Gwalior : फर्राटे वाली सड़क पर 30 किमी का ब्रेक
ग्वालियर, मध्यप्रदेश। शहर के अंदर वाहनों की स्पीड लिमिट कितनी होनी चाहिए इसके संकेतक तो लगे देखे जा सकते है, लेकिन जब फर्राटे वाली सड़क पर ऐसा संकेतक लगा है तो समझा जा सकता है कि यातायात पुलिस किस तरह से काम कर रही है। शहर से बाहर विक्की फैक्ट्री से शिवपुरी लिंक रोड़ पर एक संकेतक लगा हुआ है जिस पर लिखा हुआ है कि वाहनों की गति निर्धारित 30 किमी के हिसाब से होना चाहिए। खैर संकेतक लगा है तो ऐसे वाहनों पर कार्यवाही होना चाहिए जो 30 किमी प्रतिघंटे की स्पीड को पार कर वाहन दौड़ा रहे है, लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है तो ऐसा लगता है कि संकेतक मात्र एक मजाक बन गया है।
विक्की फैक्ट्री तिराहे से शिवपुरी लिंक रोड पर वाहन करीब 80 से 100 किमी की स्पीड में प्रतिदिन दौड़ते देखे जा सकते है, वैसे यह शहर से बाहर का रास्ता है, लेकिन इस रोड पर कुछ स्कूल व कॉलेज जरूर है। ऐसे में अगर यातायात पुलिस ने स्पीड लिमिट का संकेतक लगाया हुआ है तो फिर तेज गति से चलने वाले वाहनों के खिलाफ कार्यवाही भी करना चाहिए, लेकिन ऐसा न कर सिर्फ संकेतक लगाकर अपना कर्तव्य पूरा कर लिया गया है। अब जो स्पीड लिमिट का संकेतक यातायात पुलिस ने शहर के बाहर शिवपुरी लिंक रोड पर लगा रखा है उसके हिसाब से तो शहर के अंदर भी वाहन नहीं चलते फिर जब शहर के भीतर ट्रैफिक पुलिस ऐसे वाहनों पर कार्यवाही नहीं कर पा रही है तो फिर शहर के बाहर ऐसे संकेतक लगाने के पीछे क्या उद्देश्य है अगर उद्देश्य नहीं है तो फिर ऐसा मजाक क्यों किया जा रहा है। यहां बता दे कि इस रोड से भारी वाहन (ट्रक) से लेकर यात्री बसें व चार पहिया छोटे वाहन प्रतिदिन हजारों की संख्या में निकलते है, लेकिन जब स्पीड लिमिट का संकेतक लगा रखा है तो फिर उसकी जांच की जिम्मेदारी भी तो यातायात पुलिस की बनती है, लेकिन उक्त रोड पर ट्रैफिक पुलिस तो छोड़ो अन्य पुलिस भी सक्रिय होती कभी नहीं दिखाई दी है।
मजाक बना संकेतक :
शिवपुरी लिंक रोड़ पर जो संकेतक लगा हुआ है उस पर लिखा हुआ है कि स्पीड लिमिट 30 किमी प्रतिघंटा होना चाहिए, लेकिन उस संकेतक पर जो लिखा हुआ है उसका पालन शायद ही कोई वाहन चालक कर रहा होगा? यही कारण है कि बीच सड़क पर जो संकेतक यातायात पुलिस ने लगा रखा है उसे देख कर लोग हंसने के लिए मजबूर होते है और एक तरह से संकेतक मजाक बन गया है। अगर यातायात पुलिस ने स्पीड लिमिट का संकेत लगा रखा है तो उसका पालन कराने की जिम्मेदारी भी उसकी बनती है और अगर वह अपनी जिम्मेदारी से बच रहे है तो ऐसे अधिकारीयों के खिलाफ पुलिस अधीक्षक को कार्यवाही करना चाहिए। वैसे ऐसे संकेतक अन्य जिलों में भी लगे देखे जा सकते है, लेकिन उन जिलो में पुलिस का वाहन स्पीड जांचने वाली मशीन लेकर खड़े देखे जाते है और स्पीड से अधिक रफ्तार होने पर ऐसे वाहनो के चालान काटने का काम भी किया जा रहा है। वैसे इस तरह का वाहन ग्वालियर पुलिस के पास भी है, लेकिन वह किस स्थान पर स्पीड जांचने का काम कर रहा है यह अभी तक किसी को दिखाई नहीं दिया है।
शहर के अंदर स्पीड कम क्यों नहीं करा पा रहे है :
शहर के अंदर तेज रफ्तार वाहन चलने के कारण आए दिन दुर्घटना होने की सूचना मिलती रहती है, लेकिन इसके बाद भी पुलिस वहां सक्रियता से अपना काम नहीं कर पा रही है तो फिर शहर के बाहर क्या कार्यवाही होगी इसमें संदेह है। शहर के भीतर कई स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगे है और उनकी मॉनीटरिंग स्मार्ट सिटी कार्यालय से होती है, लेकिन वहां सिर्फ सिग्नल तोड़कर आगे निकलने वाले वाहनों पर चालानी कार्यवाही का काम होता है। अब सिग्नल तोड़ने पर जब चालानी कार्यवाही की जाती है तो तेज रफ्तार चलने वाले वाहनों पर कार्यवाही से क्यों बचा जा रहा है। यही कारण है कि कार्यवाही न होने के कारण शहर के अंदर ही कई बार दुर्घटनाएं तेज रफ्तार वाहन चलाने से हो चुकी है, लेकिन शहर के अंदर तो देख नहीं पा रहे है पर शहर के बाहर जहां कोई आबादी नहीं है वहां 30 किमी गति का संकेतक लगा रखा है जिसे लोग जब देखते है तो यातायात पुलिस का मजाक उड़ाने से नहीं चूकते है।
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