गणेश तैयार है आपका मंगल करने, ध्यान रखना आपकी आस्था सस्ती न हो, सुख-समृद्धि के लिए चुकानी होगी मिट्टी की कीमत
Raj Express Ground Report on Ganesh Chaturthi 2023: भोपाल मध्यप्रदेश। गणेश तैयार है आपका मंगल करने, आप बस ध्यान रखना की आपकी आस्था सस्ती न हो...। सुख- समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य के लिए निश्चित तौर पर आपको मिट्टी की कीमत तो चुकानी ही होगी। गणेश चतुर्थी 19 सितंबर को है। भगवान गणेश की मूर्ती की स्थापना के लिए बाजार में हर प्रकार की मूर्ती उपलब्ध है। इस बीच एक बड़ा सवाल यह है कि, ये मूर्ती मिट्टी की है या पीओपी (Plaster of Paris) की और इन दोनों में अंतर क्या है? अगर पीओपी से बनी मूर्ती आप लेते है तो सस्ती तो मिलेगी लेकिन पर्यावरण के लिए मंगलकारी नहीं होगी। वहीं मिट्टी से बनी मूर्ती के दाम कुछ अधिक हो सकते है पर यह तय है कि, इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होगा। पर्यावरण सुरक्षित रहेगा तो, मानव जाति, पशु-पक्षी जल-जीव भी स्वस्थ्य रहेंगे।
गणेश मूर्तियों को लेकर राजएक्सप्रेस ने शहर के विभिन्न इलाकों में घूमकर उन अनछुए पहलुओं को सामने लाने की कोशिश की जिनकी वजह से कई वर्षों बाद भी पीओपी से मूर्तियों का निर्माण और स्थापना का क्रम बंद नहीं हुआ। इसके पीछे तीन बड़े कारण सामने आए है : पहला- प्रशासन का सिर्फ एक कागज़ के टुकड़े पर आदेश जारी कर देना कि, पीओपी से मूर्ति का निर्माण नहीं होगा। दूसरा- मूर्तियां बनाने वाले बाजार की मांग के मुताबिक अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए पीओपी से मूर्तियों का निर्माण कर रहे है। तीसरा- सबसे महत्त्वपूर्ण कारण कि, हम और आप भगवान गणेश से या देवी दुर्गा से सुख-समृद्धि और अच्छा स्वास्थ्य तो मांगते है लेकिन उनकी मूर्तियां सस्ती लेते है। मिट्टी की मूर्तियां थोड़ी महंगी होती है इस वजह से बाजार में इसकी मांग कम है अगर इन तीन बड़े कारणों पर गंभीरता से काम किया जाये तो आने वाले समय में बाजार में सिर्फ मिट्टी की मूर्तियां मिलेंगी।
पर्यावरण का पीओपी की मूर्ति के कम दाम आपसे बहुत कुछ छीन रहे हैं। कम दाम की पीओपी की मूर्ति से आपका और मानव समाज का कभी मंगल नहीं होगा। इस समस्या का हल सिर्फ एक आदेश तो नहीं सकता। उसके लिए जरुरी है मूर्ति निर्माण में लगे गरीब परिवारों की आर्थिक स्तिथि को मजबूत करने की योजना। साथ ही उस भगवान के स्वरुप को सस्ते में खरीदने की मानव की आदत, जिससे वो अपने लिए दुनिया भर के सुख और दौलत मांगता है, उसे बदलने पर जोर देना होगा। राजएक्सप्रेस डिजिटल की रिपोर्टर भोपाल के उन इलाकों तक पहुंचे जहां मूर्ति निर्माण में लगे परिवार खानाबदोशों की ज़िंदगी जी कर आपके भगवान तैयार कर रहे है। पढ़िए रिपोर्ट और तय कीजिये कि.... इस समस्या का हल क्या है?
