मध्यप्रदेश की राजनीतिक डायरी
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मध्यप्रदेश की राजनीतिक डायरी: आधी आबादी को साधने में लगी भाजपा, कांग्रेस का प्रियंका पर दांव

Political Diary of Madhya Pradesh: भाजपा भले की 200 पार का नारा दे पर उसके रणनीतिकार जानते हैं कि इस बार का रण आसान नहीं है। कुछ मंत्रियों के कारण उसकी जनता के बीच में किरकिरी हुई है।
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राजएक्सप्रेस। चुनाव के मुहाने पर खड़े प्रदेश में घोषणाओं और वादों का दौर जारी है। यूं भी चुनाव वादों और इरादों पर ही लड़े जाते हैं। प्रदेश की आधी आबादी को अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा सरकार ने लाड़ली बहना योजना लांच की तो अब आंगनबाड़ी कर्मचारियों का वेतन बढ़ा कर अपना वोट बैंक और पुख्ता करने की कोशिश की है। वहीं एंटीइनकमबेंसी की बात कह कर कांग्रेस भी एक के बाद एक बड़े वादे कर मतदाताओं को लुभाने के हरसंभव यत्न कर रही है। वहीं उसने अपनी स्टार नेत्री प्रियंका गांधी को प्रदेश में एक्टिव कर जनता और कार्यकर्ताओं के बीच नया संदेश देने का प्रयास किया है।

पहले बात सत्ताधारी भाजपा की- भाजपा भले की 200 पार का नारा दे पर उसके रणनीतिकार जानते हैं कि इस बार का रण आसान नहीं है। कुछ मंत्रियों के कारण उसकी जनता के बीच में किरकिरी हुई है। इसका खामियाजा चुनाव में उठाना पड़ सकता है। राजधानी के साथ कई जिलों में भी पार्टी को समन्वय की कमी से जूझना पड़ रहा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों से कैडरबैस भाजपा का शीतयुद्ध भी पार्टी नेताओं से छिपा नहीं है। तीन साल से खदबदा रहा कई नेताओं का असंतोष चुनाव के समय परवान चढ़ सकता है। पार्टी इस सच को समझ रही है। यही वजह है कि उसने चुनाव के एक साल पहले से ही राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश और क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल को एमपी भेज दिया था।

आरएसएस की पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाले दोनों नेता संगठन शिल्पी माने जाते हैं। वे हर जिले में बैठकर समन्वय बनाने के प्रयास कर रहे हैं। पार्टी की उम्मीद है कि आने वाले दिनों में सब सामान्य हो जाएगा और कहीं से बड़े विद्रोह की खबरें नहीं आएंगी। भाजपा के पास प्लस यह है कि उनके पास शिवराज सिंह चौहान जैसे मेहनती मुख्यमंत्री हैं। शिवराज चौथी बार के सीएम हैं, पर जनता के बीच उनका जादू खत्म नहीं हुआ है। आज भी मध्यप्रदेश में उनके कद का दूसरा लोकप्रिय नेता नहीं है। हमेशा सबसे ज्यादा मेहनत करने वाले शिवराज की खासियत यह है कि ज्यादा से ज्यादा समय जनता के बीच में रहते हैं।

सीएम इन दिनों जमकर पसीना बहा रहे हैं। वे हर रोज कोई न कोई नया बड़ा ऐलान कर रहे हैं। घोषणाएं भी ऐसी कि इसकी काट कांग्रेस के पास सीधी नहीं दिखती। दूसरी तरफ कांगे्रस को एंटीइनबेंसी का सहारा है। उसका मानना है कि जनता भाजपा से ऊब चुकी है। लिहाजा उसे खुद की सरकार बनने के आसार दिख रहे हैं। कांग्रेस इस बार पिछली बार से ज्यादा एक्टिव समय से पहले दिख रही है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह इस बार 15 महीनों की सरकार जाने के बाद से ही एक्टिव हैं। दिग्विजय सिंह तो लगातार बैठकें कर संगठन को चाक-चौबंद करने में लगे हैं।

दूसरी तरफ कमलनाथ के मैदानी दौरे और बैठकों का सिलसिला जारी है। चुनाव से छह महीने पहले प्रियंका गांधी खुद एमपी में एक्टिव हो गई हैं। बताया यह भी जा रहा है कि इस बार प्रदेश में वे स्टार प्रचारक तो होंगी ही। चुनाव के सारे सूत्र भी उनके हाथ में होंगेे। प्रियंका गांधी की सक्रियता कहीं न कहीं भाजपा की चिंता बढ़ाने वाली साबित होगी। आने वाले दिनों में सियासी माहौल की तपिश तेज होना तय है।

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