भोपाल, मध्यप्रदेश। प्रदेश में आपातकालीन स्थिति में 24 घंटे सातों पहर प्रतिक्रिया प्रणाली को उन्नत और उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार ने एक नवंबर 2015 से डायल-100 परियोजना लागू की थी। इसके माध्यम से संकटकालीन कॉल मिलने पर फर्स्ट रिस्पांस व्हीकल को शहरी क्षेत्रों में पांच मिनट और ग्रामीण क्षेत्रों में 30 मिनट के भीतर घटनास्थल पर पहुंचना था, लेकिन डायल-100 दोनों ही मामलों में तय समय में घटना स्थल पर पहुंचने में नाकाम रही। शहरी क्षेत्रों में जहां पहुंचने का औसतन समय 24 मिनट था, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह समय 56 मिनट था। इस तरह संकटकालीन कॉल में तुरंत प्रतिक्रिया देने में डायल-100 पूरी तरह नाकाम रहा और अपने उद्दश्यों को हासिल नहीं कर सका।
इस तरह की कड़ी टिप्पणी भारत के नियंत्रक- महालेखापरीक्षक ने अपनी रिपोर्ट में की है। मप्र में डायल-100 आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली पर सीएजी ने पहली बार रिपोर्ट तैयार की है, जिसे शुक्रवार को सदन के पटल पर रखा गया। इस रिपोर्ट में सीएजी ने डायल-100 को लेकर कड़ी टिप्पणी की है। इससे इस प्रणाली को लागू करने और उसकी उपयोगिता के साथ ही विश्वसनीयता पर सवाल उठ खड़े हुए हैं।
बलात्कार, अपहरण जैसे मामलों में भी समय पर नहीं पहुंचा डायल-100 :
सीएजी ने रिपोर्ट में खुलासा किया है कि जघन्य अपराधों, जैसे बलात्कार, बलात्कार का प्रयास, अपहरण, घरेलू हिंसा आदि के मामलों में भी वाहनों को भेजने में देरी हुई। सीएजी ने माना है कि वर्ष 2016-19 में हमें संकटकालीन कॉल की प्रतिक्रिया समय में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं मिला। इस देरी ने संकटकालीन कॉल के लिए त्वरित प्रतिक्रिया देने में डायल 100 प्रणाली के उद्देश्य को विफल किया।
100 में 20 कॉल को ही कार्रवाई योग्य माना, केवल दो मामलों के वैध डेटा :
सीएजी ने माना है कि गृह विभाग ने प्रणाली को चलाने के लिए एक वर्ष में औसतन 104 करोड़ रुपए खर्च किए। यह भी पाया गया कि केंद्रीकरण के बावजूद सृजित डेटा की गुणवत्ता प्रभावी निगरानी के लिए अपने आप में उपयुक्त नहीं थी। प्रणाली में किए गए प्रत्येक 100 कॉल में से मात्र 20 को ही कार्रवाई के योग्य माना गया और इन कार्रवाई योग्य कॉल में से मात्र दो में ही फर्स्ट रिस्पांस व्हीकल को भेजने के समर्थन में वैध डेटा था।
परियोजना प्रबंधन सलाहकार भी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम :
सीएजी ने साफ किया है कि परियोजना प्रबंधन सलाहकार जिसे 72 लाख रुपए वार्षिक में अनुबंधित किया गया था, ने भी यह सुनिश्चित नहीं किया कि सिस्टम इंटीग्रेटर द्वारा दी गई सेवा स्तरों की निगरानी के लिए पूर्ण एवं उपयोगी डेटा सृजित किया गया। सीएजी के मुताबिक प्रणाली को फर्स्ट रिस्पांस वहीकल में लगे तकनीकी उपकरणों के उपयोग से लाभावित करना था, जैसे मोबाइल डेटा टर्मिनल, जो या तो लगे हुए नहीं थे या फिर क्रियाशील नहीं थे और जब क्रियाशील थे, तो पुलिसकर्मियों ने डेटा को अपेक्षित क्रम में दर्ज ही नहीं किया।
पुलिसकर्मी भी सुस्त :
रिपोर्ट के मुताबिक विभाग ने सिस्टम इंटीग्रेटर को समयसीमा में विस्तार के साथ-साथ पूर्णत: सुसज्जित वाहनों के प्रावधानों में, जैसा कि अनुबंध में प्रावधान किया गया था, कई रियायतें दी। सीएजी ने माना है कि पुलिसकर्मी भी निगरानी में सुस्त थे और जैसा प्रणाली से अपेक्षित था, उन्होंने प्रौद्यागिकी के उपयोग के माध्यम से या तो पर्यवेक्षी नियंत्रण का उपयोग नहीं किया या प्रणाली में आवश्यकता के हिसाब से ऑन-साइट ड्यूटी नहीं दी।
विभाग ने पर्याप्त पुलिस बल भी उपलब्ध नहीं कराए :
रिपोर्ट में कहा गया है कि विभाग ने अपनी ओर से कुछ जिलों में अतिशेष जनशक्ति के बावजूद, फर्स्ट रिस्पांस व्हीकल में पर्याप्त संख्या में पुलिस कर्मी उपलब्ध नहीं कराए। प्रणाली के संचालन की निगरानी के लिए जिम्मेदारी अधिकारियों द्वारा उपचारात्मक कार्रवाई के लिए विलंबित प्रतिक्रियाओं का उचित रूप से विश्लेषण नहीं किया गया।
पसंदीदा बोली को बदलने मूल्यांकन मापदंड में किया बदलाव :
सीएजी ने यह भी खुलासा किया है कि विभाग ने सेवाओं की निविदा में पारदर्शिता सुनिश्चित नहीं की। परियोजना सहालकार द्वारा चयनित बोलीदाता के साथ संभावित हितों के टकराव का खुलासा नहीं किया और चयन में सक्रिय रूप से संलग्ल रहा। परियोजना प्रबंधन सलाहकार के चयन के अंतिम चरण में पसंदीदा बोली को बदलने के लिए मूल्यांकन मानदंड में बदलाव किया गया था।
कमियों की व्यापक समीक्षा हो :
सीएजी ने जो निष्कर्ष निकाला है उस हिसाब से परियोजना में ठेका प्रबंधन, प्रणाली संरचना और कार्यान्वयन में कमी थी, जिसके कारण इसके उद्देश्यों की प्राप्ति में विफलता हुई। सीएजी ने अनुशंसा की है कि डायल 100 की प्रणालीगत कमियों की व्यापक समीक्षा की जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि त्वरित प्रतिक्रिया देने के इसके अपने उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके।
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