ग्वालियर,मध्यप्रदेश । अमृत योजना प्रथम चरण के सभी प्रोजेक्टों की क्लोजिंग करने के लिए नगरीय प्रशासन आयुक्त भरत यादव ने 15 दिन का समय दिया था। यह समयावधि खत्म हो चुकी है।लेकिन पेजयल कार्य से जुड़े दोनों ठेकेदारों ने अब तक फाईनल बिल भी नहीं दिये है। जब फाईनल बिल सामने आयंगे तब कमेटी उनका सत्यापन करेगी। इसके बाद आपत्तियों का निराकरण करने के बाद भुगतान किया जाएगा। तब जाकर प्रोजेक्ट क्लोज माना जाएगा, लेकिन ठेकेदार एवं अधिकारियों की मनमानी के चलते नगरीय प्रशासन आयुक्त द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन नहीं हो सका है। इस स्थिति में 31 मार्च तक अमृत प्रोजेक्ट की क्लोजिंग होना संभव नहीं दिख रही है।
दरअसल अमृत योजना के प्रथम चरण में किए गए सीवर एवं पेयजल संबंधी कार्य बहुत ही लापरवाही पूर्वक किए गए हैं। लेआउट एवं डिजाईन के मुताबिक काम ही नहीं हुआ है। इतना ही नहीं किस वार्ड में पहले से सीवर या पानी की लाईनें चालू थी, कितने में डली ही नहीं थी और कहां-कहां डाली गई हैं, इसकी सटीक जानकारी में भी बहुत बड़ा झोल है। पार्षदों को दी गई जानकारी भी पूरी तरह सत्य नहीं है। इतना ही नहीं मंत्री, विधायक एवं भोपाल में बैठे वरिष्ठ अधिकारियों को भी सत्यता नहीं बताई गई। अब अमृत 2 के आने से अमृत 1 के तहत किए गए चारों प्रोजेक्टों को क्लोज करने के निर्देश दिए गए ताकि अमृत 2 के लिए राशि जल्द नगर निगम को दी जा सके।
इसी उद्देश्य से नगरीय प्रशासन आयुक्त भरत यादव ने 16 फरवरी को भोपाल में आयोजित बैठक में निर्देश दिए गए थे कि 15 दिन में अमृत योजना से संबंधित सभी कार्य खत्म करके प्रोजेक्ट को क्लोज करें। इन निर्देशों को देखते हुए निगमायुक्त किशोर कन्याल ने सीवर एवं पेजयल प्रोजेक्टों के फाईनल बिलों के भुगतान के लिए दो अलग-अलग कमेटियां बनाई थीं। कमेटियों की दो बैठकें भी हुई लेकिन दस्तावेज एवं फाईनल बिल की कमी के चलते प्रोजेक्ट के कार्यों का सत्यापन नहीं हो सका है। हद तो यह है कि पेजयल प्रोजेक्ट से जुड़ी दोनों कपंनियों का फाईनल बिल तक तैयार नहीं हो सका है। ऐसे में कब सत्यापन होगा और कब भुगतान यह भी तय नहीं है।
अधिकारी सत्यापन के बाद ही करेंगे हस्ताक्षर
अमृत योजना के तहत जिन अधिकारियों ने सारे काम कराए हैं उसमें से कुछ सेवा निवृत हो गए जबकि कुछ का तबादला हो चुका है। ऐसे में पीएचई जिन नए अधिकारियों को अमृत योजना से जोड़ा गए है वह फाईनल बिल के भुगतान में अपनी कलम फंसाने से बच रहे हैं। सभी को पता है कि अमृत योजना में हुए करोड़ों रुपय के भ्रष्टाचार की शिकायत ईओडब्लू एवं लोकायुक्त में होना तय है। जिन अधिकारियों ने माल कमाया वह बीच में ही प्रोजेक्ट से दूर हो गए। अब फाईनल स्टेज पर कलम फंसाकर जांच क्यों पंगा मोल लिया जाए। लेकिन निगमायुक्त की फटकार के कारण वह काम तो कर रहे हैं परंतु बिलों पर तभी हस्ताक्षर करेंगे जब सत्यापन प्रक्रिया पूरी हो जायगी।
