मध्यप्रदेश: 'आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों' को समर्पित संग्रहालय

राज्य के जनसम्पर्क विभाग ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर सूचना दी कि, मध्यप्रदेश के दो जिलों में आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों की याद में बनने जा रहे हैं संग्रहालय।
आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की याद में संग्रहालय बनाने जा रही है मध्यप्रदेश सरकार।
आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की याद में संग्रहालय बनाने जा रही है मध्यप्रदेश सरकार।मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय, भोपाल
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राज एक्सप्रेस। मध्यप्रदेश में आदिवासी समुदाय के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के योगदान को चिरस्थायी बनाने के लिये छिंदवाड़ा और जबलपुर में संग्रहालयों की स्थापना की जा रही है। राज्य जनसम्पर्क विभाग ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर ये जानकारी दी।

इसके साथ ही, विशेष पिछड़ी जनजातीय संस्कृतियों के संरक्षण के लिये भोपाल में राज्य-स्तरीय तथा डिण्डोरी, छिंदवाड़ा और श्योपुर में जिला-स्तरीय सांस्कृतिक केन्द्र स्थापित किये जायेंगे। संग्रहालयों और सांस्कृतिक केन्द्रों की स्थापना के लिये आदिम-जाति कल्याण विभाग के बजट में 53 करोड़ 50 लाख रूपये का प्रावधान किया गया है।

छिंदवाड़ा संग्रहालय के लिये शोधकर्ताओं ने 19 आदिवासी सेनानियों और उनके 10 प्रमुख संघर्षों की गाथाएँ संकलित कर ली हैं। गाथाओं का संकलन अभी भी निरंतर जारी है। संग्रहालय में अत्याधुनिक तकनीक से इन कहानियों को दिखाया जायेगा। यहाँ तीन मुख्य गैलरियाँ होंगी, जिनमें किले, मॉडलिंग और रेखाचित्र के माध्यम से जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम को प्रदर्शित किया जायेगा।

संग्रहालय में मीटिंग और सेमिनार हॉल अलग-अलग रहेंगे। इसके अलावा, फूड कोर्ट भी होगा, जिसमें पर्यटकों के लिये प्रदेश की विभिन्न जनजातियों के पारम्परिक व्यंजन उपलब्ध रहेंगे। पर्यटक संग्रहालय की गतिविधियों का वीडियो मोबाईल ऐप के माध्यम से भी देख सकेंगे। मोबाईल ऐप से लोकेशन के आधार पर पर्यटकों को गाइड की तरह रनिंग कॉमेन्ट्री दी जा सकेगी।

छिंदवाड़ा जिले के जिलाधीश(कलेक्टर) डॉ. श्रीनिवास शर्मा बताते हैं कि जिले में एक छोटा सा संग्रहालय बना हुआ है। सरकार उस ही को भव्य स्तर पर बनाना चाह रही है।

"संग्रहालय का वर्तमान नाम 'बादल भोई' है, भव्य संग्रहालय बनने के बाद भी इसका नाम यही रहेगा। छिंदवाड़ा आदिवासी बहुल क्षेत्र है। श्री बादल भोई जिले के क्रान्तिकारी जनजातीय नेता थे। इस संग्रहालय के लिए ज़मीन आवंटित कर दी गई है। साथ ही 36 करोड़ रूपए का बजट भी जारी किया गया है। हम उम्मीद करते हैं कि ये अगले दो सालों में बनकर तैयार हो जाएगा।"

डॉ. श्रीनिवास शर्मा, जिलाधीश (छिंदवाड़ा)

यह संग्रहालय 20 अप्रैल 1954 में बना था। साल 1975 में इसे राज्य स्तरीय संग्रहालय का दर्ज़ा दिया गया। जिसके बाद 8 सितंबर 1997 को इसका नाम बदल कर बादल भोई जनजातीय संग्रहालय किया गया। ऐसा स्वतंत्रता सेनानी श्री बादल भोई के सम्मान में हुआ। उनके नेतृत्व में हज़ारों आदिवासियों ने सन् 1923 में कलेक्टर बंगले पर एकत्र होकर विरोध प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन में उन पर लाठियां बरसाई गईं और बादल भोई को गिरफ्तार किया गया था। जेल में ही ज़हर देकर उनकी हत्या कर दी गई थी।

बादल भोई संग्रहालय
बादल भोई संग्रहालयChhindwara district website
बादल भोई संग्रहालय मध्यप्रदेश का सबसे पुराना और बड़ा संग्रहालय है। यहां जिले की जनजातियों से सम्बन्धित अद्भुत वस्तुएं प्रदर्शन के लिए रखी गई हैं। इनमें घर, कपड़े, जेवर, हथियार, कृषि के साधन, संगीत, नृत्य, कला, त्यौहार आदि की जानकारियां शामिल हैं।

संग्रहालय जनजातीय समुदाय की उन्नत परम्पराओं और प्राचीन संस्कृति पर प्रकाश डालता है। जिले में गौंड और बैगदो प्रमुख जनजातियां थीं। सितंबर 2003 में इस संग्रहालय का प्रवेश शुल्क 2 रूपए तय किया गया, इससे पहले यहां प्रवेश निशुल्क था।

जबलपुर में आदिवासी समुदाय के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह की स्मृति में संग्रहालय की स्थापना की जा रही है। इसके साथ ही, प्रदेश की विशेष पिछड़ी बैगा, भारिया और सहरिया जनजातियों की संस्कृति तथा कलाओं के संरक्षण के लिये भोपाल में राज्य-स्तरीय सांस्कृतिक केन्द्र स्थापित किया जा रहा है। डिण्डोरी, छिंदवाड़ा और श्योपुर में जिला-स्तरीय सांस्कृतिक केन्द्र बनाये जा रहे हैं।

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