भोपाल जिले की संपूर्ण सीमा क्षेत्र में भगवान गणेश की मूर्ति का निर्माण केवल उन्ही प्राकर्तिक सामग्रियों से किया जायेगा जैसा पवित्र ग्रंथों में उल्लेखित है। यह आदेश जिला प्रशासन द्वारा गणेश चतुर्थी से एक महीने पहले जारी किया गया लेकिन भोपाल में भगवान गणेश जी की मूर्ती निर्माण का कार्य पिछले 3-4 महीने से जारी है। मूर्ती निर्माण में केवल प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करने सम्बन्धी आदेश तो जिला प्रशासन ने जारी कर दिया लेकिन धरातल पर इसे लागू करने का कार्य प्रशासन करना भूल गया है। इसका परिणाम यह हुआ कि, अभी भी भगवान गणेश जी की मूर्ती में पीओपी (Plaster of Paris), डिस्टेम्पर और अप्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल बेफिक्री से किया जा रहा है। यदि आदेश मात्र निकालने से किसी समस्या का निराकरण संभव होता तो शायद बहुत पहले ही यह समस्या समाप्त हो गई होती।
राजएक्सप्रेस की टीम जब गणेश चतुर्थी की तैयारियों का जायजा लेने ग्राउंड पर उतरी तो पता चला कि, अब भी पीओपी, डिस्टेम्पर और अप्राकृतिक रंग का मूर्ति निर्माण में प्रयोग जारी है। जो मूर्तिकार इस तरह से मूर्ती का निर्माण कर रहे है उन्हें प्रशासनिक आदेश की कोई जानकारी नहीं है। इसके साथ ही उन्हें पीओपी, डिस्टेम्पर और अप्राकृतिक रंग से पर्यावरण को होने वाले नुकसान के बारे में भी कोई जानकारी नहीं है। जब बात सामाजिक सुधार की हो तो मात्र आदेश या आर्थिक दंड काफी नहीं होता, आवश्यकता होती है जमीनी स्तर पर लोगों को जागरूक करने की। हम इसे सामाजिक समस्या इसलिए कह रहे है, क्योंकि पर्यावरण को होने वाला नुकसान पूरे मानव समाज के लिए बड़ा खतरा है।
ऐसा नहीं है कि, मूर्ति का निर्माण केवल पीओपी या अप्राकृतिक रंगों से ही किया जा रहा है। कुछ ऐसे भी मूर्तिकार है जो बाहर से आये है और मिट्टी से मूर्ती का निर्माण कर रहे है। पीओपी की मूर्तियां ग्राहकों को सस्ती पड़ती है और बनाने भी आसान होती है वहीं, मिट्टी से मूर्ती बनाने में विशेष कौशल की आवश्यकता होती है। मूर्ती निर्माण में विशेष रूप से बंगाल की मिटटी की आवश्यकता होती है, जो इन मूर्तिकारों को बहुत महंगी पड़ती है। इस कारण से मिट्टी की मूर्ती पीओपी की मूर्ती से महंगी होती है इसलिए बाजार में पीओपी की मूर्ती की मांग ज्यादा है। भारतीय संस्कृति के अनुसार, मूर्ती का निर्माण मिट्टी से ही किया जाना चाहिए, इसी को शुद्ध माना गया है लेकिन अब भी पीओपी की मूर्तियां बाजारों में बिक रही है।
मिट्टी और पीओपी की मूर्ती की कीमत में अंतर:
पड़ताल करने पहुंची हमारी टीम को पता चला कि, मिट्टी की मूर्ती के दाम पीओपी की मूर्ती के दाम के मुकाबले डेढ़ से दोगुने होते है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि, मिटटी की मूर्ती में सबसे महत्वपूर्व घटक, विशेष मिट्टी मूर्तिकारों को बंगाल के कलकत्ता से मंगानी पड़ता है। कलकत्ता से मंगाई गई मिटटी की एक बोरी की कीमत इन मूर्तिकारों को 500 रुपए तक पड़ती है। इस मिट्टी का उपयोग विशेष रूप से मूर्ती के चेहरे निर्माण में किया जाता है। मूर्ती का ढांचा तैयार करने के लिए मूर्तिकार घास और बांस भी बाजार से ख़रीदते है । मूर्ती का बाकी हिस्सा बनाने के लिए खेतों से मिट्टी मंगाई जाती है जिसकी कीमत एक ट्रॉली लगभग 5 हजार रुपए तक होती है। कुल मिलाकर मिट्टी की एक मूर्ती जो हजार रुपए तक की है उसमें मूर्तिकार लगभग 800 रुपए की लागत लगाकर 200 रुपए की बचत करता है। वहीं पीओपी की मूर्ती के बारे में बात करें तो इतने ही आकार की मूर्ती बाजार में 300 से 500 रुपए में मिल जाती है।
पीओपी से पर्यावरण को होने वाला नुकसान:
पीओपी यानि प्लास्टर ऑफ़ पेरिस से तैयार की गई मूर्तियां देखने में काफी सुंदर और आकर्षित होती है, लेकिन यह हमारे पर्यावरण और नदी- तालाबों के लिए हानिकारक है। इन मूर्तियों को सुन्दर और आकर्षक बनाने के लिए इन पर रासायनिक पेंट का इस्तेमाल किया जाता है, जो इको फ्रेंडली नहीं होता है। यह पेंट पानी को प्रदूषित करता है। पानी प्रदूषित होने की वजह से जल जीवों को काफी नुकसान होता है।
