Gwalior : पानी बंद किया तो होने लगे मोतीमहल के दफ्तर खाली
ग्वालियर, मध्यप्रदेश। मोतीमहल अब इतिहास बनकर रह जाएगा जिसको लेकर लोग कभी यह कहेगें कि इस भवन में हम भी कभी बैठते थे, क्योंकि अब इस मोतीमहल से सभी सरकारी दफ्तर खाली होकर दूसरे स्थान पर शिफ्ट हो गए है। कुछ कार्यालय ऐसे थे जिनको दूसरे स्थान पर जगह नहीं मिली थी, जिसके कारण वह मोतीमहल में ही डटे हुए थे। यही कारण है कि तय गाइड लाइन में दफ्तर खाली न होने के कारण मोतीमहल का पानी सप्लाई ही बंद कर दिया गया तो ऐसे में मजबूर होकर जो दफ्तर बचे थे उनको अपना सामान समेटने के लिए मजबूर होना पड़ा।
मोतीमहल को काफी पहले खाली करने का आदेश दिया गया था उसके बाद से ही कई दफ्तर खाली हो चुके थे। संभागीय कार्यालय बन गया था इस कारण संभागीय दफ्तर के अलावा अन्य कार्यालय उस भवन में शिफ्ट हो गए, जबकि कई ऐसे दफ्तर है जिनको दूसरी जगह कोई स्थान नहीं मिल रहा था। कई कार्यालय प्रमुख किराए के भवन को लेकर प्रयासरत थे, लेकिन उसमें भोपाल से आने वाली अनुमति में देरी हो रही थी, जिसके कारण कई कार्यालय वर्तमान में भी मोतीमहल मे संचालित हो रहे थे। किराए के भवन न मिलने के संबंध में संभागायुक्त को भी अवगत करा दिया गया था। अब जब देखा कि मोतीमहल से कुछ दफ्तर खाली नहीं हो रहे तो उनको कैसे खाली कराया जाए इसको लेकर एक रणनीति के तहत पानी सप्लाई करने वाला बोर ही बंद कर दिया गया।
पानी न आने की शिकायत की, तो कहा अब नहीं मिलेगा पानी :
मोतीमहल में संचालित कुछ दफ्तर अपना दफ्तर शिफ्ट करने के लिए जगह देख रहे थे, लेकिन उनके सामने संकट यह आ रहा था कि कोई ऐसा स्थान नहीं मिल रहा था जिससे आमजन वहां आसानी से पहुंच सके। यही कारण है कि कुछ दफ्तर अभी भी मोतीमहल में ही संचालित थे। अब जो गाइड लाइन खाली करने की दी गई थी वह पूरी हो गई थी ऐसे में दफ्तर कैसे खाली हो इसके लिए पानी की सप्लाई बंद कर दी। जब दफ्तर में कर्मचारी व अधिकारी काम करने आएं तो गर्मी के मौसम में पानी की सबसे अधिक जरूरत पड़ती है और ऐसे में पानी न आने की बात जब अधिकारी से कही गई तो उन्होंने संबंधित विभाग के अधिकारी से कहा कि पानी सप्लाई क्यों बंद है तो उनसे कहा गया कि बोर खराब है और अब वह सही नहीं होगा, क्योंकि यह भवन अब खाली करना है। ऐसे मेें जो दफ्तर थे उनके कर्मचारियो एवं अधिकारियों को पानी पीने के लिए बाहर से पानी की बोतल मंगा कर अपनी प्यास बुझानी पड़ती थी। अब जब समझ लिया कि पानी सप्लाई चालू नहीं होगा तो मजबूर होकर दफ्तर के कर्मचारियो ने अपना सामान का बस्ता बांधने के लिए मजबूर होना पड़ा और जहां भी स्थान किराए का मिला वहां सामान शिफ्ट करना शुरू कर दिया।
यह है मोतीमहल की कहानी :
1824 से 1827 के बीच हुआ निर्माण।
दौलतराव सिंधिया ने कराया था निर्माण शुरू।
पूना में पेशवा के महल पर आधारित है नक्शा।
जयाजीराव सिंधिया ने कराया निर्माण पूरा।
करीब 400 कमरे, 50 हॉल और 5 तरफ से प्रवेश द्वार हैं मोतीमहल के।
शीशे और रंगों के उपयोग से दीवारों पर राग-रागनियों को प्रदर्शित करती हुईं पैंटिंग।
झील में पड़ने वाला प्रतिबिंब था महल की प्रमुख विशेषता।
प्रमुख दरबार हॉल में हैं 13 दरवाजे।
जमीन से सात फीट ऊपर लकड़ी के पैनल।
दरवाजों के ऊपर लकड़ी के घुमावदार मेहराबों पर चढ़ा हे सोने का वर्क।
ग्वालियर के आसपास पाए जाने वाले सफेद पत्थर से निर्माण।
आजादी के बाद मोतीमहल आया सरकार के कब्जे में।
मध्यभारत का प्रथम सचिवालय बना मोतीमहल में।
मध्यप्रदेश राज्य बनने के बाद से सरकारी कार्यालयों के रूप में महल का उपयोग।
मोतीमहल (यह हो रहा था अभी तक उपयोग) :
करीब 26 विभागों के मुख्यालय संचालित हैं महल में
5 विभागों के आयुक्त कार्यालय है यहां
परिवहन, आबकारी और राजस्व मंडल के प्रदेश मुख्यालय
परिवहन आयुक्त कार्यालय का स्थानांतरण प्रस्तावित
आयुक्त, ग्वालियर संभाग
शिक्षा एवं उच्च शिक्षा के संयुक्त संचालक कार्यालय
भू-अभिलेख एवं बंदोबस्त कमिश्रर कार्यालय
महिला एवं बाल विकास का संयुक्त संचालक कार्यालय
संचालक, लोकल फंड कार्यालय
संचालक, पशु चिकित्सा सेवाएं
लेबर कोर्ट
कोषालय
अधीक्षक, आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो
अधीक्षक, लोकायुक्त
उप महानिरीक्षक, चंबल एवं ग्वालियर संभाग
नोट- (अब मोतीमहल से सरकारी दफ्तर हो चुके है दूसरे स्थान पर शिफ्ट)
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