विधानसभा चुनाव में मतदान 85 फीसदी तक कराने की होगी कोशिश।
स्वीप गतिविधि पर सबसे अधिक फोकस करेगा चुनाव आयोग।
पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान मप्र में 74.97 फीसदी मतदान हुआ था।
भोपाल, मध्यप्रदेश । मप्र के कलेक्टर और जिला निर्वाचन अधिकारियों की इस बार नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव(MP Assembly Election) के दौरान कड़ी परीक्षा होगी। चुनाव आयोग उन्हें जिले में 10 फीसदी मतदान प्रतिशत टॉस्क देने की तैयारी में है। यदि कलेक्टर चुनाव आयोग के टॉस्क को पूरा करने में कामयाब रहे तो मप्र में होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान मतदान 85 फीसदी तक पहुंच सकता है। यदि ऐसा हुआ तो फिर ये अब तक का सबसे अधिक मतदान होगा। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान मप्र में 74.97 फीसदी मतदान हुआ था। पिछले चुनाव में 75.84 फीसदी पुरूष और 74.01 फीसदी महिला मतदाताओं ने मतदान में हिस्सा लेकर लोकतंत्र की सबसे बड़ी जिम्मेदारी और कर्तव्य का निर्वहन किया था।
विधानसभा चुनाव के दौरान मतदान के मामले में मप्र का ट्रेक रिकार्ड वैसे ही बेहतर है अब इसे और बेहतर करने की तैयारी है। चुनाव आयोग ने पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान मप्र को 80 फीसदी मतदान कराने का लक्ष्य दिया था, लेकिन ये लगभग 5 फीसदी कम रहा। 5 फीसदी बढ़े तो भी बड़ी उपलब्धि यदि आयोग 10 फीसदी मतदान प्रतिशत बढ़ाने का टारगेट देने जा रहा है तो इसके पीछे वजह भी है। बताया जा रहा है कि यदि आयोग के टारगेट का आधा भी जिला निर्वाचन अधिकारी पूरा करने में कामयाब रहते हैं तो भी मतदान का प्रतिशत 80 फीसदी तक पहुंच सकता है।मप्र में विधानसभा चुनाव में 80 फीसदी मतदान होने का साफ मतलब है कि मतदान प्रतिशत में कम से कम 5 फीसदी की बढ़ोतरी होगा।
5 फीसदी बढ़े तो भी बड़ी उपलब्धि
यदि आयोग 10 फीसदी मतदान प्रतिशत बढ़ाने का टारगेट देने जा रहा है तो इसके पीछे वजह भी है। बताया जा रहा है कि यदि आयोग के टारगेट का आधा भी जिला निर्वाचन अधिकारी पूरा करने में कामयाब रहते हैं तो भी मतदान का प्रतिशत 80 फीसदी तक पहुंच सकता है। मप्र में विधानसभा चुनाव में 80 फीसदी मतदान होने का साफ मतलब है कि मतदान प्रतिशत में कम से कम 5 फीसदी की बढ़ोतरी होगा। ऐसा भी हो गया तो भी ये आयोग के लिए बड़ी उपलब्धि होगी।
शहरी वोटरों पर अधिक फोकस
सामान्य तौर पर देखने आया है कि शहरों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक मतदान होता है। शहरों के संपन्न और ज्यादा पढ़े- लिखे लोग मतदान करने के बजाय दिन को मौज मस्ती में बीताते हैं। विशेष रूप से एेसी कॉलोनियां जिसे संभ्रांत लोग निवास करते हैं, वहां तो मतदान का प्रतिशत और भी बुरा होता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए इस बार ऐसे क्षेत्रों के वोटरों को मतदान केंद्रों तक लाने के लिए विशेष कैंपन चलाया जाएगा, जिससे कि वे मतदान के लिए प्रेरित हों।
ग्वालियर, चंबल और निमाड़ पर अधिक रहेगा फोकस
ग्वालियर, चंबल संभाग में अन्य क्षेत्रों के मुकाबले कम मतदान मतदान होता है। यही स्थिति निमाड़ क्षेत्र की भी है, वहीं महाकौशल, इस मामले में सबसे ज्यादा सचेत नजर आता है। महाकौशल के बालाघाट, मंडला, डिंडोरी, नरसिंहपुर, सिवनी, छिंदवाड़ा सबसे अधिक मतदान वाले जिलों में शुमार होते हैं। मध्य क्षेत्र और मालवा रीजन भी मतदान के मामले में ठीक - ठाक है, लेकिन यहां के शहरी क्षेत्रों में मतदान का प्रतिशत कम ही रहता है। यही आयोग का सबसे बड़ी चिंता है। विशेष रूप से भोपाल और इंदौर जैसे क्षेत्रों के शहरी विधानसभा क्षेत्रों में मतदान कम होता है। ऐसे में आयोग की नजर इस बार ऐसे क्षेत्रों पर अधिक रहेगी।
पिछले चुनाव में विधानसभा क्षेत्र श्योपुर, विजयपुर, सबलगढ़, दतिया, पोहरी, पिछोर, कोलारस,बामोरी, चांचोड़ा, राघौगढ़, चंदेरी, मुंगावली, खुरई, सुरखी, रहली, टीकमगढ़, पृथ्वीपुर, निवाड़ी, पथरिया, दमोह, जबेरा, पवई, नागोद, मैहर, अमरपाटन, रामपुर बघेलान, देवसर, ब्यौहारी आदि में 75 फीसदी से अधिक वोटिंग हुई थी ।
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