भोपाल, मध्य प्रदेश। बेटी और पिता का रिश्ता वात्सल्य, आंगन की अठखेलियों और पिता के घर से विदा होने तक अनूठी यादों का सागर होता है। जब पिता संसार से विदा हो और बेटी उनकी अंतिम यात्रा तक साथ निभाए तो यादों के गलियारों से उमड़ती-घुमड़ती परछाइयों का पूरा संसार आगे-पीछे चलता है। वह बेटी जो कभी पिता की परी थी, जब अंतिम यात्रा से लौटती है तो मान-सम्मान और संस्कार देने वाला पिता उसके लिए फरिश्ता बन जाता है। साधना ने भी यही कहा, अब वो मेरा फरिश्ता रहेगा।
बात मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और उनकी पत्नी श्रीमती साधना सिंह की है। श्रीमती साधना सिंह के पिता घनश्यामदास मसानी का विगत बुधवार को निधन हो गया था। पिता को याद करते हुए श्रीमती साधना सिंह ने कुछ शब्दों में उन्हें याद किया तो शिवराज ने पत्नी के शब्दों को ट्वीटर पर साझा किया। पुरानी तस्वीरें भी ट्वीट की।
शिवराज सिंह ने लिखा कि पिता-पुत्री के रिश्तों में कोई शर्त नहीं होती। यह निस्वार्थ होता है। पुत्री, पिता के सबसे करीब होती है और पिता का अभिमान भी होती है। एक बेटी को सबसे ज्यादा प्यार और गर्व अपने पिता पर होता है। आज बाबूजी नहीं हैं। वे बहुत सरल, सहज और विनम्र थे। मैंने इतने वर्षों में उनके चेहरे पर कभी गुस्सा नहीं देखा। वे हमेशा प्रेरणादायी रहेंगे, वे साधना और शिव की शक्ति रहेंगे और उनका आशीर्वाद और स्नेह सदैव परिवार पर बना रहेगा। मेरी धर्मपत्नी ने स्व. बाबूजी के पुण्य स्मरण और जीवटता को कुछ पंक्तियों में पिरोया है।
पिता के लिए श्रीमती साधना सिंह ने लिखा :
जिसके कंधे पे बैठकर घूमा करती थी... उसे कंधा देकर आई हूं।
उसके माथे को चूमकर, जिंदगी की नसीहतें लेकर आई हूं।।
उसने सिखाया ही नहीं सर को झुकाना और शरमाना मुझे।
तो जो सिखाया था.. बस उसे जीकर आई हूं।।
जब उसे ले जा रही थी तब समंदर था आंखों में मेरी।
अब घर लौटी हूं तो सारा समंदर पीकर आई हूं।।
मेरे गालों पर हर अश्क नागवारा था उसे।
तो बस उसी के लिए... ये जख्म भी सीकर आई हूं।।
मैं परी थी उसकी... अब वो मेरा फरिश्ता रहेगा।
जाते हुए भी ये वादा उससे लेकर आई हूं।।
उसकी देह को छोड़ आई हूं उसकी खुशी के लिए।
पर उसकी आत्मा को अपने लिए सहेजकर लाई हूं।।
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