स्वास्थ्य मंत्री के गृह जिले में बदहाल हैं स्वास्थ्य व्यवस्थाएं

प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में वर्षों से नहीं डॉक्टर, सिविल अस्पताल में नहीं रोग विशेषज्ञ सोनोग्राफी मशीन न होने से महिलाएं परेशान, गरीब ग्रामीण महंगा उपचार कराने को मजबूर।
उपचार के लिए स्वास्थ्य केंद्र में लगी मरीजों की भीड़
उपचार के लिए स्वास्थ्य केंद्र में लगी मरीजों की भीड़raj express
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बरेली, मध्यप्रदेश। वर्षों पूर्व प्रदेश की सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र में बेहतर स्वास्थ्य सेवा, सुविधाओं के लिए ग्रामीण क्षेत्र में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र स्वीकृत किए। एनएच-12 पर तहसील के सबसे बड़ा ग्राम खरगौन के अलावा उंटिया कलां, नर्मदा किनारे डूमर और बाड़ी तहसील के अंतर्गत गूगलवाडा ग्राम में प्राथमिक स्वा. केन्द्र स्वीकृति के साथ अस्पताल भवन निर्माण के लिए लाखों की राशि भी स्वीकृत की गई। उंटिया कलां, खरगौन और गूगलवाड़ा के अस्पताल भवनों, डॉक्टर निवास का निर्माण हुआ। डूमर ग्राम दशकों पूर्व प्राथमिक स्वा. केन्द्र के लिए भवन निर्माण के ठेकेदार और लोक निर्माण विभाग की मिलीभगत से मात्र नींव स्तर का कार्य छोड़ कर ठेकेदार गायब हो गया। दशकों से बिना भवन, बिना डाक्टर स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र को संचालित किया जा रहा है।

2020 में कोरोना की पहली और 2021 में कोरोना की दूसरी लहर में संपूर्ण क्षेत्र में हजारों कोरोना सें संक्रमितों दर्जनों लोगों की असमय मौतें होने से परिवारों में दु:ख मातम का माहौल बना रहा। कोरोना संक्रमण से स्वास्थ्य विभाग के डाक्टर, स्वास्थ्य कर्मचारी, विभिन्न शासकीय विभागों के अधिकारी कर्मचारी भी संक्रमित हुए जिनका बरेली के साथ रायसेन, विदिशा, भोपाल में उपचार हुआ। कोरोना की दूसरी अधिक जानलेवा साबित हुई। नगर के सिविल अस्पताल ग्रामीण क्षेत्र के प्राथमिक स्वा. केन्द्रो में वर्षों से स्वा. सुविधा और सेवाएं बदहाल बनी हुई हैं। केन्द्रों एवं प्रदेश की सरकार ने अनेक गरीबों के लिए स्वा. योजनाए प्रारंभ की है। जब प्राथमिक स्वा. केन्द्रो में डाक्टर ही नहीं है। स्वास्थ्य कर्मचारी अस्पतालों में मात्र दर्ज होकर अपने निजी कार्यो में अधिक व्यस्त रहते हैं। तब यह प्रश्न उठना स्वभाविक है। कि प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री के गृह जिले के सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य संबंधी व्यवस्थाएं सेवा कब ठीक होगी जब कोरोना की तीसरी लहर आने की संभावना विशेषज्ञों द्वारा व्यक्त की जा रही हैं।

बरेली सबसे बड़ा केंद्र:

आसपास के 100 से अधिक ग्रामों एवं एनएच-12 पर भोपाल से जबलपुर के बीच बरेली सबसे बड़ा केन्द्र है। कहने को सिविल अस्पताल है। बेहतर अस्पताल भवन है परंतु सरकारी अस्पताल आने वालो वैसी चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाती जैसी जरूरी है। घटना दुर्घटना में घायलों को रेफर करना, गर्भवती महिलाओं और गंभीर बीमारियों से ग्रसित मरीजों को रेफर किया जाता है। मुख्य कारण सिविल अस्पताल में विभिन्न रोगो के विशेषज्ञ डाक्टर नहीं है। सर्जरी की व्यवस्था नहीं है। सोनोग्राफी के विशेषज्ञ डाक्टर नहीं है। इसी के साथ स्वा. कर्मचारियों की पर्याप्त संख्या नहीं है। कोरोना की तीसरी लहर से लडऩे आक्सीजन प्लाट, बेंटिलेटर संचालन हेतु प्रशिक्षित स्टाफ की दरकार बनी हुई है।

एमबीबीएस डाक्टर नहीं :

दशकों पूर्व बाड़ी जनपद की बरेली-बाड़ी तहसीलों के ग्रामीणों को उनके आसपास ही स्वास्थ्य सेवा सुविधाएं उपलब्ध कराने खरगौन, उंटिया कलां, नर्मदा किनारे डूमर एवं गूगलवाडा में प्राथमिक स्वा. केन्द्र स्वीकृत किए। दशकों पूर्व स्वीकृत हुए इन प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में उपचार भर्ती, विभिन्न प्रकार की जांच के लिए डूमर को छोड़ तीन स्थानों पर अस्पताल भवनों का लाखों रुपए खर्च कर निर्माण हुआ। दो-चार छ: नहीं दशकों से इन चारों प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में एमबीबीएस डाक्टर नहीं है। सरकार की घोषणा और योजनानुसार विभिन्न प्रकार की नि:शुल्क जांच, दवाइयां और विभिन्न योजनाओं का लाभ मिलना, गरीबों, बीमार ग्रामीणों को मिलना दूर की कोडी बना हुआ है। क्या इस प्रकार दशकों से चल रहे बदहाल स्थिति के प्राथमिक स्वा. केन्द्रों के भरोसे कोरोना की तीसरी लहर से मुकाबला किया जा सकेगा बड़ा यक्ष प्रश्न बना हुआ है।

क्या सुधरेंगे हालात :

कोरोना की पहली और दूसरी लहर ने ग्रामीण क्षेत्र की बदहाल, स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति को उजागर किया। दशकों से संचालित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थिति बंद सी बनी रही। बरेली, बाड़ी के अस्पतालो में मरीजो की भीड़ लगती रही। अधिकांश संक्रमितों को रायसेन, भोपाल, विदिशा, रेफर किया जाता रहा। सैकड़ों संक्रमितों ने प्रायवेट अस्पतालों में उपचार करवाया और दर्जनों महिला पुरुषों ने दम भी तोड़ दिया। कोरोना की तीसरी लहर आए न आए परंतु नगर के सिविल अस्पताल, बाडी के सामु. स्वास्थ्य केन्द्र, खरगौन उंटिया कलां, डूमर, गूगलवाड़ा के प्राथमिक स्वा. केन्द्रों के साथ ग्रामीण क्षेत्र में बने लगभग 50 उप स्वास्थ्य केन्द्रों की व्यवस्थाएं, स्वा. सुविधाओं का ठीक ठाक करना, डाक्टरों, स्वा. स्टाफ की नियुक्ति और पर्याप्त दवाईयों, नि:शुल्क जांच की व्यवस्थाएं करना जरूरी है।

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