भोपाल : तीन पूर्व मंत्री एवं आठ विधायकों की प्रतिष्ठा दांव पर

भोपाल, मध्य प्रदेश : दल बदल कर कांग्रेस और बसपा से लड़ रहे हैं उपचुनाव। सुरखी, सांवेर, बड़ा मलहरा, बमोरी, भांडेर, करेरा और पोहरी में रोचक बने मुकाबले।
तीन पूर्व मंत्री एवं आठ विधायकों की प्रतिष्ठा दांव पर
तीन पूर्व मंत्री एवं आठ विधायकों की प्रतिष्ठा दांव परSyed Dabeer Hussain - RE
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भोपाल, मध्य प्रदेश। मध्य प्रदेश की सत्ता में पूर्ण बहुमत जुटाने के लिए भाजपा से शुरू हुआ दलबदल का खेल कांग्रेस और बहुजन समाज जैसी पार्टी में भी कम नहीं दिख रहा है। मौजूदा उपचुनाव में देखें तो अपने परंपरागत दलों से बगावत कर पूर्व मंत्री और विधायक बसपा और कांग्रेस का झंडा लेकर चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं।

कांग्रेस और बसपा जैैसी पार्टियों में दल बदल कर आए तीन पूर्व मंत्रियों से लेकर कोई आधा दर्जन से अधिक विधायकों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। दोनों ही दलों में यह ऐसे प्रत्याशी मैदान में हैं जो अपनी पार्टियों से टिकट मांगते रहे हैं। जब इन्हें उम्मीदवार घोषित नहीं किया गया तो अचानक इन्होंने बगावत करते हुए दूसरे दलों का झंडा थाम लिया है।

जहां तक कांग्रेस की बात करें तो भाजपा की शिवराज सरकार के दूसरे कार्यकाल में सामान्य प्रशासन राज्य मंत्री रहे कन्हैयालाल अग्रवाल अब कांग्रेस की ओर से बमोरी विधानसभा सीट पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। कांग्रेस ने इन्हें भाजपा उम्मीदवार महेंद्र सिंह सिसोदिया के खिलाफ मैदान में उतारा है। इस सीट पर दो पूर्व मंत्रियों के मैदान में होने के कारण मुकाबला रोचक माना जा रहा है। कारण दोनों ही अनुभवी उम्मीदवार हैं। बसपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व विधायक फूल सिंह बरैया अब कांग्रेस पार्टी के टिकट पर अपनी परंपरागत सीट भांडेर से ही चुनाव लड़ रहे हैं। इसके पहले भी वह भांडेर से ही बसपा से विधायक रह चुके हैं। अब उनका मुकाबला कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुई रक्षा संतराम से है। समानता दल के पूर्व विधायक हरीवल्लभ शुक्ला भी पोहरी से अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगाते हुए भाजपा उम्मीदवार सुरेश धाकड़ के विरुद्ध चुनाव मैदान में हैं। शिवराज सिंह चौहान के तीसरे कार्यकाल में बसपा के टिकट पर विधायक रहे सत्यप्रकाश सखवार अब दल बदल कर कांग्रेस पार्टी से विधानसभा तक पहुंचने के लिए किस्मत आजमा रहे हैं। उनका दल जरूर बदला हो लेकिन रण क्षेत्र अंबाह ही है। इस बार उनका मुकाबला कमलेश जाटव से हो रहा है। दल बदल कर कांग्रेस में आए अजब सिंह कुशवाहा सुमावली से इंदल सिंह कंसाना के विरुद्ध चुनाव लड़ रहे हैं।

बसपा के टिकट पर दो पूर्व मंत्री मैदान में :

बसपा का दामन थामने वाले दो पूर्व मंत्रियों की प्रतिष्ठा इस उपचुनाव में दांव पर लगी हुई है। कांग्रेस सरकार में गृह मंत्री रहे महेंद्र बौद्ध पार्टी से टिकट न मिलने के कारण हाथी पर सवार होकर भांडेर से चुनाव लड़ रहे हैं। जानकारों का कहना है कि महेंद्र बौद्ध ने तमाम प्रयास किए कि वह कांग्रेस के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ेंगे। जब उन्हें कामयाबी नहीं मिली तो फिर उन्होंने कांग्रेस से बगावत करते हुए बसपा के टिकट पर यहां से मैदान में उतरना उचित समझा। सपा से लेकर बसपा कांग्रेस और भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़का जीतने वाले पूर्व मंत्री अखंड प्रताप सिंह ने एक बार फिर दलबदल किया है। अब फिर से वह बसपा के टिकट पर बड़ा मलहरा से परचम लहराने की तैयारी में हैं। जानकारों का कहना है कि इस सीट पर अखंड के मैदान में होने के कारण मुकाबला त्रिकोणी बन गया है।

मालवा के सांवेर में दलबदलूओं से जनता भ्रमित :

मालवा की सांवेर विधानसभा सीट पर जनता यह निर्णय नहीं कर पा रही है कि आखिर अब यहां से किस दल के उम्मीदवार को वोट दिया जाए। सिंधिया समर्थक जिस तुलसी सिलावट के कारण पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू ने भाजपा का दामन थामा था। कुछ समय बाद ही उन्होंने फिर दल बदला और कांग्रेस में शामिल होकर अब इसी पार्टी के बैनर तले वह सांवेर में मैदान मारने के लिए पूरी ताकत झोंक रहे हैं। यहां मतदाताओं का कहना है कि दोनों ही उम्मीदवारों ने अपनी परंपरागत पार्टियों के साथ में कहीं ना कहीं विश्वासघात किया है। नतीजतन हमारा वोट भी अब सोच समझकर जाएगा।

बुंदेलखंड की सुरखी सीट पर कांटे की टक्कर :

बुंदेलखंड अंचल में सुरखी विधानसभा सीट पर दल बदलू उम्मीदवारों के बीच कांटे की टक्कर बताई जा रही है। भाजपा की ओर से जहां पूर्व मंत्री एवं सिंधिया समर्थक गोविंद सिंह राजपूत दिन रात मतदाताओं को रिझाने में लगे हुए हैं तो वहीं दूसरी ओर अपनी परंपरागत पार्टी भाजपा से बगावत कर कांग्रेस में शामिल होकर चुनाव लड़ रही पूर्व विधायक पारुल साहू जीत हासिल करने कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। बताना होगा कि सुरखी सीट पर हमेशा से पिछड़े वर्ग का मतदाता निर्णायक भूमिका में रहा है। विधानसभा के उपचुनाव में भी यही तस्वीर सामने आ रही है। कहा जा रहा है कि जिस दल का उम्मीदवार पिछड़े वर्ग के वोटरों को लुभाने में कामयाब रहेगा, जीत यहां से उसी की पक्की है।

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