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सांसद से अधिक हुई महापौर एवं सभापति की निधि, पार्षद भी कर रहे मांग, बजट में महापौर निधि 5 से 8 करोड़ की गई

महापौर निधि 5 करोड़ से बढ़ाकर 8 करोड़ एवं सभापति निधि 5 करोड़ से बढ़ाकर 6 करोड़ कर दी गई है। इतना ही नहीं पार्षद विरोध न करें इसलिए उनकी निधि 45 लाख से बढ़ाकर 50 लाख कर दी गई है।
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ग्वालियर। नगर निगम द्वारा जारी किए गए वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट में महापौर निधि 5 करोड़ से बढ़ाकर 8 करोड़ कर दी गई है। इसके साथ ही सभापति निधि को भी 5 करोड़ से 6 करोड़ तथा पार्षद निधि को 45 लाख से बढ़ाकर 50 लाख किया गया है, लेकिन इससे पार्षद संतुष्ट नहीं है। पार्षद अपनी निधि 1 करोड़ कराना चाह रहे हैं और इस मंशा को पूरा करने के लिए बजट बैठक में संसोधन लगाए जायंगे। ग्वालियर नगर निगम में महापौर एवं सभापति की निधि सांसद एवं विधायक से अधिक हो गई है। यह चर्चा का विषय बना हुआ है। 

नगर निगम में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद कई निर्णय लिए गए जो सवालों के घेरे में आ रहे हैं। सबसे पहले 2022-23 के बजट में पार्षदों ने पूरी निधि की मांग परिषद से पास कराई। जबकि परिषद का गठन अगस्त माह में हुआ था। इसके बाद एमआईसी की बैठकों में भी कई निर्णय अपनी सुविधा के अनुसार करा लिए गए जिसे लेकर भाजपा पार्षद भी आवाज नहीं उठा रहे हैं। इसी बीच वित्तीय वर्ष 2023-24 का बजट परिषद में पेश किया गया है जिसमें महापौर निधि 5 करोड़ से बढ़ाकर 8 करोड़ एवं सभापति निधि 5 करोड़ से बढ़ाकर 6 करोड़ कर दी गई है। इतना ही नहीं पार्षद विरोध न करें इसलिए उनकी निधि 45 लाख से बढ़ाकर 50 लाख कर दी गई है, लेकिन इससे पार्षद खुश नहीं है। पार्षद अपनी निधि 1 करोड़ कराने की रणनीति बना रहे हैं। इसके लिए भाजपा के तीन पार्षदों ने पहल की और अब कांग्रेसी पार्षद भी उनके समर्थन में आ गए हैं। इस मांग को पूरा कराने के लिए बजट बैठक से पहले संसोधन लगाए जायंगे और परिषद में चर्चा कराकर इस मामले को पास कराया जायगा। 

200 करोड़ की आय पर 80 करोड़ की निधि कैसे संभव

नगर निगम ने भले ही 21 अरब रूपय का बजट पारित किया हो लेकिन हकीकत इससे बहुत अलग है। बजट में प्रस्तावित राशि में से 85 प्रतिशत आय केन्द्र एवं प्रदेश सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के जरिए होती है। फिर चाहे अमृत 2 के 912 करोड़ रुपय हों या 15 वें वित्त आयोग से हर साल मिलने वाले 102 करोड़ रुपय। इसमें पार्षद निधि से काम कराना संभव नहीं है। नगर निगम स्वंय के बल पर मात्र 200 से 220 करोड़ रुपय की आय ही कर पाती है। इसमें भी जलकर की वसूली खर्चे से कम होती है इसलिए इसे आय में जोड़ना संभव नहीं है। अगर पार्षद निधि एक करोड़ हो जाती है तो 66 पार्षदों की निधि 33 करोड़ होगी और महापौर एवं सभापति की 14 करोड़ निधि मिलाकर कुल 80 करोड़ रुपय होंगे। 200 करोड़ की आय में 80 करोड़ की निधि देना कैसे संभव है। 

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