हाइलाइट्स :
जिला चिकित्सालय परिसर में गन्दगी व अव्यवस्थायें
अव्यवस्थित प्रबंधन के चलते मरीज व अटेण्डर सभी परेशान
चिकित्सालय में पानी साफ़ पानी की व्यवस्था नहीं
गंदगी भरे वातावरण में रखी टंकी से पानी गुजारा कर रहें हैं ग्रामीण
चिकित्सालय में न ही अनुशासन, न ही सुरक्षा
राज एक्सप्रेस। अन्धे को क्या चाहिए बस दो आंखे। उसे दो आंखे मिल, जाये तो वह सबसे धनवान व्यक्ति होता है। परन्तु अंधा दो आंखों के चक्कर में अपने कान और नाक भी खो दे तो वह भगवान से यहीं प्रार्थना करता है कि, हे भगवान मुझे वापिस अंधा ही बना दे। ऐसा ही आलम है, जिला चिकित्सालय शिवपुरी का। जहां न तो मरीज को व्यवस्थित इलाज मिलता है और न ही स्वच्छ वातावरण। ये दोनों चीजें न मिलने से उसकी बीमारी बढ़ती चली जाती है और उसे मजबूर होना पड़ता है। स्वच्छ और साफ किसी प्राइवेट अस्पताल में जाने के लिये। यदि बीमार व्यक्ति जहां इलाज कराने जाये वहां उसे दुर्गंध भरे वातावरण, अस्त-व्यस्त व्यवस्थायें देखने को मिले तो वह हड़बड़ाकर अपना इलाज कराना भूलकर वहां से भागना उचित समझता है। शिवपुरी का जिला चिकित्सालय जिसे शासन ने बनाया बड़े जतन से है। करोड़ो की लागत से भव्य इमारत के रूप में खड़ा शिवपुरी का जिला चिकित्सालय की स्थिति बस एक भव्य इमारत के रूप में दिखती भर रह गई है, क्योंकि यहां ना तो कोई प्रबंधन है ना ही कोई स्वच्छता। पत्रकारों की टीम जिला चिकित्सालय में जाकर अपने कैमरे में केद करते हुये पाया कि यहां परिसर में गंदगी का आलम है। परिवार नियोजन कक्ष के बाहर पेवर ब्लॉक के ऊपर मल मूत्र पड़ा हुआ है। जिसकी दुर्गंध परिसर में फैल रही है।
धूमिल नजर आ रही व्यवस्थाएं :
परिसर के अंदर व बाहर कई जगह गंदगी पड़ी देखी गई। मरीजों की व्यवस्था के प्रबंधन को पूरी तरह से अव्यवस्थित होते हुये देखा गया कि ओपीडी में मरीजों को दिखाने के लिये पर्चा बनवाते हुये धूप में बिना छाया के महिला-पुरूष एक ही लाइन में एक दूसरे को धक्का-मुक्की करते देखे गये। ओपीडी के अंदर चिकित्सकों के कई कक्ष को खाली थे वहीं कई कक्ष जहां चिकित्सक बैठे थे, वहां मरीजों की लाइन की स्थिति भी बदहाल थी। इसके अलावा और भी कई अन्य जनहित व्यवस्थाएं जो आमजन के लिए मुहैया होनी चाहिए, वेा पूरी तरह से धूमिल नजर आ रही थीं।
गंदगी-दुर्गंध के बीच महज खानापूर्ति बयां करती पीने के पानी की एक नल की टंकी :
जिला चिकित्सालय इतना भव्य परिसर है , इतना बड़ा अस्पताल है, जहां पूरे जिले के सभी अनुभागों के मरीज यहां इलाज कराने आया-जाया करते हैं, परन्तु यहां पीने के पानी के नाम पर महज एक टंकी ही चिकित्सालय प्रबंधन द्वारा आमजन के लिए रखी गई। उसकी व्यवस्था भी जिला चिकित्सालय प्रबंधन द्वारा नहीं की जा रही। शिवपुरी दलाल एसोसिएशन के सौजन्य से लगाई गई है। जिसमें केवल एक ही नल लगा था। जिस जगह जिस टंकी से पीने का पानी उपलब्ध है उस टंकी के चारों ओर गंदगी व दुर्गंध व्याप्त है, लेकिन बेचारे मरीज व उनके अटेण्डर क्या करें। उनकी मजबूरी है, वो तो अपना इलाज कराने जिला चिकित्सालय में आये हैं। अब उन्हें तो जैसे-तैसे अपनी प्यास बुझानी है। ग्रामीण के भोले-भाले आमजन इसी गंदगी भरे वातावरण में रखी टंकी से पानी भरकर गुजारा कर लेते हैं। करोड़ों की लागत व प्रशासन के करोड़ों खर्च करने वाले अस्पताल प्रबंधन को आमजन एवं जनहित सुविधाओं का तनिक भी ख्याल नहीं है।
अपने मरीज को खुद ले जाना पड़ता है स्ट्रेचर से :
