मध्यप्रदेश में तहसीलदारों के कार्यक्षेत्र का दायरा बढ़ेगा
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अब तहसीलदारों के कार्यक्षेत्र का दायरा बढ़ेगा- राज्य भूमि सुधार आयोग ने की सिफारिश

MP State Land Reforms Commission: यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले सरकार आयोग की सिफारिश पर अमल करने का निर्णय ले सकती है।
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भोपाल,मध्यप्रदेश । प्रदेश के तहसील मुख्यालयों में पदस्थ होने वाले तहसीलदार और नायब तहसीलदार के कार्यक्षेत्र का दायरा अब सीमित नहीं रहेगा। उनका दायरा बढ़ाकर पूरे तहसील क्षेत्र में किया जाएगा। अब तक कई मामलों में तहसीलदार, नायब तहसीलदारों के न्यायालयों को क्षेत्र विशेष या सर्किल तक सीमित कर दिया जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकेगा। इससे अब राजस्व से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए आने वाले लोगों को ज्यादा बेहतर सुविधा मिल सकेगी और उन्हें सुनवाई के लिए इधर से उधर नहीं भटकना पड़ेगा। राज्य भूमि सुधार आयोग ने इस संबंध में अनुशंसा तैयार कर ली है। अब इस अनुशंसा पर अंतिम निर्णय राज्य सरकार को लेना है।

यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले सरकार लोगों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए आयोग की सिफारिश पर अमल करने का निर्णय ले सकती है। इसके लिए राजस्व विभाग अलग से कैबिनेट के लिए प्रस्ताव भी तैयार कर सकता है। पदाधिकारी के नाम से तहसील न्यायालय चलाने के चलन पर लग सकता है विराम आयोग ने जो सिफारिश की है उसके मुताबिक तहसील के न्यायालयों के क्षेत्रों को राजस्व निरीक्षक वृत्त वार, या पटवारी हल्कावार या इसी तरह सेक्टरवार बांटने और तहसील न्यायालय के पदाधिकारी के नाम से क्रियान्वित करने की प्रक्रिया को समाप्त किया जा सकता है।

इस व्यवस्था के बजाय प्रत्येक तहसील के लिए न्यायालयों की संख्या तहसील में वर्ष के दौरान दर्ज होने वाले अनुमानित प्रकरणों के भार के आधार पर निर्धारित किया जा सकता है। इसके लिए पहले राज्य सरकार को अधिसूचित करना होगा। आयोग ने सिफारिश की है कि इन सभी न्यायालयों का कार्यक्षेत्र संपूर्ण तहसील रखा जाए, जिससे कि राजस्व प्रकरण की तहसील के किसी भी न्यायालय में सुनवाई हो सके और पदस्थापना में बदलाव के कारण भ्रम की स्थिति नहीं बन सके।

तबादला होने पर प्रभावित होती है व्यवस्था वर्तमान में जो व्यवस्था है उसके हिसाब से तहसील न्यायालय पदाधिकारी के नाम से होते हैं। यानी ये किसी तहसीलदार या नायब तहसीलदार के नाम से ही होता है। ऐसे में यदि संबंधित तहसीलदार या नायब तहसीलदार का तबादला हो जाए तो दिक्कतें शुरू हो जाती है। तबादला या नए अधिकारी की पदस्थापना पर क्षेत्राधिकार भी घटते- बढ़ते रहता है। इससे न सिर्फ आम जनता को उसके क्षेत्र के लिए सक्षम न्यायालय तलाशने में दिक्कत आती है बल्कि वरिष्ठ न्यायालयों से प्रकरण लौटने पर वह किस न्यायालय में जाएंगे, ये भी तय करने में परेशानी होती है।

आयोग ने सिफारिश में कहा है कि प्रत्येक अधिकारी को न्यायालय का कार्य देने के लिए न्यायालयों के क्षेत्राधिकार तो बांट दिए जाते हैं, पर उन्हें चलाने के लिए न तो जरुरी सपोर्टिंग स्टॉफ उपलब्ध कराया जाता है और न ही न्यायालय लगाने के लिए उपयुक्त कक्ष उपलब्ध कराया जाता है। तहसील न्यायालयों को क्रमांक देकर संचालित करने की व्यवस्था हो सकती है लागू राज्य भूमि सुधार आयोग ने जो सिफारिश की है उसके मुताबिक जिला कलेक्टर द्वारा तहसील न्यायालयों को क्रमांक देकर संचालित करने की व्यवस्था लागू की जा सकती है। इससे तहसील में पदस्थ भारसाधक तहसीलदार के राजस्व न्यायालय को न्यायालय तहसीलदार क्रमांक एक के आधार पर बताकर तहसील और जिला नाम दिया जा सकता है।

इसी क्रम में तहसील में भारसाधक तहसीलदार के अतिरिक्त पदस्थ अपर तहसीलदार और नायब तहसीलदार के राजस्व न्यायालयों को भी यथास्थिति न्यायालय तहसीलदार क्रमांक 2, क्रमांक 3 सहित इसी तरह अन्य क्रमांक भी दिए जा सकते हैं। कोर्ट रूम के साथ दो कर्मचारियों का स्टॉफ भी होगा जरुरी आयोग ने सिफारिश में साफ किया है कि राजस्व न्यायालयों के कार्य संपादन के लिए मामलों के विभिन्न प्रक्रमों को विचार में लेते हुए तथा मामले शुरू होने से उसके निराकरण के बाद अभिलेखागार में जमा करने और समय-समय पर प्रतिलिपि देने जैसे कार्यों को समय-सीमा में संपादित किया जाना चाहिए। इसके लिए जरुरी है कि तहसील न्यायालयों में कम से कम लिपिक स्तर के 2 कर्मचारी और चतुर्थ श्रेणी स्तर के भी 2 कर्मचारी अनिवार्य रूप से रहें। न्यायालय के काम को बेहतर तरीके से चलाने के लिए सभी तहसील न्यायालय के लिए एक अलग से कोर्ट रूम की भी व्यवस्था होना चाहिए।

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