सीवर संधारण नोडल अधिकारी समिति से हटे
अमृत योजना के तहत किए गए कार्यों का फाईनल भुगतान कराने के लिए निगमायुक्त ने दो कमेटियां गठित की थी। इसमें सीवर प्रोजेक्ट में किए गए कार्यों का सत्यापन कराने वाली टीम में सीवर संधारण के नोडल अधिकारी राजेन्द्र भदौरिया को शामिल किया गया था। लेकिन उन्होंने निगमायुक्त को पत्र लिखकर स्वंय को सत्यापन कमेटी से अलग कर लिया। नोडल अधिकारी का आरोप था कि अमृत योजना भ्रष्टाचार का पुंलिदा है। इससे जुड़े किसी भी दस्तावेज पर मैं साईन नहीं करूंगा। मुझे इस समिति से हटाया जाए। इसके बाद राजेन्द्र भदौरिया ने किसी भी बैठक में हिस्सा नहीं लिया।
दोनों कमेटियों में यह अधिकारी थे शामिल
सीवर प्रोजेक्ट
मुकुल गुप्ता, अपर आयुक्त
रजनी शुक्ला, अपर आयुक्त वित्त एवं लेखा अधिकारी
आरके शुक्ला, कार्यपालन यंत्री, सीवर प्रोजेक्ट
राजेन्द्र भदौरिया, नोडल अधिकारी ,सीवर संधारण
अर्जुन सिंह, आरई, पीडीएमसी
पेजयल प्रोजेक्ट
मुकुल गुप्ता, अपर आयुक्त
श्रीमति रजनी शुक्ला, अपर आयुक्त वित्त एवं लेखा अधिकारी
जागेश श्रीवास्तव, नोडल अधिकारी, अमृत योजना
संजय सोलंकी, कार्यपालन यंत्री, पीएचई
अर्जुन सिंह, आरई, पीडीएमसी
इनका कहना है
अमृत योजना के प्रथम चरण के चारों प्रोजेक्टों की क्लोजिंग 31 मार्च से पहले की जानी है। सभी कार्यों का फाईनल भुगतान होने से पहले सत्यापन होना है जिसके लिए दो कमेटियां बना दी है। सीवर प्रोजेक्ट के दोनों ठेकेदारों ने बिल प्रस्तुत कर दिए हैं, सिर्फ पेजयल प्रोजेक्टों के बिल पेश नहीं हुए। इसके लिए अधिकारियों को निर्देशित किया है।
किशोर कन्याल, निगमायुक्त
पेजयल प्रोजेक्ट का कार्य करने वाली दोनों कपंनियों के पदाधिकारी बिल तैयार कर रहे हैं। झांसी क्रांकीट उद्योग कंपनी का बिल लगभग तैयार है लेकिन विष्णु प्रकाश पुंगलिया का बिल तैयार होने में समय लग रहा है।
जागेश श्रीवास्तव, नॉडल अधिकारी, अमृत योजना
मैं अमृत योजना से जुड़े किसी भी कार्य में शामिल नहीं हूं। इस योजना में जमकर भ्रष्टाचार हुआ है जिसकी शिकायत ईओडब्लू या लोकायुक्त में होना तय है। साथ ही जनहित याचिका भी लगाई जा सकती है। इसलिए मैंने निगमायुक्त को पहले ही पत्र लिखकर समिति से अपने आप को अलग कर लिया है। मैं अमृत योजना से जुड़े किसी कार्य में शुरूआत से शामिल नहीं हुआ और आगे भी नहीं होऊंगा। मैं तीन महीने में सेवा निवृत हो जाऊंगा और मुझे कोर्ट के चक्कर लगाने का कोई शोक नहीं है।
राजेन्द्र सिंह भदौरिया, नोडल अधिकारी, सीवर संधारण, नगर निगम
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