पांढुर्णा में शुरू हुआ खूनी खेल, क्या है गोटमार मेला और कैसे हुई इसकी शुरुआत ?
छिंदवाड़ा, मध्य प्रदेश। आपके मन में मेले का नाम सुनकर क्या ख्याल आता है। ज्यादातर लोगों के मन में मेले के नाम से यही ख्याल आता होगा कि, कोई स्थान जहां बड़े बड़े झूले, खाने-पीने के स्टॉल्स और खरीददारी के लिए ढेर सारी दुकाने हो। आपने अब तक इस तरह के ही मेले देखें होंगे। हम आपको आज जिस मेले का नाम बताने जा रहे है। उस मेले के बारे में आपने शायद ही सुना होगा। इस मेले को आप खूनी मेला भी कह सकते हैं। वैसे इस मेले को गोटमार मेले के नाम से जाना जाता है। चलिए जाने क्या है यह मेला और इसकी शुरुआत कैसे हुई ?
पांढुरना में शुरू हुआ खूनी खेल :
दरअसल, गोटमार मेले का आयोजन मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पांढुरना कस्बे में हर साल किया जाता है। इस मेले की शुरुआत भादो मास के कृष्ण पक्ष में अमावस्या पोला त्योहार के दूसरे दिन से होती है। यह मेला आज शुरू हो गया है। इस मेले की शुरुआत हो चुकी है। इस मेले का सबसे ज्यादा महत्व मराठी भाषा बोलने वाले नागरिकों के लिए है। बताते चलें, गोटमार का अर्थ मराठी भाषा का ही शब्द है और इसका मतलब पत्थर मारना।
क्या है गोटमार मेला ?
इस मेले में जो होता है वो जानकर आपको जानकर हैरानी होगी। जैसा कि, नाम से समझ आ रहा है। इस मेले में पांढुरना और सावरगांव के बीच बहने वाली नदी के दोनों ओर बड़ी संख्या में लोग इकट्ठे हो कर सूर्योदय से सूर्यास्त तक एक दूसरे पर पत्थर फेंकते है और यह सिलसिला तब तक चलता है जब तक लोग एक-दूसरे का लहू ना बहा दें। इस घटना में हर साल सैकड़ो लोग घायल हो जाते हैं। जबकि, हर साल इस मेले के दौरान ही कई लोगों की जान भी जाने की भी खबर सामने आती हैं।
मेले की शुरुआत :
जानकारी के लिए बता दें, इस मेले की शुरुआत 17वीं ई. के लगभग से बताई जाती है। नगर के बीच में नदी के उस पार सावरगांव व इस पार को पांढुरना कहा जाता है। कृष्ण पक्ष के दिन यहां बैलों का त्यौहार 'पोला' भी बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन ही साबरगांव के लोग पलाश वृक्ष को काटकर जाम नदी के बीच गाड़ते है उस वृक्ष पर लाल कपड़ा, तोरण, नारियल, हार और झाड़ियां चढ़ाकर पूजा की जाती है। इसके बाद दूसरे दिन की शुरुआत होते ही लोग लगाए गए इस पलाश वृक्ष और झंडे की पूजा करते है और फिर सुबह 8 बजे से एक दूसरे को पत्थर मारने कि शुरुआत करते है।
इस तरह होता है मेले का समापन :
बताते चलें, यह पत्थर मारने का खेल मुख्य तौर पर पांढुरना और सावरगांव के लोगों के बीच चलता है। हालांकि, यहां के लोग इसे बुरा नहीं मानते है। इस पत्थरबाजी को अच्छा माना जाता है। इतना ही नहीं इस दौरान ढोल ढमाके लगातार बजते रहते है। साथ ही भगाओ-भगाओ के नारों की गूंज चारो तरफ सुनाई देती है। यहां दो गुटों के बीच ऐसा प्रतीत होता है जैसे वह एक दूसरे को आगे नहीं आने देना चाहते हो। इस दौरान दर्शक भी इन खूनी नज़ारों का लुफ्त उठाते है और खूब फोटो वीडियो लेते है। इन गुटों में से जो लोग पहले झंडे के पास पहुंच जाते हैं, दूसरे लोग उन पर पत्थरों की भारी मात्रा में वर्षा करते है। इन दोनों पक्षों में से जो झंडा तोड़ता है वह झंडे को कुल्हाडी से काट लेते हैं। जैसे ही झंडा टूट जाता है, दोनों पक्ष पत्थर मारना बंद करते हुए आपस में मेल-मिलाप करते हैं ढोल नगाड़ो के साथ माता चंडी माता के मंदिर में झंडे को ले जाते है।
कैसे हुई इस मेले की शुरुआत :
गोटमार मेले की शुरुआत एक प्रेम कहानी से बताई जाती है। इस कहानी की शुरुआत पांढुर्णा के लड़के और साबर गांव की युवती के बीच प्रेम कहानी के शुरू होने के चलते हुई थी। जब यह बात उनके घर वालों को पता चली तो दोनों के घर वालों ने कई तरह की रोक टोक लगाना शुरू कर दिया। इन सब से परेशान होकर दोनों घर छोड़कर भाग गए। हालांकि, जाम नदी के पास पहुंचकर दोनों के परिजनों ने घेर लिया और पत्थरों से उन पर हमला कर दिया। इस दौरान दोनों की बीच नदी में पहुंचकर कर मौत हो गई। इस घटना के बाद से ही गोटमार मेले की शुरुआत हुई।
उपचार के लिए लगाए जाते शिविर :
बताते चलें, पत्थरबाजी के दौरान घायल हुए लोगों के लिए शिविर लगाए जाते हैं। जहां उनका उपचार किया जाता है। इसमें से गंभीर मामले वाले मरीजों को नागपुर भेज दिया जाता है। गौरतलब है कि, पांढुर्णा में शनिवार को गोटमार मेले के शुरू हुए के बाद लगभग 150 लोगों के घायल होने की खबर है। इन घायल लोगों को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करा दिया गया है। इनमें से चार लोगों की हालात गंभीर बताई जा रही हैं। इनमे से एक को नागपुर रेफर कर दिया है। मेले की सुरक्षा के लिए यहां 400 से अधिक पुलिस जवान तैनात किए गए हैै।
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