डाल -डाल तो मैं पात-पात की तर्ज पर नदी को निशाना बनाया जा रहा है। नदी के किनारे कचरा डंपिंग का खेल खुलेआम किया जा रहा है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट एवं नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के तमाम आदेश को दरकिनार कर नदी को प्रदूषित किया जा रहा है।
नहीं मानते एनजीटी के कायदे :
हाईकोर्ट ने पूर्व के माहों में नदियों में कचऱा डालने एवं जलाने पर रोक लगाने के निर्देश भी दिये हैं, स्पष्ट कहा है कि कचरे को मैदानी इलाकों में बिल्कुल डंप न किया जाए। कचरे के समुचित प्रबंधन एवं डिस्पोज ऑफ के व्यापक इंतजाम किए जाएं तथा खुले में कचरा बिल्कुल न छोडा जाए। इतना ही नहीं केमिकल वेस्ट, बायोकेमिकल वेस्ट , इंडस्ट्रियल वेस्ट एवं घरों से निकलने वाले सामान्य कचरे के निष्पादन के लिए भी समय-समय पर दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देश :
नदियों के प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देश है, किसी भी सूरत में किसी प्रकार के कचरा डालने पर पाबंदी है। यहां तक कि प्लास्टर ऑफ पेरिस से बने गणपति एवं दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन पर भी रोक लगाई गई है। नालियों के सीवर लाइन, उद्योगों व कालोनी से निकलने वाले इंडस्ट्रीयल वेस्ट पर रोक लगाई गई है। दोषी पाए जाने पर 10 वर्ष तक की सजा, हैवी पेनल्टी एवं उद्योगों को बंद करने का आदेश भी जारी किया गया है। लेकिन इन तमाम आदेशों की खुले आम धज्जियां उड़ाई जा रही है, दिन-दहाड़े चचाई पावर प्लांट की कालोनी का कचरा नाले और उससे होता हुआ नदी में जा रहा है।
नदी का जलस्त्रोत प्रभावित :
नदियों में कचरा डालने से सबसे बड़ा नुक्सान इसका स्त्रोत प्रभावित होता है। नदी में पलने वाले जीव-जंतुओं को ऑक्सीजन नहीं मिलती है तथा उनकी असमय मौत तो होती ही है। बरसात के पानी का नदियों के स्त्रोत तक नहीं पहुंचने के कारण नदियां धीरे-धीरे मृतप्राय हो जाती हैं। भूगर्भशास्त्रियों का मानना है कि नदियों के सूखने का सबसे बड़ा कारण इसके स्त्रोत तक पानी का नहीं पहुंचना है, कचरा एवं इससे बनने वाला सिल्ट सोन को भी निगल रहा है।
इनका कहना है :
आपके द्वारा संज्ञान में लाया गया है, मैं जांच करवाता हूं।
एस.पी. तिवारी, एडिशनल चीफ इंजीनियर, अमरकंटक ताप विद्युत गृह, चचाई
मामले आपके द्वारा मेरे संज्ञान में लाया गया है, मैं कल स्वयं जाकर देखता हूं।
एन.के. तिवारी, चीफ इंजीनियर, अमरकंटक ताप विद्युत गृह, चचाई
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