Gwalior : मंदिरों में चढ़ाए गए फूलों से 7 दिन में तैयार किया इको फ्रेंडली गुलाल
ग्वालियर, मध्यप्रदेश। रंगों के त्यौहार होली के नजदीक आते ही मार्केट में रंग और गुलाल मिलने शुरू हो गए हैं। बाजार में होली के लिए मिलने वाले गुलाल केमिकल युक्त होने से काफी हानिकारक होते हैं और स्किन एलर्जी सहित कई तरह के रोगों का कारण भी बनते हैं। इन सबको देखते हुए जीवाजी विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान अध्ययनशाला के छात्रों ने ऐसा गुलाल बनाया है जो पूरी तरह से केमिकल रहित है। इको फ्रेंडली इस गुलाल से किसी भी प्रकार की एलर्जी या अन्य बीमारियों का खतरा भी नहीं है। खास बात यह है कि इसे मंदिरों में चढ़ाए गए फूलों से बनाया गया है, इसे लगाने के बाद खुशबू आएगी।
मल्टीपरपज और पूरी तरह से ऑर्गेनिक इस गुलाल को जेयू के पर्यावरण विज्ञान अध्ययनशाला के छात्र स्वाति प्रजापति, दिवाकर तिवारी, भरत परिहार,भानू प्रताप राजपूत, अंकिता राठौर, वैशाली उपमन्यु, विलाल अहमद भट्ट, दीपक शर्मा, अमित गोपीनाथन ने तैयार किया है। यह कार्य पर्यावरण विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ.हरेंद्र शर्मा के मार्गदर्शन में किया गया है। छात्रों ने बताया कि उन्होंने पहले अचलेश्वर, मंशापूर्ण, जेयू केंपस स्थित मंदिर में भगवान पर चढ़े हुए फूलों को एकत्र करके उन्हें पानी से साफ किया। उसके बाद उन्हें 24 घण्टे तक पानी में रखा। फिर उन्हें 3 से 4 दिन तक सूखने दिया। पूरी तरह सूखने के बाद उन्हें बारीक पीसकर उनका पाउडर बना लिया। अंत में मलमल के कपड़े से उस पाउडर को छान लिया। इस तरह छना हुआ मटेरियल गुलाल के रूप में प्राप्त हुआ और कपड़े में बचा हुआ वेस्ट का प्रयोग रंगोली कलर के रूप में कर सकते हैं। सात दिन की इस प्रक्रिया में ऑर्गेनिक गुलाल के साथ रंगोली कलर और इत्र भी बनाए जा सकते हैं। खास बात यह है कि गुलाल, इत्र और रंगोली कलर बॉडी के लिए किसी भी प्रकार से नुकसानदायक नहीं है और इससे जल प्रदूषण भी नहीं होगा।
पांच तरह का गुलाल किया तैयार :
येलो मैरी गोल्ड, ऑरेंज मैरी गोल्ड, पिंक रोज, ग्रीन कलर (नीम की पत्ती से) एवं सफेद सेवंती।
कौशल विकास में सहायक :
इस संबंध में पर्यावरण विज्ञान अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष डॉ. हरेंद्र शर्मा ने बताया कि जल्द ही यह गुलाल अमेजन पर उपलब्ध होगा। इससे छात्रों का कौशल विकास होगा। जिससे वह अपना स्टार्टअप शुरू कर सकते हैं।
इनका कहना :
पूरी तरह से इको फ्रेंडली गुलाल अच्छा कान्सेप्ट है। आत्मनिर्भर भारत के लिए युवाओं में स्वयं के नवाचार हेतु यह अच्छी पहल है। छात्र इस कार्य को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो विवि उनकी मदद करेगा। सबसे अच्छी बात यह है कि मंदिरों के फूलों से यह गुलाल तैयार किया गया है, इसमें जीरो लागत है। यह वेस्ट टू वैल्थ है।
प्रो. अविनाश तिवारी, कुलपति, जीवाजी विश्वविद्यालय
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