राज एक्सप्रेस। बीते डेढ़ दशक के दौरान मध्य प्रदेश के वन महकमें ने वनों के सुधार और संरक्षण पर करोड़ों रूपये विभाग खर्च किये हैं। इन करोड़ों रूपयों से जंगलों को हरा-भरा कर उपजाऊ बनाना था पर सरकार के उन करोड़ों रूपयों से जंगल तो हरे नही हो सके बल्कि अफसर जरूर हरे हो गए। आज लगातार वनों की अंधा-धुंध कटाई के कारण पहाड़ और जंगल वीरान होते जा रहे हैं, नदियां को छलनी किया जा रहा है। इसके कारण अनमोल प्राकृतिक संपत्ति, सम्पदा तेजी से नष्ट होती जा रही है जिससे जीवन और पर्यावरण के संतुलन को खतरा है।
पत्थरों की मांग और लाल मुरम के लिए राजस्व तथा वन भूमि पर धड़ल्ले से अवैध उत्खनन कराया जा रहा है। अंतहीन वनों की लगातार कटाई के कारण जंगलों के जंगली जानवर शहरों की तरफ भागने लगे हैं। नतीजन प्रदेश के गांवों और कस्बों में प्रवेश करने वाले जंगली जानवरों के शिकार की घटनाएं बहुत आम होती जा रहीं हैं, जो मानव जीवन के लिए एक गंभीर खतरा है। यहां जंगलों में लगने वाले प्लांटेसन के नाम पर भारी मात्रा मे सागौन के पेड़ों को काटकर नए पौधे लगाना था।
लेकिन आज जंगल और उन प्लांटेसनों मे धड़ल्ले से गेंहू, चना जैसी फसलें लहलहा रही हैं, और यही कारण है कि, जंगल मैदान बन रहे हैं और वन विभाग के अफसर हरे होते जा रहे हैं। जंगलों को नष्ट करने का एक सीधा-साधा उपाय माफियाओं ने ईजाद किया है। जंगल के पेड़ों को पहले काटकर फर्नीचर उद्योगों पर ठिकाने लगाया जाता है। जंगलों में बचे ठूठों को काटकर आग के हवाले कर दिया जाता है, और अंत मे उसे देखते ही देखते खेतों में तब्दील कर दिया जाता है।
ऐसी कोई जगह नहीं जहां जंगल की जगह खेती की जमीन नहीं
लटेरी की दक्षिण रेन्ज ने तो सारे नियमों को तांक पर रख दिया है, रेत खनन, अवैध सागौन की कटाई तथा जंगलों को मैदानों में तब्दील कराने के दौरान वर्दी तथा वन अधिनियमों को तांक पर रख बैठे हैं। लटेरी के चौपड़ा, थाना बीरान क्षेत्र में वन चौकी की नाक के नीचे ही बड़े पैमानों पर जंगलों को काटकर खेतों में तब्दील किया जा रहा है। बैगेरती की सारी हदें तो उस समय टूट जातीं हैं जब उसी चौकी के चारों तरफ पोकलेन मशीनों से अनगिनत कुऐं खोद दिये गये। इतना ही नहीं बोरवेल मशीनों से वे-हिसाब बोर भी खनन कर दिये गए, जबकि खेत को भी पोकलेन से ही तैयार किया गया है जिसके निशान साफ-साफ दिखाई दे रहे हैं।
अवैध खनन से नदियां छलनी, नाकेदार से लेकर रेन्जर तक सब सीसीएफ
अवैध खनन को लेकर वन विभाग ने भी कोई कोर कसर नही छोड़ी लगातार वन क्षेत्र के प्लान्टेशनों की नदियों में धड़ल्ले से रेत का खनन किया जा रहा है। जबकी नेवली, चन्देरी, दनवास, शहरखेड़ा, ककराज, बैरागढ़, सेना, कर्रावर्री, रानीधार जैसी नदियों से खूब खनन किया जा रहा है। जबकी इस रेत खनन के खेल में वन विभाग के अमले पर राजस्व के जिममेदारों की की भी कुदृष्टि जारी है। इस खेल को खेलने के दौरान कभी कभार खनन माफियाओं को राजस्व और वन महकमें से भी दो चार होना पड़ता है कि कौनसा विभाग जुर्माने के लिये कब पाला बदल ले।
उदासीनता, चौकीदारों के हवाले जंगल, नदियां और चौकियों पर ताले
लटेरी वन विभाग के अमले पर विभाग की जिम्मेदारी कितनी है, आपको देखना हो तो लटेरी के जय स्तंभ चौक, सिरोंज चौराहा, उत्तर रेन्ज सहित लटेरी की अनगिनित चाय और पान की दुकानों पर सुबह से लेकर रात तक बखूबी यह नजारा देखा जा सकता है। जब ये जिम्मेदार यहां मौज के दौर में दिखाई देगें उस समय शहर के जंगलों में वन माफिया और शिकारी अपना हुनर दिखा रहे होगें।
ईंट भट्टो के कारण नष्ट होने की कगार पर अचार, पलाश, बहेड़ा सहित कई वन सम्पदाएं
खेल तो ईंट भट्टों के नाम पर भी खूब खेला जाता है ग्रामींण क्षेत्रों में संचालित होने वाले ईंट भट्टों के लिये चोकिदार से लेकर डिप्टी तक मर्जी की पोस्टिंग लेना चाहता है न मिलने पर एक दूसरे के राज का जहर भी उगला जाता है। इस ईंट भट्टों के खेल को खेलने के कारण लटेरी के जंगलों से वन औषधियां वन सम्पदाऐं अचार, पलाश, छोला, आवंला, किरवारा, तेन्दू बहेड़ा सहित कई वन सम्पदाएं नष्ट होती जा रही हैं।
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