डॉ. गोविंद सिंह ने MP सरकार पर लगाया आरोप
डॉ. गोविंद सिंह ने MP सरकार पर लगाया आरोप Social Media

नर्मदा नदी के जल का संपूर्ण उपयोग करने में असफल रही मध्यप्रदेश सरकार- डॉ. गोविंद सिंह

डॉ. गोविंद सिंह ने MP सरकार पर आरोप लगाया कि राज्य सरकार की उदासीनता एवं लापरवाही के चलते नर्मदा नदी की सहायक नदियों पर बांध बनाकर प्रदेश को आवंटित पूरी जल की मात्रा का उपयोग नहीं किए किया गया है।
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भोपाल, मध्यप्रदेश। प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने बयान देते हुए मध्यप्रदेश सरकार को जमकर घेरा है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ.गोविन्द सिंह ने कहा है कि मध्यप्रदेश की लाईफ लाईन एवं जीवित इकाई नर्मदा नदी के जल का संपूर्ण उपयोग मध्यप्रदेश सरकार की उदासीनता के चलते मध्यप्रदेश में नहीं हो पा रहा है।

राज्यों के बीच नर्मदा के मध्यप्रदेश कछार के जल बंटवारे के लिए भारत सरकार द्वारा सन् 1968 में गठित नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण द्वारा वर्ष 1979 में मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र एवं राजस्थान के मध्य जल का बंटवारा किया था जिसके अनुसार मध्यप्रदेश को 18.25 मिलियन एकड़ फीट, गुजरात को 9.00 मिलियन एकड़ फीट, महाराष्ट्र को 0.25 एकड़ फीट एवं राजस्थान को 0.50 मिलियन एकड़ फीट कुल 28.00 एकड़ मिलियन एकड़ फीट का बंटवारा किया गया था।

नर्मदा नदी पर मुख्य सहायक नदियां, जिनकी संख्या 41 है । इनमें से 19 सहायक नदियां दांये तट से तथा 22 सहायक नदियां बांये तट के नर्मदा से मिलती है। कुल 41 सहायक नदियों में से 39 सहायक नदियां मध्यप्रदेश में है । केवल दो सहायक नदियां नर्मदा से गुजरात में मिलती है। नर्मदा की उक्त सहायक नदियों पर अभी तक बांधों का निर्माण नहीं किया गया है, जिससे नर्मदा नदी का पानी बहकर गुजरात जा रहा है।

म.प्र.शासन द्वारा जुलाई 1981 में पृथक नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण का गठन किया गया था । नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण द्वारा नर्मदा जल के समय सीमा में उपयोग सुनिश्चित करने के लिए म.प्र.शासन द्वारा नर्मदा घाटी विकास विभाग के अन्तर्गत नर्मदा नियंत्रण मंडल तथा नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण का गठन किया गया है । एन.डब्ल्यूडीटी के क्लॉज 10 के अनुसार म.प्र. सरदार सरोवर डेम के लिए 8.12 मिलियन एकड़ फीट पानी छोड़ने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है, जबकि महेश्वर डेम का कार्य अपूर्ण है, जिससे मध्यप्रदेश के हिस्से का पानी निरंतर गुजरात में जा रहा है। वर्तमान में मध्यप्रदेश उसके हिस्से का आवंटित 18.25 मिलियन एकड़ फीट में से 9.20 मिलियन एकड़ फीट पानी का ही उपयोग कर पाया है।

न्यायाधिकरण द्वारा संबंधित राज्यों को आअवंटित् जल का पुनरीक्षण अवार्ड पारित होने के 45 वर्ष पश्चात् अर्थात् 07 दिसम्बर 2024 के बाद प्राधिकरण के निर्णय पर पुनर्विचार करने का प्रावधान है क्योंकि उक्तावधि की स्थिति में जो राज्य नर्मदा जल का जितना उपयोग करेगा, उस जल पर संबंधित राज्य का अधिकार होगा । इस तरह 07 दिसम्बर 2024 के बाद नर्मदा नदी के अधिकांश जल पर गुजरात का अधिकार स्थापित हो जाएगा।

डॉ. सिंह ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि राज्य सरकार की उदासीनता एवं लापरवाही के चलते नर्मदा नदी की सहायक नदियों पर बांध बनाकर मध्यप्रदेश को आवंटित पूरी जल की मात्रा का उपयोग नहीं किए किया गया है, जिससे प्रदेश के नर्मदा कछार के अन्तर्गत आनेवाले क्षेत्र में जल का संकट उत्पन्न हो जाने से भूमिगत जल का स्तर भी अत्यन्त नीचे चला जाएगा। साथ ही जल की कम उपलब्धता के कारण जलाशयों के जलीय जीवों के जीवन पर संकट उत्पन्न होने के साथ ही पर्यावरण भी प्रभावित होगा और सिंचाई हेतु पर्याप्त पानी नहीं मिलने से कृषि उत्पादन घट जाएगा जिससे रोजीरोटी समस्या उत्पनन होने से भी इंकार नहीं किया जा सकता ।

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