Gwalior : धार्मिक आयोजन के सहारे राजनीतिक जमीन तलाश रहे अनूप
ग्वालियर, मध्यप्रदेश। एक समय था जब देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे, उस समय अनूप मिश्रा की भाजपा के अंदर तूती बोलती थी और कई भाजपा के दिग्गज नेता उनके दरवाजे पर खड़े रहते थे। समय बदला तो अब अनूप मिश्रा ही भाजपा के अंदर एक तरह से किनारे हो गए है। लोकसभा से सांसद रहने के बाद उनको मुरैना से दूसरी बार टिकट नहीं दिया गया था, तभी से वह भाजपा में किनारे हो गए थे। अब सामाजिक एवं धार्मिक आयोजन के सहारे अनूप मिश्रा अपनी राजनीतिक जमीन खोजने में जुट गए है अब इसमें उनको कितनी सफलता मिलती है यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
राजनीति में रहते हुए जो पार्टी से किनारे कर दिए जाते हैं वह राजनीति में सक्रियता दिखाने के लिए कोई न कोई रास्ता खोजने का प्रयास करते हैं। यही कारण है कि अनूप मिश्रा ने अब धार्मिक कार्यक्रम के जरिए अपनी सक्रियता दिखाना शुरू कर दिया है। अनूप फूलबाग मैदान पर 9 मार्च से 16 मार्च तक भागवत कथा का आयोजन करा रहे हैं, जिसमें रमेश भाई ओझा आ रहे हैं। इस आयोजन के जरिए मिश्रा एक बार फि र अपने समर्थको को एकजुट करने का प्रयास कर रहे हैं, क्योंकि जो सूत्र बता रहे है उसके अनुसार अनूप अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में राजनीतिक पिच पर एक पारी और खेलना चाहते हैं।
सिंधिया से भी नजदीकी बढ़ाने का प्रयास :
कांग्रेस से भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया से भी अनूप मिश्रा ने नजदीकियां बढ़ाने का काम किया है। सिंधिया स्वयं भी उनके घर पहुंचे थे और सोमवार को जब सिंधिया ग्वालियर आएं तो अनूप उनसे मिलने पहुंचे थे। अब अनूप मिश्रा एवं सिंधिया परिवार की कितनी नजदीकियां है, यह किसी से छिपा नहीं है, क्योंकि स्व. माधवराव सिंधिया स्वयं अटल बिहारी वाजपेयी के सामने चुनाव लड़ चुके हैं।
भाजपा में रहते हुए भी खुलकर बोलने की आदत :
अनूप मिश्रा की एक खासियत यह भी है कि वह जिस दल में है उसमें भी खुलकर बोलने से पीछे नहीं हटते थे। एक समय तो भाजपा के कुछ नेता भी कहते थे कि अनूप मिश्रा कांग्रेसी स्टाईल में काम करते हैं, क्योंकि भाजपा में परंपरा रही है कि नेता खुलकर बोलने से बचते है। अनूप मिश्रा के समर्थक भी खासे हैं, क्योंकि जब वह मंत्री थे तो कोई भी उनके पास काम के संबंध में जाता था तो वह साफ तौर पर कह देते थे कि यह काम हो जाएगा या नहीं होगा।
हर बार अलग जगह से लड़ा चुनाव :
अनूप मिश्रा ने अभी तक जो भी चुनाव लड़े वह एक क्षेत्र छोड़कर ही लड़ा जिसका खामियाजा उनको आखिर में भुगतना पड़ा। बेलागांव कांड के बाद भी वह राजनीति से पीछे चले गए थे, लेकिन अंचल में भाजपा के एक बड़े नेता से समझौता होने के बाद उनको मुरैना से टिकट दिया था और वह सांसद बन गए थे, लेकिन उसके बाद भाजपा ने उनको टिकट नहीं दिया था।
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