सरकार कोई भी हो रेत का अवैध उत्खनन आखिर क्यों नहीं रुकता?

अवैध उत्खनन एक ऐसा व्यापार बन गया है जिसे रोकने की चाहत होने के बाद भी नहीं रोका जा रहा है, इसके पीछे सिर्फ ओर सिर्फ अर्थ आड़े आ रहा है।
सरकार कोई भी हो रेत का अवैध उत्खनन आखिर क्यों नहीं रुकता?
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हाइलाइट्स:

  • रेत माफियाओं के इशारे पर चलती है पुलिस

  • भिण्ड एसपी व अधिकारियों के आडियो में हुआ खुलासा

राज एक्सप्रेस। अवैध उत्खनन एक ऐसा व्यापार बन गया है जिसे रोकने की चाहत होने के बाद भी नहीं रोका जा रहा है, इसके पीछे सिर्फ ओर सिर्फ अर्थ आड़े आ रहा है। ग्वालियर-चंबल संभाग की बात करें तो यहां रेत का खुलेआम अवैध उत्खनन हो रहा है, जिसको लेकर मंत्री तक स्वयं कह चुके हैं कि अवैध उत्खनन रोकना मेरे वश से बाहर हो गया है।

तत्कालीन मंत्री के कहने का अर्थ यह था कि पुलिस का पूरा तंत्र है अवैध रेत उत्खनन के कार्य में संलिप्त हैं तो फिर यह काम कौन और कैसे रोक सकता है। पुलिस के ऊपर कई बार सवाल भी खड़े हुए, लेकिन इसके बाद भी सुधार कहीं से दिखाई नहीं दे रहा है। हाल ही में तबादला होने से एक दिन पहले भिण्ड एसपी ने जब अधीनस्थों से वायरलेस सेट से बात की डीएसपी स्तर का अधिकारी यह कह रहा है कि जो नए लोग पुलिस में आ रहे है उनका पूरा ध्यान सिर्फ पैसा कमाने पर है।

चंबल नदी से रेत निकालने पर प्रतिबंध है, लेकिन कौन रोक रहा है? मुरैना हो या फिर भिण्ड का क्षेत्र हो, चंबल नदी से धड़ल्ले से रेत निकालने का काम किया जा रहा है ओर जिस इलाके से रेत का अवैध उत्खनन किया जा रहा है वहां के थानों में जाने के लिए राजनीतिक पहुंच लगाने का काम इंसपेक्टर करते हैं और उनको आसानी से पोस्टिंग भी मिल जाती है। अब जब राजनीति हाथ आगे रहेगा तो अवैध उत्खनन होना रोकना संभव ही नहीं है।

जिले का कोई एसपी अगर ऐसे काम रोकने का प्रयास करता है तो उसका तबादला करा दिया जाता है ऐसे में जब दूसरा आता है तो समझ जाता है कि तबादला कराने वाले के सहारे ही नौकरी करते रहो तो बेहतर है। भिण्ड में अवैध रेत उत्खनन को लेकर कई बार गोलीबारी हो चुकी है, लेकिन इसके बाद भी रेत का अवैध उत्खनन का काम जारी है, क्योंकि इसी काम से संबंधित थाने की पुलिस का खेल होता है। सरकार भले ही कहती है कि रेत का अवैध उत्खनन नहीं होना चाहिए ओर इसके लिए दिशा निर्देश भी जारी किए जाते है,लेकिन ऐसे आदेश सिर्फ कागजी घोड़े साबित होते हैं।

भिण्ड में रेत के अवैध व्यापार में जनप्रतिनिधि तक संलिप्त रहे ओर इस पर तब तत्कालीन मंत्री डॉ. गोविन्द सिंह ने रोक लगाने का सख्त निर्देश दिया था तो कांग्रेस के ही कुछ विधायकों ने डॉ. गोविन्द सिंह पर आरोप लगाने का काम किया था। ऐसे आरोपों से यह साबित होता है कि जो जनप्रतिनिधि थे उनका प्रति रोज का धंधा रेत के अवैेध कारोबार से चल रहा था। मेहगांव, भिण्ड या गोहद का क्षेत्र हो, सभी को पता है कि ऐसे काम में कौन संलिप्त था, लेकिन पुलिस कार्यवाही के नाम पर बोनी साबित होती दिखती है, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि चंबल की पुलिस की कार्यप्रणाली क्या है?

कोई दूसरा नहीं पुलिस ने ही खोली पोल

रेत के अवैध उत्खनन को लेकर भले ही राजनेताओं पर आरोप लगते रहते हैं, लेकिन उनके ऊपर क्या कार्यवाही हुई इस पर किसी ने कोई गौर नहीं किया। सरकार किसी की भी रही हो, लेकिन रेत का अवैध कारोबार कोई भी रोक नहीं सका, जिससे स्पष्ट होता है कि हर दल के जनप्रतिनिधि को रेत के अवैध कारौबार से खासा प्रेम है। अंचल में पुलिस का पूरा तंत्र अवैध रेत के उत्खनन में सहयोग दे रहा है।

भिण्ड के एसपी ने तबादला होने से पहले जब अपने अधिकारियों से वायरलेस सेट पर बात कर उनकी राय जानी तो डीएसपी ने तो साफ बोल दिया कि जो नए लड़के सब इंसपेक्टर बनकर आ रहे है वह पूरी तरह से भ्रष्ट है, ओर एसपी बॉस होता है, लेकिन उनका ऐसे सब इंसपेक्टर अपना बॉस राजनेता को मानते हैं।

इस ऑडियो के वायरल होने के बाद भिण्ड जिले में यह साफ हो गया कि पुलिस का पूरा तंत्र रेत के अवैध कारोबार में सहयोग देकर अर्थ जुटाने में लगा हुआ है और एसपी तक को वह कोई महत्व नहीं देते है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब पुलिस का ऐसा तंत्र होगा तो फिर अपराध कैसे और कौन रोक सकता है।

जब मंत्री ने मानी थी हार

कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे डॉ. गोविन्द सिंह रेत के अवैध उत्खनन को लेकर लम्बे समय से लड़ाई लड़ रहे हैं और इसको लेकर वह कई बार पुलिस के आला अधिकारियों से लेकर मुख्यमंत्री तक को पत्र लिखकर स्थिति से अवगत करा चुके हैं। इसके बाद भी रेत का अवेध उत्खनन नहीं रुक सका। जब डॉ. गोविन्द सिंह कमलनाथ सरकार में मंत्री थे तो उन्होंने स्वयं स्वीकार करते हुए कहा था कि रेत माफियाओं के आगे वह हार गए और चाहते हुए भी रेत का अवैध उत्खनन नहीं रुकवा पा रहे हैं। अब जब मंत्री ही अपनी हार मान रहे है तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि रेत माफियाओं की पहुंच किस स्तर तक होगी?

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