मध्यप्रदेश की राजनीतिक डायरी : अहम् और ताकत का टकराव, चुनावी दौर में बढ़ी खींचतान
राजएक्सप्रेस। सियासत में विरोधियों की बीच जंग तो राजनीतिक व्यवस्था का अंग है पर जब अपने ही सवाल उठाएं और आपस में टकराएं तो राजनीतिक दल की मुश्किलें बढ़ती दिखाई देती हैं। सत्ताधारी भाजपा और कांग्रेस में इन दिनों कुछ इसी प्रकार के स्वर दिखाई दे रहे हैं। भाजपा सत्ता में है सो उसके नेताओं के अनुशासन तोड़ते बयान, आपसी खींचतान और अह्म के टकराव की जंग की गूंज ज्यादा ही तेज सुनाई पड़ रही है। क्षत्रपों में कांग्रेस में भी शीतयूद्ध है पर फिलहाल इसके स्वर पिछले दिनों की अपेक्षा मद्धिम हैं।
कर्नाटक चुनाव में मिली हार के बाद भाजपा में विरोध के स्वर अचानक बढ़ गए हैं। पूर्व मंत्री दीपक जोशी ने तो उपेक्षा का आरोप लगाते हुए पार्टी से ही किनारा कर लिया और हाथ से हाथ मिला लिया। इसके बाद से कई नेताओं के ऐसे बयान आए जो संगठन नेताओं की पेशानी पर बल डालने वाले हैं। बुंदेलखंड, ग्वालियर- चंबल और मालवा के कुछ नेताओं में इन दिनों आपसी टकराहट बढ़ी हुई है। इसका कारण चुनावी दौर में कुछ नेताओं के मन में घर कर गई असुरक्षा भी है। राजनीतिक दल में काम करने वाला व्यक्ति पद के लिए महत्वाकांक्षी न हो और ऐसा बहुत कम होता है। वर्तमान में जो कुछ भी चल रहा है उसे अहम् के टकराव के साथ चुनावी बिसात पर खुद को मजबूत करने और पार्टी से कुछ मांगने की चाहत के रूप में ही देखा जाना चाहिए।
भाजपा बड़ा राजनीतिक दल है, विस्तार भी उसका ज्यादा है। स्वभाविक रूप से उसके नेताओं में टकराहट ज्यादा होनी है पर संगठन को इस बात के लिए बधाई दी जा सकती है कि वह इस मर्ज को पूरी गंभीरता से ले रहा है और इसका इलाज करने की भी भरपूर कोशिश कर रहा है। मामला सागर का हो या फिर केपी यादव समेत अन्य नेताओं के बयानों का। इस बार संगठन ने नेताओं के बयान आते ही उन्हें नोटिस देने में कोई देर नहीं की और कुछ को प्रदेश भाजपा कार्यालय बुलाकर सीधी फटकार भी लगा दी। भाजपा का संगठन कांग्रेस से ज्यादा मजबूत है, खुद कांग्रेस भी इस बात को स्वीकारती है। बूथ तक उसकी पकड़ गहरी है पर इस बार अपने कार्यकर्ताओं के मन के असंतोष को पढऩा उसकी चुनौती है। राष्ट्रीय सहसंगठन महामंत्री शिवप्रकाश हो या फिर क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल, दोनों नेता हर जिले में जाकर कार्यकर्ताओं की बैठक ले रहे हैं।
खुद प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा हर छोटे से छोटे मामले को खुद देख रहे हैं। सीएम शिवराज सिंह चौहान अपने हर विधायक को समझा रहे हैं कि कार्यकर्ता का सम्मान हर हाल में रहे और उसे महत्व मिले। भाजपा का यही गुण है जो उसे सत्ता के करीब ले जाता है। भाजपा के नेता बयान कुछ भी दें पर असलियत में वे जानते हैं कि इस बार रण आसान नहीं है। कांग्रेस पूरी तैयारी से मैदान में उतरने वाली है। वह एंटीइनकमबेंसी पर भी फोकस करेगी। यही वजह है कि भाजपा विशेष सम्पर्क अभियान चलाकर प्रो इनकमबेंसी पर ध्यान दे रही है।
भाजपा अपने नेताओं के बयानों पर नियंत्रण के प्रयास में हैं तो रूठों को मनाने में भी लगी है। यू भी चुनाव के दौरान सत्ताधारी दल में वर्चस्व की जंग होती है तो विपक्षी दल में जमावट की जंग होती है। हालांकि यह जंग अधिकांशतया मर्यादा में ही रहती है। अतीत में भी इस तरह के वाक्ये सामने आते रहे हैं। भितरघात एक दूसरे को राजनीतिक रूप से ठिकाने लगाने की चालें सियासत में पहले भी चली जातीं रही हैं पर इस बार इनका महत्व इसलिए ज्यादा बढ़ गया है क्यों कि संघर्ष बहुत भीषण होने वाला है।
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