महान क्रांतिकारी 'रामप्रसाद बिस्मिल' की जयंती पर सीएम शिवराज ने किया नमन

भोपाल, मध्यप्रदेश। आज महान क्रांतिकारी "रामप्रसाद बिस्मिल" की जयंती है, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रामप्रसाद बिस्मिल की जयंती पर उन्हें नमन किया।
आज रामप्रसाद बिस्मिल की जयंती
आज रामप्रसाद बिस्मिल की जयंतीPriyanka Yadav-RE
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भोपाल, मध्यप्रदेश। कोरोना संकटकाल के बीच कई महान विभूतियों की जयंती सामने आ रही हैं, आज महान क्रांतिकारी "रामप्रसाद बिस्मिल" (Ram Prasad Bismil Birth Anniversary) की जयंती है, बता दें कि आज के दिन महान क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म यूपी के शाहजहांपुर में हुआ था, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रामप्रसाद बिस्मिल की जयंती पर उन्हें नमन किया।

सीएम शिवराज ने ट्वीट के जरिए किया नमन-

एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज ने ट्वीट कर कहा- महान स्वतन्त्रता सेनानी, कवि, शायर रामप्रसाद बिस्मिल की जयंती पर उन्हें नमन करता हूं, देश की आजादी के लिये अपने प्राणों की आहुति देने वाले महापुरुष को प्रणाम।

न चाहूं मान दुनिया में, न चाहूं स्वर्ग को जाना मुझे वर दे यही माता, रहूं भारत पे दीवाना करूं मैं कौम की सेवा, पड़े चाहे करोड़ों दु:ख अगर फ़िर जन्म लूं, तो भारत में ही हो आना- बिस्मिल

मुख्यमंत्री चौहान ने कहा

नरोत्तम मिश्रा ने भी किया ट्वीट

मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कर कहा- देश की स्वतंत्रता हेतु अपने प्राणों की आहुति देने वाले महान क्रांतिकारी रामप्रसाद_बिस्मिल की जयंती पर सादर नमन!

"सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-क़ातिल में है।

वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान

हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है"

बताते चलें कि आज यानि 11 जून 1897 को काकोरी कांड के महानायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने यूपी के शाहजहांपुर में जन्म लिया था, उनके पिता का नाम मुरलीधर और माता का नाम मूलमती था, उनके पिता एक रामभक्त थे, जिसके कारण उनका नाम र से रामप्रसाद रख दिया गया। वह बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी थे, हिन्दी, उर्दू, संस्कृत, अंग्रेजी भाषा का उन्हें अच्छा ज्ञान था, राम प्रसाद बिस्मिल राष्ट्रप्रेम की कविताओं के साथ-साथ शायरी भी करते थे, पूरा देश उन्हें बड़ी शिद्दत से याद करता है।

वहीं गोरखपुर के लिए महानायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल एक अलग पहचान हैं, अपने जीवन के आखिरी चार महीने और दस दिन उन्होंने यहां की जिला जेल में बिताए थे, यह वक्त महानायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के आध्यात्मिक सफर का भी अंतिम पड़ाव था। फांसी के तीन दिन पहले ही उन्होंने अपनी आत्मकथा का आखिरी अध्याय पूरा किया था, 19 दिसंबर 1927 में गोरखपुर जिला जेल में उन्हें फांसी दी गयी थी।

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