आइये जानते हैं उन लोगों की कहानी जानते है जो बनाते है मूर्तियां :
विनय पॉल बंगाली मूर्तिकार (आयोध्या बायपास, रत्नागिरी तिराहा, कोल परिसर के सामने, भोपाल)
विनय पॉल पिछले 20 सालों से मिट्टी की मूर्तियों का निर्माण कर रहे है उन्होंने बताया कि, वे पिछले 6 सालों से भोपाल आकर मिट्टी की मूर्ती का निर्माण कर रहे है। इनका परिवार बंगाल के कोलकाता में रहता है। विनय के पिता मिट्टी से बर्तनों का निर्माण किया करते थे। विनय ने मूर्ती निर्माण का कार्य सीखकर अपनी पारिवारिक परंपरा को आगे बढ़ाया। उन्होंने बताया कि, पीओपी से जो मूर्ती बनाई जाती है उसे शुद्ध नहीं माना जाता कई लोग मिट्टी की मूर्तियों की मांग तो करते है लेकिन उचित दाम नहीं देते।
मिट्टी की मूर्ती निर्माण प्रक्रिया के बारे में उन्होंने बताया कि, मिट्टी से मूर्ती बनाने का काम पीओपी से मूर्ती बनाने से ज्यादा कठिन है। इस प्रक्रिया में कोलकाता से मंगाई गई मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। इससे चेहरे को आकार देने में सहूलियत होती है साथ ही फिनिशिंग देने में आसानी होती है।
उमा राम मूर्तिकार (गोविंदपुरा इंडस्ट्रियल एरिया, भोपाल)
ये मूर्तिकार मूल रूप से राजस्थान से है। पिछले 22 सालों से भोपाल में रह रहे है। इनके द्वारा पीओपी से मूर्ती बनाई जाती है यह मिट्टी से मूर्ती का निर्माण नहीं करते है। इनकी तीन बेटियां और एक बेटा-बहु और पोती है। इनकी कमाई का जरिया सिर्फ मूर्ती निर्माण करना है। इन्होंने बताया कि, मूर्ती निर्माण का काम इनका पूरा परिवार मिलकर करता है। गणेश चतुर्थी और दुर्गा पूजा के समय जब मूर्ती निर्माण करना होता है तब इनके परिवार के बच्चें स्कूल नहीं जाते हैं , बल्कि घर में रहकर काम में हाथ बटाते है। इनके पास आने वाले ज्यादातर ग्राहक पीओपी की मूर्ती की मांग करते है क्योंकि पीओपी की मूर्ति के दाम कम होते है।
जब हमने इनके द्वारा मूर्ती निर्माण में उपयोग होने वाली सामग्री के बारे में जानने की कोशिश की तो पता चला कि, इनके द्वारा मूर्ती को फिनिशिंग देने के लिए डिस्टेम्पर का उपयोग किया जाता है। मूर्ती को रंगने के लिए उपयोग होने वाले रंग भी अप्राकृतिक है। इनका पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर होने वाला प्रभाव भी नुकसानदेय है। इसके साथ ही रंग की डिब्बी पर उपयोग होने वाली सामग्री की जानकारी भी नहीं दी गई है। इससे लागू करने के लिए उचित कदम नहीं उठाए गए है। इन्होनें बताया कि, बीते साल पीओपी की मूर्तियां बनाने की वजह से इनकी दुकान प्रशासन द्वारा बंद करा दी गई थी, हालांकि अब-तक ऐसी कोई कार्यवाही नहीं की गई है। इससे यह लोग खुश है।
जागरुकता के कारण मिट्टी से मूर्ती का निर्माण तो शुरु हो गया है लेकिन पीओपी से मूर्ती का निर्माण कार्य अभी पूरी तरह बंद नहीं हुआ है। यह जागरुकता भी सामाजिक संगठनों द्वारा लाई गई है, प्रशासन की इसमें अधिक भूमिका नहीं है। इसके अलावा जो लोग मिट्टी से मूर्तियों का निर्माण कर रहे है उन्हें भी उचित मेहनताना नहीं मिल पा रहा है इसलिए भी मिट्टी से मूर्ती का निर्माण अपेक्षाकृत कम हो रहा है।
जागरुकता की कमी के कारण जो मूर्तिकार पीओपी से मूर्ती बना रहे है उन्हें उचित प्रशिक्षण और आवश्यक सहायता प्रदान करके उन्हें मिट्टी से मूर्ती बनाने के लिए प्रोत्साहन दिया जा सकता है। लोगों में भी व्यापक स्तर पर जागरुकता लाने की आवश्यकता है जिससे कि, वो मिटटी की मूर्ती का उचित दाम दे और पीओपी की मूर्तियों को "NO" कहें।
ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे राज एक्सप्रेस वाट्सऐप चैनल को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। वाट्सऐप पर Raj Express के नाम से सर्च कर, सब्स्क्राइब करें।