"नाम बड़े और दर्शन छोटे" वाली कहावत जिला चिकित्सालय शिवपुरी के प्रबंधन पर पूरी तरह से लागू कही जा सकती है, क्योंकि यहां अक्सर एैसा भी देखने को मिलता है कि, यदि आपका मरीज गंभीर हालत में है, वह चलने-फिरने से लाचार है, तो यहां अस्पताल स्टाफ आपकी कोई मदद नहीं करेगा। यहां तो आप अपने हांथों से स्ट्रेचर से अपने मरीज को अस्पताल के अंदर ले जा सकते हैं। जबकि प्राय: बडे़ अस्पतालों में देखा गया है कि, वहां अस्पताल के दरवाजे तक मरीज आया और अस्पताल प्रबंधन द्वारा स्टाफ के माध्यम से मरीज को स्ट्रेचर लाने ले जाने की सुविधा मुहैया कराई जाती है। लेकिन जिला अस्पताल शिवपुरी का आलम तो यह है कि यहां आमजन खुद अपने मरीज को स्ट्रेचर पर ले जाया करते हैं। वहीं अस्पताल कर्मी स्ट्रेचर पर मरीज की जगह अस्पताल का सामान ढोते नजर आते हैं। परन्तु अब क्या करें मजबूर हैं, आखिर इलाज जो कराना है।
न ही अनुशासन, ना ही सुरक्षा :
यदि एक आम आदमी जिला अस्पताल में इलाज कराने पहुंचता है और यदि वह महिला है, तो समझ लो उसके लिये अत्यधिक परेशानियों के दौर से गुजरना पड़ सकता है, क्योंकि जैसा कि देखा गया कि, अस्पताल परिसर में ओपीडी का पर्चा बनाने के लिये धक्का-मुक्की भरे माहौल से महिला को पुरूष वाली लाइन में ही लगकर पर्चा बनवाना पड़ेगा। वहीं चिकित्सक के कक्ष में पहुंचने पर अपना नंबर आने के लिये भी पुरूष व महिला एक ही लाइन में खडे़ होकर धक्का मुक्की के दौर से यहां भी गुजरना पड़ेगा। ना तो यहां कोई लाइन को प्रबंधन करने वाला सुरक्षा गार्ड होगा और ना ही अस्पताल कर्मी। अब एैसे में मरता क्या नहीं करता। मजबूरी है कि, चाहे महिला हो या पुरूष अपना व अपनों का इलाज कराने के लिये भले ही धक्के ही क्यों ना खाने पड़े डाक्टर तक पहुचँते हैं।
महज दिखावा बनकर रखे हैं कचरा दान :
बिना अनुशासन, बिना देख-रेख के एवं जब तक प्रबंधन सख्त ना हो तब तक वहां की व्यवस्थाओं पर नियंत्रण पाना नामुमकिन है। ऐसा ही देखने में आया अस्पताल परिसर में रखे कचरादानों में कोई कचरा नहीं डालता। जबकि परिसर में यहां-वहां गंदगी देखने को मिली। इसका कारण यह है कि जो भी लोग गंदगी फैलाते हैं, उन्हें ना तो यहां कोई रोकने-टोकने वाला है और ना ही रखे गये कचरादानों को आकर्षक व चिन्हित किया गया है। ताकि लोग अपने आप उन कचरादानों का उपयोग सही ढंग से कर सकें। हाल फिलहाल तो बिना किसी रंग रोगन के मैले कचरादान महज खानापूर्ति के तौर पर रखे देखा जा सकते हैं।
अस्पताल परिसर में कहीं भी पड़ी रहती है गंदगी मल-मूत्र :
एक तरफ तो भारत सरकार एवं मध्यप्रदेश सरकार द्वारा 02 अक्टूबर को स्वच्छता अभियान चलाकर भारत के नागरिक को साफ-सफाई करना व स्वच्छता से रहने की सीख दी जाती है, वहीं दूसरी ओर इसी प्रशासन के नुमाइंदे, जो बड़े औहदों पर बैठे अस्पताल परिसर को स्वच्छ व साफ रखने का दंभ भरते हैं वे अस्पताल परिसर को स्वच्छता विहीन बनाने में लिप्त हैं। जिला अस्पताल परिसर में कहीं भी गंदगी पड़ी देखी जा सकती है। हाल ही में परिवार नियोजन कक्ष के आगे पेवर ब्लॉकों पर मल-मूत्र देखा गया। जिला अस्पताल में इस तरह की अस्वच्छता निश्चित तौर पर भारत में चलाये जा रहे स्वच्छता अभियान को धता बताना ही कहा जा सकता है।
जिम्मेदार अधिकारी नहीं उठाते फोन :
जिला चिकित्सालय में व्याप्त गंदगी व अव्यवस्थाओं के संबंध में जब जिला चिकित्सालय के जिम्मेदार अधिकारी सीएमएचओ से दूरभाष पर संपर्क करने का प्रयास किया जाता है तो लगभग उनके द्वारा फोन रिसीव ही नहीं किया जाता है, क्योंकि ना फोन रिसीव होगा और ना ही किसी बात का जबाव देना पड़ेगा। इस तरह से वे अपना पल्ला झाड़ते नजर आते हैं।
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