पातालफोड़ खुदाई
पातालफोड़ खुदाईराज एक्सप्रेस, संवाददाता

पातालफोड़ खुदाई : पत्थर खदान में खनन के दौरान हो रहा अधिनियम का उल्लंघन

संभागीय मुख्यालय से सटे कंचनपुर ग्राम के आस-पास का इलाका पत्थर खनन और धूल उगलती क्रेशरों की भारी कीमत चुका रहा है। स्थानीय भाषा में इतनी गहरी खुदाई को पातालफोड़ खुदाई कहते हैं।
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पत्थर खदानों में नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, एक ओर जहां प्रशासन द्वारा आए दिन अवैध उत्खनन पर कार्यवाही का दंभ भरता है, दूसरी ओर संभागीय मुख्यालय से सटे कंचनपुर ग्राम में पत्थर खदान के नाम पर खाई खोद दी गई है, खदान संचालकों द्वारा किये जा रहे नियमों के उल्लंघन ने खनिज विभाग को कटघरे में खड़ा कर दिया है।

शहडोल, मध्यप्रदेश। संभागीय मुख्यालय से सटे कंचनपुर ग्राम के आस-पास का इलाका पत्थर खनन और धूल उगलती क्रेशरों की भारी कीमत चुका रहा है। पत्थर उद्योग ने क्षेत्र के पर्यावरण और जन स्वास्थ्य पर ऐसी चोट की है, जिसकी भरपाई आसान नहीं है। खदान में खनन लगातार जारी है, स्थानीय भाषा में इतनी गहरी खुदाई को पातालफोड़ खुदाई कहते हैं। इस तरह की खुदाई खान अधिनियम 1952 का खुला उल्लंघन है। अधिनियम कहता है कि खनन उच्चतम बिंदु से निम्नतम बिंदु के 6 मीटर की गहराई तक ही हो सकता है। अधिनियम में खदान में 18 वर्ष से कम उम्र के मजदूर से काम कराना प्रतिबंधित है। साथ ही मजदूरों को काम के निश्चित घंटे, चेहरे को ढंकने के लिए मास्क, चिकित्सा सुविधा, समान मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने को कहा गया है। लेकिन उक्त पत्थर खदान में इन प्रावधानों का पालन नहीं किया जा रहा है।

प्रतिबंधित विस्फोटक का उपयोग :

पत्थर व्यवसायियों पर खनन विभाग मेहरबान है, क्षेत्र में अवैध खनन का धंधा भी फल-फूल रहा है। सूत्रों की माने तो उक्त खदान में खनन में प्रतिबंधित विस्फोटक अमोनियम नाइट्रेट का भी प्रयोग होता है। चर्चा है कि उक्त खदान संचालकों को खनिज विभाग ने जिन नियम शर्तों के अलावा जितना भू-खण्ड पत्थर उत्खनन के लिए दिया था, उससे कहीं अधिक क्षेत्र में उत्खनन का कार्य किया गया है, इसके अलावा पत्थर खदान संचालकों ने पत्थर उत्खनन स्थल को खाई के रूप में परिवर्तित कर दिया है, इससे स्पष्ट होता है कि अवैध खनन प्रशासन की मिलीभगत से होता है।

विभाग हुआ विफल :

खनन विभाग की मिली भगत के चलते पत्थर खदान संचालकों की मनमानी अपने चरम पर है, सूत्रों की मानें तो डब्बू और गुड्डू की जोड़ी खदान की आड़ में पत्थर के अवैध कारोबार में लगे हैं। इस कारण सरकार को प्रतिमाह करोड़ों का चूना लग रहा है, लेकिन इस गोरख धंधे से जुड़े लोग रातों रात लखपति बन रहे हैं। विभाग इस गोरख धंधा पर अंकुश लगाने में पूरी तरह विफल रही है।

उत्खनन में हो रहा बारुद का उपयोग :

कंचनपुर के समीप पत्थर का उत्खनन किया जा रहा है, चर्चा है कि पत्थर खनन करने के लिए बारुद का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। बारूद का विस्फोट से पहले आस-पास के लोगों को सूचना नहीं दिए जाने से इस क्षेत्र में हर समय हादसों का अंदेशा बना रहता है। उक्त पत्थर खदान एवं आस-पास के ग्रामीण खदान क्षेत्र में अपने जानवर चराने लाते हैं, लेकिन खदान के बाहरी क्षेत्र में सुरक्षा घेरा न होने की वजह से आये दिन घटना अंदेशा बना रहता है।

प्राकृतिक सुंदरता हो रही नष्ट :

संभागीय मुख्यालय से सटे कंचनपुर क्षेत्र में संभवत: खनिज विभाग की अनुमति से खाई का निर्माण किया जा रहा है, चर्चा है कि पत्थर उत्खनन के साथ ही मुरुम की खदान बना कर धड़ल्ले से अवैध कारोबार किया जा रहा है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि ग्राम पंचायत का प्रस्ताव और खनिज विभाग की अनुमति के बगैर ही हाइवा एवं जेसीबी से मुरूम और पत्थरों का अवैध उत्खनन करने से प्राकृतिक सुंदरता नष्ट हो रही है। ग्रामीणों का कहना है कि आस-पास के ग्रामीण अंचल में क्रेशर मालिक द्वारा पत्थर का उत्खनन कर खाई निर्मित कर दी है, जिससे घटना की आशंका के साथ ही पानी की समस्या गहराती जा रही है, साथ ही पास ही नाले का स्वरूप भी इस पत्थर के चलते बिगडऩे की संभावना गहराती जा रही है।

प्रशासन को लेना चाहिए संज्ञान :

ग्रामीणों की शिकायत है कि खनिज विभाग के संरक्षण के बगैर पत्थर और मुरुम का अवैध उत्खनन संभव ही नहीं है। चर्चा है कि क्रेशर उद्योग के लिए जिस भूमि से पत्थर का उत्खनन करने की अनुमति ली गई है, उस खसरा नंबर के बजाए अन्य स्थान से पत्थरों का अवैध उत्खनन कराया जा रहा है। अगर समय रहते प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया तो, डब्बू और गुड्डू की जोड़ी कंचनपुर में खाई के साथ ही भू-जल को भी पत्थर उत्खनन के भेंट चढ़ा देंगे।

इनका कहना है :

मामला मेरे संज्ञान में नहीं है, अगर खदान में किसी भी प्रकार की अनियमितता पाई जाती है तो, नियमानुसार कार्यवाही की जायेगी।

प्रमोद शर्मा, खनिज अधिकारी, शहडोल

मामला आपके द्वारा संज्ञान में लाया गया है, जल्द ही पूरे मामले को दिखवाता हूं।

नरेन्द्र सिंह धुर्वे, अनुविभागीय अधिकारी राजस्व, सोहागपुर

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