मध्यप्रदेश की 67वीं सालगिरह
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Madhya Pradesh Sthapna Diwas : मप्र गठन के समय आठ सरकारी विभाग थे, आज संख्या बढ़कर 60 के ऊपर पहुंची

भोपाल, मध्यप्रदेश : केन्द्रीय समिति ने जबलपुर को किया था राजधानी प्रस्तावित बाद में भोपाल पर लगी मुहर। मप्र की 67वीं सालगिरह पर गठन समय के साक्षी बुजुर्ग रिटायर्ड अफसरों ने सुनाए किस्से।
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भोपाल, मध्यप्रदेश। सरकार मप्र स्थापना दिवस की 67वीं सालगिरह मना रही है। प्रदेश ने गठन से अभी तक अनेक उतार चढ़ाव देखे तो राजधानी से लेकर जिला, तहसीलों ग्रामों और मजरा टोलों में वृद्धि हुई है। स्थापत्य समय के साक्षी रहे मौजूदा समय में रिटायर्ड बुजुर्ग अधिकारी कर्मचारियों की मानें तो उस दौर से अब तक बहुत कुछ बदला है। वर्तमान सत्ता की भी खुलकर प्रशंसा की कि किस प्रकार सरकार सूबे के विकास में कल्याणकारी योजनाओं को जमीन पर उतार रही है।

मप्र गठन के समय सबसे बड़ी दिक्कत भाषा की थी। सूबा विलीनीकरण में जब भोपाल को राजधानी चुना गया तो नवाबीदौर होने के कारण उर्दू का प्रचलन सबसे अधिक था। उस दौर में भोपाल नवाब के यहां दिवंगत बदामीलाल शर्मा भोपाल नबाव की रियासत में पटवारी हुआ करते थे। शहीद नगर में निवास था, जो भोपाल की आबादी का आखरी हिस्सा हुआ करता था। उनके 78 वर्षीय रिटायर्ड पुत्र योगेश शर्मा बताते हैं कि गठन के प्रारंभिक दौर में लोकायुक्त बंगला में विधानसभा संचालित होती थी। मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू थे। जिनका आवास बीआईपी रोड स्थित आईना बंगला में था। श्री शर्मा कहते हैं कि स्टेट बैंक चौराहे तक ही भोपाल विकसित था। आगे जंगल ही जंगल हुआ करता था। योगेश शर्मा कहते हैं कि उस समय पीएचई, पीडब्ल्यूडी, नगर निगम और विद्युत, विक्रयकर आज का वाणिज्यकर सहित आठ विभाग ही हुआ करते थे।

नेहरू ने किया था वल्लभ भवन का शिलान्यास : उमाशंकर

82 वर्षीय रिटायर्ड जनरल मैनेजर आईओएफएस उमाशंकर हीरालाल जोशी कहते हैं कि मप्र गठन के लिए जब केन्द्र सरकार ने कमेटी बनाई थी। तब उस दौर में जवाहरलाल देश के प्रधानमंत्री हुआ करते थे। जबकि मप्र के राज्यपाल पट्टाभि सीता रमैया हुआ करते थे। मप्र गठन के तीन साल बाद यानि 1959 में राज्य मंत्रालय बनकर तैयार हो गया था। जिसका शिलान्यास भी देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राज्यपाल रमैया की मौजूदगी में किया था। 1956 में मप्र गठन के तीन साल बाद ही वल्लभ भवन बनकर तैयार हो गया था।

पांच पैसे का मिलता था भोपाल में पान का बीड़ा : अंबिका

89 वर्षीय अस्सिटेंट विक्रयकर अधिकारी अंबिका रावत का कहना है कि 1956 के बाद वह सेवा में आये थे, लेकिन देखा सब कुछ अपनी आंखों के सामने ही है। उन्होंने बताया कि एक दर्जन से कम विभाग ही हुआ करते थे। जमाना इतना सस्ता था कि पांच पैसे में पान मिलता था। आज जैसी वाहनों की संख्या नहीं थी। अधिकांश लोग पैदल ही दफ्तर जाया करते थे। सद्भाव इतना था कि लोग एक दूसरे की मदद को हदय और आत्मा से आगे आया करते थे। मौजूदा समय में परिस्थति विपरीत हैं। आज काम में ईमानदारी गायब हो गई है।

जबलपुर राजधानी नहीं बनी तब हुआ था विरोध : गणेशदत्त

78 वर्षीय रिटायर्ड फिशरीज ऑफीसर एवं सीनियर वाइस प्रेसीडेंट एसोसिएशन गणेशदत्त जोशी कहते हैं कि मप्र गठन के लिए भारत सरकार ने कमेटी बनाई थी। इस कमेटी ने जबलपुर को राजधानी प्रपोच किया था। क्योंकि गठन के पूर्व सेन्ट्रल प्रोविएंश(सीपी) एण्ड बरार महाराष्ट्र के हिस्से में आता था। उस समय महाकौशल और विदर्भ के 22 जिले हुआ करतै थे। जबकि राजधानी नागपुर थी। मौजूदा महाराष्ट्र राज्य के बड़ारा रावतमाल, वर्धा, बुलधाना सहित अन्य जिले सेन्ट्रल प्रोविएंश एण्ड बरार में आते थे। जब जबलपुर राजधानी नहीं बनी तो वहां के लोगों ने इसका विरोध किया था। बाद में तालमेल बनाने के लिए जबलपुर हाईकोर्ट स्थापित किया गया और राजधानी भोपाल को बनाया गया। गठन में विंध्य एवं महाकौशल और मध्य भारत को शामिल किया गया था।

गठन के समय मात्र दो बसें ही चला करती थीं : अजीज

नवाबी दौर में पहले रंगरूट फिर सिपाही रहे बुजुर्ग अब्दुल अजीज कहते हैं कि मप्र गठन के समय के वह साक्षी हैं। शुरू में मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू हुआ करते थे। जिस जगह विधानसभा लगा करती थी, वह भोपाल का आखरी हिस्सा था। उस समय मात्र दो बसें भोपाल चला करतीं थीं। वाहनों की कमी के कारण अधिकांश लोग पैदल ही दफ्तर जाया करते थे। उन्होंने पांच रूपए किलो शुद्ध घी खाया तो पांच पैसे में एक किलो गेहूं भी आता था।

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