चिकित्सक अपने पर्चे में केवल जैनेरिक फार्मूल लिखें न कि ब्राण्ड का नाम

ग्वालियर, मध्य प्रदेश : चिकित्सक अपने दवाई के पर्चे में दवाई का जैनेरिक फार्मूला लिखें न कि दवाई के ब्राण्ड का नाम। इससे मरीज को 100 से 200 प्रतिशत तक कीमत में लाभ हो जाएगा।
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ग्वालियर, मध्य प्रदेश। चिकित्सक अपने दवाई के पर्चे में दवाई का जैनेरिक फार्मूला लिखें न कि दवाई के ब्राण्ड का नाम। इससे मरीज को 100 से 200 प्रतिशत तक कीमत में लाभ हो जाएगा। इस संबंध में लगाई गई जनहित याचिका को उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ ने संज्ञान में ले लिया है तथा केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय को नोटिस जारी कर राज्य सरकार से जवाब-तलब किया है।

जनहित याचिका डब्लू पी. नंबर15574/2020 विभोर कुमार साहू बना यूनियन ऑफ इण्डिया द्वारा दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इण्डिया के द्वारा इंडियन मेडिकल काउंसिल प्रोफेशनल कंडक्ट ऐटीकेट एण्ड इंथिक्स रेग्यूलेशन 2002 में नियम 1.5 जोड़कर गजट 8 अक्टूबर 2016 से लागू कर यह नियम बनाया गया कि सभी चिकित्सक अपना दवाई का पर्चा बनाते समय सिर्फ जेनेरिक मेडिसिन लिखेंगे। मतलब चिकित्सक पर्चे में किसी भी दवा का ब्रॅाण्ड नाम नहीं लिखेंगे। उसके स्थान पर केवल दवाई का फॉर्मूला लिखा जाएगा। इससे यह फायदा होगा कि मरीजों को चिकित्सक के द्वारा लिखी गई दवा जेनेरिक फॉर्म में मेडिकल से उपलब्ध होगी, जोकि अपने ब्राण्ड मेडिसिन की तुलना में लगभग 100 से 200 प्रतिशत सस्ती होगी। आवेदक के न्यायालय को अवगत कराया कि नियम होने के बाद भी चिकित्सकों के दवाई के पर्चे में दवाइयों के ब्राण्ड नेम लिखे जाते हैं। नियमों का कोई पालन नहीं हो रहा है जिसके कारण आम जनता को भारी आर्थिक हानि उठानी पड़ी है। जैसे कि अगर कैंसर का इलाज जेनेरिक मेडिसन से किया जाए तो वह ब्राण्ड नेम की दवाइयों के तुलना में जो 10 से 15 लाख रुपए का खर्चा होता है वह जेनेरिक के माध्यम से 50 हजार से 1 लाख रुपए के बीच कम हो जाएगा। न्यायालय को इस बात से भी अवगत कराया गया कि मेडिकल की दुकानों में बड़ी बीमारियों से संबंधित जेनेरिक दवा का स्टॉक उपलब्ध नहीं रहता है। इसलिए आवश्यकता है कि प्रशासन को आदेशित किया जाए कि मेडिकल की दुकानों में सम्पूर्ण जेनेरिक दवाइयां बड़ी बीमारियों से संंबंधित भी हमेशा भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहना चाहिए, जिससे कि आम जनता को जेनेरिक मेडिसन आसानी से उपलब्ध हो सके।

उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शील नागू एवं न्यायमूर्ति गुरुपाल सिंह आहलूवालिया ने शुरुआती सुनवाई में ही केन्द्र सरकार के स्वास्थय मंत्रालय, ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इण्डिया, मेडिकल काउंसिल ऑफ मप्र, इन सभी रेस्पोन्डेन्ट को नोटिस जारी किए एवं राज्य सरकार को जवाब प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं।

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