ग्वालियर, मध्य प्रदेश। ग्वालियर की राजनीति में राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे नजदीकी ग्वालियर विधानसभा से भाजपा प्रत्याशी प्रद्युम्न सिंह तोमर ने पिछले रिकॉर्ड को सुधारते हुए 33 हजार 123 वोट से लंबी जीत दर्ज की। इस जीत में कांग्रेस से भाजपा में आए अशोक शर्मा का भी खासा योगदान माना जा रहा है। प्रद्युम्न की जीत से यह साबित हो गया कि उन्होंने क्षेत्र के लिए जो काम किया उसका आशीर्वाद स्थानीय जनता ने जमकर दिया। उन्होंने पहले राउंड से ही बढ़त बनाई तो वह आखिरी राउंड तक जारी रही।
उप चुनाव में आने के बाद से ही ग्वालियर विधानसभा से प्रद्युम्न सिंह को घेरने के लिए कांग्रेस ने कई तरह की रणनीति बनाई थी, लेकिन उस रणनीति को फेल करने के लिए सिंधिया को भी जमकर मेहनत करना पड़ी और वह स्वयं क्षेत्र के कई ऐसे लोगों के पास गए और उनसे कहा कि आपके सामने प्रद्युम्न नहीं मैं खड़ा हूं। यही बात उन्होंने एक सभा में भी कही थी। वैसे प्रद्युम्न वर्ष 2018 में कांग्रेस से चुनाव जीतकर मंत्री बने थे, उसके बाद से ही भोपाल न बैठकर सीधे जनता के बीच में रहे ओर उनकी समस्याओं का समाधान कराने के साथ ही स्वंय नाले एवं नालियों में कूदकर सफाई का काम किया था। इस काम को देखकर स्थानीय लोग यह कहने लगे थे कि प्रदेश में पहला ऐसा मंत्री है जो अपने क्षेत्र की सफाई के लिए स्वयं हाथ बढ़ाकर काम कर रहा है। यही कारण है कि ग्वालियर विधानसभा के हर वर्ग का उनको इस चुनाव में भरपूर समर्थन मिला ओर यही कारण है कि वह उप चुनाव में 33 हजार से अधिक मतों के अंतर से चुनाव जीते।
कांग्रेस की रणनीति को किया फेल :
उप चुनाव के ऐलान के बाद से ही कांग्रेस ने गद्दार का आरोप लगाना शुरू कर दिया था और क्षेत्र में इसको लेकर पर्चे भी बांटे गए थे। इस पर्चे की चर्चा क्षेत्र में जमकर हुई थी, लेकिन प्रद्युम्न ने कांग्रेस की हर रणनीति को फेल साबित करते हुए जनता का आशीर्वाद लेने का काम किया। वैसे जबसे उन्होंने राजनीति शुरू की है तभी से क्षेत्र की समस्याओं को लेकर संघर्ष किया और कई बार जेल भी जा चुके हैं, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने जनता के हित की लड़ाई लडऩा बंद नहीं की थी। कांग्रेस में जब मंत्री थे तो केबिनेट बैठक में क्षेत्र के विकास मामले को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ से तकरार हो गई थी ओर उसके कुछ माह बाद ही उन्होंने सिंधिया के साथ कांग्रेस को अलविदा कहकर अपने विधायकी से इस्तीफा दे दिया था।
अशोक शर्मा की रही खासी भूमिका :
उप चुनाव के दौरान कांग्रेस जातिवाद का सहारा लेना शुरू किया था इसके बाद ही सिंधिया ने कांग्रेस के इस चक्र को तोडऩे के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक शर्मा से बात कर उनको महल बुलाया और भाजपा में लाने के लिए राजी किया। भाजपा में आने के बाद अशोक शर्मा ने प्रद्युम्न सिंह के लिए जमकर पसीना बहाया जिसका असर परिणाम पर दिखाई दिया। एक सभा के दौरान सिधिया ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से कहा था कि अब ग्वालियर की चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि चिंता करने के लिए अशोक शर्मा अपने साथ आ गए हैं।
96 हजार से अधिक वोट मिले :
ग्वालियर विधानसभा में भाजपा प्रत्याशी प्रद्युम्न सिंह को 96 हजार 27 वोट मिले जबकि कांग्रेस के सुनील शर्मा को 62 हजार 904 वोट मिले। इस तरह प्रद्युम्न 33 हजार 123 वोट से जीत दर्ज करने में सफल हुए। ग्वालियर विधानसभा में 1 लाख 62 हजार 859 वोट पड़े थे। वहीं डाक मत पत्र में से प्रद्युम्न को 1462 एवं सुनील शर्मा को 861 वोट मिले। जबकि ईव्हीएम एव डाकमत पत्रों को मिला कर नोटा को 1746 वोट मिले।
ग्वालियर विधानसभा में दूसरी बड़ी जीत :
ग्वालियर विधानसभा में प्रद्युम्न सिंह की दूसरी बड़ी जीत है। इससे पहले 1998 में नरेन्द्र सिंह तोमर ने कांग्रेस के अशोक शर्मा को 36 हजार 562 वोट से हराया था। उसके बाद वर्ष 2003 में नरेन्द्र सिंह ने कांग्रेस के बालेन्दु शुक्ला को 34,140 वोट से हराया था। प्रद्युम्न सिंह वर्ष 2008 में कांग्रेस से चुनाव लड़े तो मात्र 2110 वोट से जीत दर्ज थी ओर उसके बाद एक चुनाव हारे और जनहित के लिए संघर्ष किया तो 2018 में कांग्रेस से 21,044 वोट से जीत दर्ज की थी और अब उप चुनाव में 33 हजार से अधिक मतो से जीत दर्ज की।
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