राज एक्सप्रेस। प्रदेश में शराब बंदी को लेकर भाजपा की तेजतर्रार नेत्री उमा भारती लगातार आवाज बुलंद किए हुए हैं और उसको लेकर उन्होंने सरकार को भी 15 जनवरी तक का समय दिया है। अब शराब के जरिए ही प्रदेश सरकार के खजाने में 10 हजार करोड़ से अधिक का राजस्व आता है ऐसे में उसे बंद किया जाना फिलहाल संभव नहीं दिख रहा है, लेकिन अब जो नई आबकारी नीति आएगी उसी के जरिए उमा भारती अपनी राजनीति की रास्ता तय कर सकती हैं।
शराब बंदी को लेकर उमा भारती ने जिस तरह से दुकानों पर पत्थर फेंक कर यह जता दिया था कि वह शराब के खिलाफ हैं, लेकिन उस पत्थरबाजी के कारण सरकार के सामने जरूर संकट खड़ा हो गया था कि अपनी नेत्री को किस तरह से मनाया जाए। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह रूठों को मनाने में माहिर हैं सो उन्होंने उमाजी को मना लिया था, लेकिन उमा भारती लंबे समय तक शांत बैठने वालों में से नहीं है। वैसे यहां बता दें कि मुख्यमंत्री स्वयं कह चुके हैं कि शराब न पीने के लिए लोगों मे जागरूकता फैलना चाहिए और उसी से शराब बंदी हो सकती है, क्योंकि अगर शराब बंद की तो प्रदेश में अवैध शराब का कारोबार चल सकता है और बिहार राज्य जैसा हाल मध्यप्रदेश का भी हो सकता है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री जनता के बीच शराब बंदी को लेकर जागरूकता फैलाने पर अधिक फोकस किए हुए हैं और इसको लेकर प्रदेशभर में कार्यक्रम भी चलाएं जा रहे हैं।
लंबे समय तक चुप नहीं रह सकती भारती :
उमा भारती पहले ही साफ कह चुकी हैं कि वह अपने भाई मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के कहने पर नई आबकारी नीति बनने तक ही शांत हैं और नीति बनने के बाद अगर उनको पसंद नहीं आई तो फिर वह इसको लेकर सड़कों पर उतर सकती हैं। सूत्रों का कहना है कि उमा इस समय एकांतवास में हैं और 15 जनवरी के बाद बाहर निकल सकती हैं। अब अपनी ही नेत्री के विरोध के कारण नई आबकारी बनाने का काम किया जा रहा है, उसको तीन एंगल से बनाया जा रहा है। जब तीनों एंगल से नीति बनकर सरकार के पास आएगी उसके बाद यह तय किया जाएगा कि नई आबकारी नीति को किस तरह से फाइनल किया जाए। इसके पीछे कारण यह है कि उमा भारती 15 जनवरी के बाद इस मामले को लेकर मुखर हो सकती है।
क्या शराब के सहारे नया रास्ता खोजने की कोशिश :
उमा भारती की राजनीति अब एक तरह से अंतिम दौर में चल रही है और वह साफ कह भी चुकी हैं कि अगला चुनाव लड़ेंगी। अब पार्टी उनको टिकट देती है कि नहीं यह तो समय ही बताएगा, लेकिन एक तरह से उन्होंने शराब मुद्दे को लेकर दबाव की राजनीति खेलना शुरू कर दी है और उसके रास्ते वह अपना राजनीति का रास्ता खोजने की कौशिश कर रही है। भाजपा के अंदरखाने की मानें तो यह भी चर्चा है कि अगर उमा भारती को टिकट नहीं दिया गया तो वह किसी अन्य दल या फिर ओबीसी महासभा का बैनर थाम राजनीति कर सकती हैं। खैर यह अभी चर्चाओं की बात है, क्योंकि उमा भारती इससे पहले भी भाजपा को अलविदा कहकर अपनी पार्टी बनाकर चुनाव लड़ चुकी हैं, लेकिन उसमें जब उनको सफलता नहीं मिली थी तो फिर वापस भाजपा में लौट आई थीं। इस बार नई आबकारी नीति बनाने में उनके विरोध का साया साफ देखने को मिल सकता है।
चालू वित्तीय साल में 10,255 करोड़ राजस्व :
शराब के जरिए प्रदेश सरकार को चालू वित्तीय साल में 10,255 करोड़ का राजस्व मिला है और इतने बड़े राजस्व का घाटा सरकार उठाने के मूड में नहीं है। अगले साल का राजस्व टारगेट 13 हजार 500 करोड़ रखा गया है। ऐसे में शराबबंदी की जो मांग है उसको शायद ही माना जाए, क्योंकि मुख्यमंत्री यह नहीं चाहते हैं कि अवैध शराब का काम शुरू हो और प्रदेश में बिहार जैसे हालात बनें। नशे से दूर रहने के लिए प्रदेश सरकार जनता के बीच जागरूकता अभियान जरूर चला रही है और इसके सहारे उमा की नाराजगी को दूर करने का एक प्रयास भी है जो सफल होता है कि नहीं यह उमा के अगले कदम के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा।
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