ग्वालियर, मध्यप्रदेश। शहर में सरकारी जमीन पर कब्जा करने का खेल अभी से नहीं बल्कि काफी समय से चल रहा है। कब्जा करने वालो ने अब अपना पक्का कब्जा करने के लिए नई चाल शुरू कर दी है। इसके तहत वह पहले जमीन के मामले को कोर्ट में ले जाते हैं। वहीं राजनीतिक पॉवर मिलते ही सरकारी जमीन पर कब्जा कर प्लॉट काटने का खेल भी वर्तंमान में जारी है लेकिन मजे की बात यह है कि प्रशासनिक अधिकारी को अतिक्रमण दिखाई ही नहीं दे रहा है।
भू-माफिया शहर के अंदर व नजदीक जो भी शासकीय जमीन है उस पर पैनी निगाह रखते हैं और अगर किसी का प्लॉट एक नंबर का खाली है तो उस प्लॉट पर भी कब्जा करने का खेल चल रहा है। हालत यह है कि शहर की सभी पहाड़ियों पर अतिक्रमण कर वहां आलीशान मकान बना लिए गए हैं और जो बची हुई है उन पर कब्जा होने का क्रम चल रहा है। कुछ सालों के अंदर ही गोले का मंदिर से मुरैना जाने वाले मार्ग पर ट्रिपल आईटीएम के पास पहाड़ी के नीचे शासकीय जमीन पर भी प्लॉटिंग होते देखी जा सकती है। इस नजारे को एसडीएम से लेकर अन्य प्रशासनिक अधिकारी भी अपनी नजरों से देख रहे हैं, लेकिन राजनीतिक पॉवर का अंदाजा लगाकर उक्त अधिकारी अपनी आंखे बंद किए हुए है। कुछ साल तक उक्त मार्ग पर आनंदी पहाड़ी के नीचे व अन्य ऐसी जमीन जो शासकीय है वह पूरी तरह से खाली थी, लेकिन एकाएक उक्त जमीन पर प्लॉटिंग होने लगी। अब शासकीय जमीन पर प्लॉटिंग कैसे होने लगी इसको लेकर भी कई सवाल उठते हैं। सवाल यह है कि उक्त हल्के के पटवारी व राजस्व अधिकारी की भूमिका भी संदेह के दायरे में है। किसी हल्के में अगर कोई अतिक्रमण हो रहा है तो उसकी कुछ जिम्मेदारी पटवारी व राजस्व निरीक्षक की भी बनती है, लेकिन राजनीतिक पॉवर के आगे सभी बौने साबित होते रहे है और हो रहे हैं।
करोड़ों की जमीन पर प्लॉटिंग आखिर कौन जिम्मेदार :
पहाड़ी के नीचे व ऊपर शासकीय जमीन है यह तो सभी को पता है, लेकिन अगर वहां प्लॉटिंग कराई जा रही है तो उस जमीन पर कब्जा लिखाने का भी काम किया गया होगा। अब सवाल यह है कि कब्जा किसने लिखा ओर किसके दवाब में इसकी जांच होना चाहिए। मुरैना रोड पर जिस तरह से कुछ समय से शासकीय जमीन पर प्लॉटिंग करने का खेल चल रहा है उसको देखते हुए अब कई अन्य लोग भी सक्रिय होकर शासकीय जमीन को घेरने लगे हैं। एक तरफ प्रशासन शासकीय जमीन को अतिक्रमण से मुक्त कराने के लिए लगा हुआ है, लेकिन वहीं दूसरी तरफ जो अतिक्रमण कर प्लॉटिंग की जा रही है उस तरफ न एसडीएम की निगाह है ओर न अन्य प्रशासनिक अधिकारियों की। सूत्र का कहना है कि शासकीय जमीन को कब्जाने में एक गिरोह सक्रिय है जो अपने हिसाब से काम करा रहा है, जब कोई अधिकारी पहुंचता है तो उसे अपनी राजनीति पॉवर का हवाला दे देता है जिसके कारण उक्त अधिकारी वहां से रवाना होकर निकल जाते हैं।
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