ओबीसी आरक्षण संबंधी मामलों की सुनवाई टली ,नई बेंच होगी गठित
जबलपुर। मप्र हाईकोर्ट में ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण की वैधानिकता को चुनौती देने वाली समस्त 66 याचिकाओं में सुनवाई टल गई। उक्त मामले की सुनवाई सोमवार को जस्टिस शील नागु तथा जस्टिस वीरेंदर सिंह की खंडपीठ में नियत थी, लेकिन जस्टिस वीरेंदर सिंह 14 अप्रैल को सेवानिवृत्त हो रहे है, जिस कारण मामले की अगली सुनवाई 18 अप्रैल को निर्धारित की गई है। उक्त प्रकरणों की अगली सुनवाई नवगठित बैच द्वारा की जायेगी। मामले में शासन की ओर से पैरवी विशेष अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर एवं विनायक प्रसाद शाह द्धारा की जा रहीं है।
अनावेदकों को नोटिस जारी कर मांगा जवाब, अगली सुनवाई 28 को
जबलपुर। मप्र हाईकोर्ट द्वारा एससी-एसटी व ओबीसी के लगभग 27 सौ अभ्यर्थियों का विशेष एग्जाम कराने के दिये गये फैसले के खिलाफ दायर एसएलपी में सर्वोच्च न्यायालय की बेंच ने सुनवाई करते हुए एमपीपीएससी विशेष परीक्षा 2019 को याचिका के निर्णय के अधीन रखे जाने के निर्देश दिये है। सुकों के जस्टिस दिनेश माहेश्वरी व जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने मामले में अनावेदकों को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के निर्देश देते हुए मामले की अगली सुनवाई 28 अप्रैल को निर्धारित की है।
सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका ओबीसी एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से दायर की गई है। जिसमें आवेदकों की ओर से तर्क दिया ग या कि हाईकोर्ट द्वारा पारित किया गया आदेश संविधान के अनुच्छेद-14 के विरुद्ध है। एक चयन में दो अलग-अलग परीक्षाएं नहीं ली जा सकती तथा हाईकोर्ट द्वारा पारित किया गए आदेश के अनुसार आरक्षित वर्ग के अभ्यार्थियों की विशेष परीक्षा आयोजित कर तत्पश्चात् नॉर्मलजेशन करके सभी अभ्यर्थियों का साक्षात्कार कराया जाए और और उपरोक्त प्रक्रिया 6 महीने के अंदर संपन्न कर ली जाए। आवेदकों की ओर से कहा गया कि उक्त वर्ग के अभ्यार्थियों की विशेष परीक्षा कराई जाती है तो उत्तर पुस्तिकाओं को जाँचने बाला पूर्व आग्रह से ग्रसित होकर चेक करेगा। जिससे आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के साथ अन्याय होने की प्रबल संभावना है। इतना ही नहंी विशेष परीक्षा संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है और मप्र राज्य परीक्षा सेवा नियम 2015 के किसी भी नियम में विशेष परीक्षा कराने का प्रावधान नहीं है, न ही नियमों में नॉर्मलाइजेशन करने से संबंधित कोई प्रावधान है। सुकों द्वारा उक्त तर्कों को गंभीरता से लेते हुए, लोक सेवा आयोग तथा मध्यप्रदेश शासन को 15 दिन के अंदर जवाब प्रस्तुत करने के निर्देश दिये है। इसके साथ ही न्याायालय ने संपूर्ण भर्ती प्रक्रिया याचिका के निर्णय अधीन रखने के निर्देश दिये है। उक्त जानकारी अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने दी।
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