सांसद एवं कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी
सांसद एवं कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारीRE-Indore

Indore News: देश में लोकतंत्र नागरिकों के कारण बचा है और नागरिकों के कारण ही बचेगा - मनीष तिवारी

वर्तमान परिदृश्य की चर्चा करते हुए मनीष तिवारी कहा कि देश बचेगा तो नागरिकों के द्वारा संविधान की रक्षा किए जाने से ही बचेगा। यही नागरिकों का सबसे बड़ा कर्तव्य है।
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इंदौर । सांसद एवं कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा है कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए संविधानिक संस्थाओं को चुनौतियों से बचाना नागरिकों की जिम्मेदारी है। हमारे देश में लोकतंत्र नागरिकों के कारण ही बचा है और नागरिकों के कारण ही बचेगा । श्री तिवारी बुधवार को यहां अभ्यास मंडल की 62 वी ग्रीष्मकालीन व्याख्यानमाला में जाल सभागृह में संबोधित कर रहे थे। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में नागरिकों की भूमिका पर उन्होंने कहा कि हमारे देश में नागरिकों की भूमिका तो उस वक्त भी महत्वपूर्ण थी जब देश की नागरिकता भी नहीं थी। हम गुलाम थे।

महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद पूरे देश का भ्रमण किया। उन्होंने आवाम को जागरुक और लामबंद किया। उन्होंने ऐसा प्रयोग किया कि दुनिया के इतिहास में पहली बार लहर पर भी राज करने वाली ब्रिटिश सरकार से देश को आजादी दिलाई। यह कोशिश इसलिए कामयाब हुई क्योंकि उन्होंने देश की जनता को जागरूक किया।

वर्तमान परिदृश्य की चर्चा करते हुए मनीष तिवारी कहा कि देश बचेगा तो नागरिकों के द्वारा संविधान की रक्षा किए जाने से ही बचेगा। यही नागरिकों का सबसे बड़ा कर्तव्य है। जब भी देश तरक्की करते हैं तो उसका कारण उस देश के मूल सिद्धांत के बरकरार रहना है। वर्ष 1945 से लेकर 1960 तक की अवधि में विश्व के जितने भी देश आजाद हुए उन सभी में भारत एकमात्र ऐसा देश है, जिसमें कि लोकतांत्रिक परंपरा निरंतर रही है। हमारे देश में संसदीय प्रणाली, न्यायपालिका और मीडिया के द्वारा गंभीर उत्तर दायित्व का निर्वहन किया गया है। पिछले कुछ वर्षों में इन संवैधानिक संस्थाओं पर गंभीर चुनौती सामने आई है।

उन्होंने कहा कि वर्ष 1952 से लेकर 1971 तक हर वर्ष में हमारे देश की संसद 120 से 130 दिन तक चलती थी। अब संसद बमुश्किल पूरे साल में 60 से 62 दिन चलती है। प्रदेश की विधानसभाओं की स्थिति तो और भी ज्यादा खराब है। केरल सहित कुछ प्रदेश ऐसे हैं जहां पूरे साल में विधानसभा का सत्र 20 से 25 दिन ही चलता है। अब ऐसा लगने लगा है कि लोकतांत्रिक संस्था में लोकतंत्र खत्म होने लगा है। किसी भी व्यक्ति को सांसद और विधायक पद के लिए चुनाव तो नागरिक जीताते हैं,लेकिन वह व्यक्ति संसद और विधानसभा में जाकर अपने क्षेत्र के लोगों की भावना या खुद की अंतरात्मा के आधार पर कोई बात भी नहीं कह सकता है। यदि वह कहने की कोशिश करेगा तो उसे सदन से निकाल दिया जाएगा। यह सबसे बड़ी दुविधा है। हमारे देश के संविधान के दसवें अध्याय पर पुनर्विचार किए जाने की जरूरत है ।

श्री तिवारी ने कहा कि नया कानून बनाते समय यह दावा किया जाता है कि आया राम - गया राम की प्रक्रिया को रोका जाएगा लेकिन कानून के बनने के बाद रिटेल में होने वाला यह काम होलसेल में होना शुरू हो जाता है। अब हमारे देश में सांसद तो सरकार और जनता के बीच का चेहरा बनकर रह गया है। न्यायपालिका की निष्पक्षता की रक्षा करना नागरिकों का सबसे बड़ा धर्म है । यदि सरकार से भरोसा उठता है तो हम न्यायपालिका के पास जाते हैं लेकिन यदि वहां से भरोसा उठ गया तो फिर कहां जाएंगे ? पिछले कुछ वर्षों में यह धारणा बनी है कि न्यायपालिका पर दबाव डाला गया है। जज हमेशा अपनी बात फैसले के माध्यम से बोलते हैं। किसी भी मामले की कोर्ट में सुनवाई के समय सोशल मीडिया पर जो ट्रोलिंग होती है, वह शर्मनाक है। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया में चाहे लाखों कमियां हैं, उसके माध्यम से घृणा फैलाने का काम किया जाता है लेकिन इस मीडिया से ही लोगों को अपनी बात कहने का रास्ता मिला है। अराजकता का प्रतिबिंब समझा जाने वाला इंटरनेट मीडिया मानवता के लिए सफल हो गया है।

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