सीधी: बीएमओ की लचर व्यवस्था के चलते विभाग का उदासीन रवैया
सीधी, मध्य प्रदेश। मध्य प्रदेश शासन एवं स्वास्थ्य मंत्रालय के लाख प्रयास के बावजूद सीधी जिले में स्वास्थ्य केन्द्रों से निकलने वाले बायो मेडिकल वेस्टेज के प्रति विभाग उदासीन बना हुआ है। बताया जा रहा है कि ताल मेल के खेल के चलते वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा अपशिष्ठ प्रबंधन जैसे विषयों पर गंभीरता नहीं दिखायी जाती है। जिसके परिणाम स्वरूप एकांत सामुदायिक एवं उप स्वास्थ केन्द्रों की बात अगर दर किनार कर दें तो ज्यादातर स्थलों से निकलने वाला घातक एवं संक्रामक कचरा खुले आसमान के तले यूॅ ही फेंक दिया जाता है। वहीं अगर वरिष्ठ अधिकारियों के निरीक्षण कार्यक्रम के पूर्व इन कचरे के ढेरों को आग के हवाले कर दिया जाता है, जिसके निकलने वाला धुॅआ आस पास मौजूद लोगों के स्वास्थ पर बुरा असर करता है। जिले वासियों के स्वास्थ्य की रक्षा हेतु आवश्यक है कि जिला कलेक्टर एवं मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थय अधिकारी का इन चिहिंत क्षेत्रों में औचक निरीक्षण करे और दोषी विभागीय अमले पर उचित विधिक कार्यवाही हो अन्यथा इसके जल्द ही दुष्परिणाम आने की संभावना है।
कागजों में संचालित कचरा प्रबंधन :
अस्पतालों, पैथोलॉजी, डॉक्टर के क्लीनिक से निकलने वाले बायो मेडिकल वेस्ट सहित एक्सपायरी दवाओं को खुले में जलाने का प्रावधान नहीं है। इसके लिए सख्त नियम भी बनाए गए हैं लेकिन नियम कागजो तक ही सीमित हैं। हालात यह है कि दवा जहर बन रही है और जिम्मेदार कार्यवाही करने की वजह चैन की बंसी बजा रहे हैं। सरकारी और निजी अस्पतालों से निकलने वाला जैविक कचरा इंसीनरेटर पहुंचने से पहले ही कबाड़ी तक पहुंच रहा है तो खुले मैदान में एक्सपाइरी दवाइयां भी नष्ट की जा रही हैं। जबकि सूत्रों की मानें तो सतना से आने वाली मारूती ओमनी वैन सिर्फ नाम का प्रमाण पत्र देकर रफू चक्कर हो जाती है। वहीं कुछ केन्द्रों में कोरम पूर्ति के उद्देश्य से अपशिष्ट कचरा उठता तो है किन्तु जमोड़ी वाई पास तक पहुॅचते ही खुले में पहुॅच जाता है या फिर अविश्वसनीय वाहन में रख दिया जाता है।
सांठ गांठ के चलते चल रहा स्वास्थ के साथ खिलवाड़ :
शासन द्वारा जारी अगर नियमावली की बात करें तो चिकित्सकीय क्षेत्र संलग्न सभी छोटे बड़े शासकीय एवं निजी स्वास्थ केन्द्रों से निकलने वाला कचरा खुले में फेंकना कानून जुर्म है साथ ही अर्थदण्ड एवं सजा का प्रावधान है। इन्ही बॉतों को मद्देनजर रखते हुए प्रशासन द्वारा नियमावली जारी की गयी जिसमें स्पष्ट उल्लेख है कि बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट एंव हैंडलिंग कानून अस्पताल, नर्सिंग होम, क्लीनिक, डिस्पेंसरी, पशु संस्थान, पैथोलाजिकल लैब, ब्लड बैंक पर भी लागू होता है। अस्पतालों से निकलने वाले अलग.अलग अपशिष्ट पदार्थों को अलग.अलग रंग के थैलों में डाला जाता है। पीले थैले में सर्जरी में कटे हुए शरीर के भाग, लैब के सैंपल खून युक्त मेडिकल की सामग्री, लाल थैले में दस्ताने, कैथेटर, आईवीसेट, कल्चर प्लेट, नीला या सफेद बैग इसमें गत्ते के डिब्बे, प्लास्टिक के बैग जिनमें सुई कांच के टुकड़े या चाकू रखा जाता है। इनको भी काट कर केमिकल द्वारा ट्रीट कर गहराई में दबाते हैं। इसमें से ज्यादातर नियमों के पालन में कोताही बरती जा रही है। इन अस्पतालों से निकलने वाला जैव चिकित्सकीय कचरा कूड़ेदानों में फेंका जाता है। इन सब बातों के साथ ही नगर पालिका के कचरा वाहन जो खुले में कचरा फेंकता है उसमें भी आये दिन कचरे के साथ ही अस्पतालों का जैव चिकित्सकीय कचरा फेंका जाता है।
3 सैकड़ा से ज्यादा झोला छापों द्वारा निमयों की अवहेलना :
सूत्रों की मानें तो जिला प्रशासन की लचर व्यवस्था के चलते चिहिंत 3 सैकड़ा से ज्यादा झोला छापों के द्वारा प्रतिदिन मेडिकल वेस्टेज खुले में फेंक कर आमजनों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जाता है। जिसकी शिकायत भी कई बार स्थानीय स्तर पर की जा चुकी है किन्तु आज दिनांक तक परिणाम लगभग शून्यवत ही है। देहात में खुले इन स्वास्थ्य केंद्रों पर परिसर में खुले में या गड्ढा खोदकर अस्पताल का कचरा उढ़ेल दिया जाता है और इकट्ठा होने पर इसमें आग लगा दी जाती है। इससे संक्रामक बीमारियां फैलने का डर बना रहता है।
लापरवाही बरतने पर सख्त कानून का प्रावधान है, हो रही अनियमिता को ध्यान में रखते हुए हिदायत दी जा चुकी है, नियमों के पालन न होने के स्थिती में जल्द ही उचित विधिक कार्यवाही का रूख अपनाया जायेगा। अपशिष्ट कचरा प्रबंधन कार्य में लगे लोगों के साथ भी इस विषय में आवश्यक बैठक हो चुकी है, चिहिंत स्थलों से प्रतिदिन कचरा का उठाने के निर्देश दिये जा चुके हैं।
डॉ.बी.एल.मिश्रा, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, सीधी
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