हाइलाइट्स:
भादौ मास के शुक्ल पक्ष के 11 वें दिन मनाया जाता है डोल ग्यारस पर्व।
भगवान नरसिंह की प्रतिमा नदी में सिर्फ 3 बार तैराई जाती है।
भारत में नरसिंह मंदिर देश का एकमात्र मंदिर, यहां गायत्री त्रिपदा स्थापित।
एक तपस्वी साधु ने भगवान नरर्सिंह की चमत्कारिक अद्भुत प्रतिमा की भेंट।
राज एक्सप्रेस। मध्य प्रदेश के देवास जिले में मुख्य इन्दौर नेमावर मार्ग से 5 मील उत्तर में विंध्याचल की पहाड़ियों के निकट बसा हुआ भगवान नृसिंह का यह नगर ऐतिहासिक व धार्मिक दृष्टिकोण से अद्भुत हैं। महाराणा उदय सिंह के वंशज शंभु सिंह ने मालवा में 347 वर्ष पूर्व विक्रम संवत् 1729 अंग्रेज़ी सन् 1672 को एक जागीर बसाई नाम रखा पीपल्या, वर्तमान मेंं इसका नाम हाटपीपल्या हैं।
पीपल्या का नाम हाटपीपल्या क्यों रखा :
वर्तमान नीलकंठ की बावड़ी के समीप ही तात्कालीक शक्तावत राजपरिवार की गढ़ी महल थी। विक्रम संवत् 1912 अंग्रेजी सन् 1855 बुधवार के दिन शीतला माता मंदिर के सामने ठाकुर भुवानी सिंह शक्तावत ने हाट बाजार प्रारम्भ किया। हाट का स्वरूप शीघ्र ही वृहद् होने व व्यापार अनुकूल होने के कारण पीपल्या का नाम हाटपीपल्या हो गया और आज भी सतत् 164 वर्षों से बुधवार को हाट लगता हैं, उसी समय के लगभग 10 से 15 हाथियों का झुंड महावत साधुओं की जम्मात नगर में आई।
साधु ने भगवान नरसिंह की प्रतिमा की भेंट :
तात्कालीक शक्तावत राजपरिवार ने उस पूरी जम्मात की अच्छे से आव भगत सेवा सुश्रूषा की। जम्मात के एक तपस्वी साधु ने प्रसन्न होकर भगवान नृसिंह की चमत्कारिक अद्भुत प्रतिमा भेंट की और कहा राजन् यह प्रतिमा अद्भुत अलौकिक हैं इसे हम रामेश्वरम् से लाए हैं, यह प्रतिमा पानी में तैरती है और विशेष नदी के बहाव के विपरीत दिशा में ही यह तैरती हैं। इसे नगर की सुख समृद्धि व वर्ष के शुभ संकेत जानने हेतु डोल ग्यारस को 3 बार ही तैराना नहीं तो, प्रतिमा विलुप्त हो सकती हैं। साधु की आज्ञा को शिरोधार्य कर राजा ने गढ़ी में भगवान नृसिंह का मंदिर बनाकर प्रतिमा को स्थापित किया और प्रतिवर्ष डोल ग्यारस पर नीलकंठ बावड़ी की नदी में प्रतिमा को पुजा-अर्चना कर डोल सजाकर, उसमें बीठाकर 3 बार तैराना प्रारम्भ कर उस प्रकिया को आगामी वर्षों में भी जारी रखा।
गढ़ी पर अंग्रेजों ने किया आक्रमण
162 वर्ष पूर्व कार्तिक बिदी नवमी बुधवार विक्रम संवत 1914 अंग्रेजी सन् 1857 को अंग्रेजों ने गढ़ी पर आक्रमण किया, लेकिन गढ़ी मजबूत होने से अंग्रेज़ पस्त हो गए और राजा के विश्वस्त नौकर को मिलाकर कमजोरी जान गढ़ी को तोप से ध्वस्त की। भयंकर युद्ध में राजपूत रणबांकुरों ने विदेशी सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया, परंतु कुछ जयचंदों की वजह से अंग्रेजों को सफलता प्राप्त हुई। गढ़ी के ध्वस्त होने के पश्चात अंग्रेजों ने तात्कालीक बागली राजा को हाटपीपल्या जागीर की व्यवस्था संभालने को दी और लोगों ने नगर में एक मंदिर बनाकर भगवान नृसिंह की प्रतिमा को स्थापित किया और प्रतिवर्ष डोल ग्यारस पर तैराना प्रारम्भ रखा।
3 बार की जगह प्रतिमा को 4 बार तैराया :
एक बार डोल ग्यारस के दिन बागली के ठाकुर साहब की जिद करने पर प्रतिमा को चौथी बार तैराने का प्रयास किया गया, तो प्रतिमा पानी के अंदर ही विलुप्त हो गई तथा 2 माह के लगभग पुजारी को स्वप्न में दर्शन हुए कि, दो मील दूर सेंधला नदी में तैरती हुई दृष्टिगोचर हुई। पुजारी ने स्वप्न की चर्चा नगरवासीयों व बागली नरेश के समक्ष कहीं, फिर समस्त नगरवासी व ठाकुर साहब गाजे-बाजे के साथ प्रतिमा को आदर श्रद्धा से हाथी पर बैठाकर लाए और मंदिर में विराजित किया। उसके कुछ वर्ष पश्चात किन्हीं कारणों से प्रतिमा 3 भागों में विभक्त हो गई और उसे पुजारी द्वारा किसी स्वर्णकार से चांदी के तार से बंधवाया गया, कुछ दिनों पश्चात प्रतिमा पूर्ववत हो जुड़ गई और तार विलुप्त हो गया।
डोल ग्यारस के 2 दिन पहले नदी मेंं पानी नहीं :
इसी प्रकार सन् 1991 मे डोल ग्यारस के 2 दिन पहले तक नदी मेंं पानी नहीं था, लेकिन अचानक दशमी की रात्री मे तेज बारिश हुई, जिससे नदी में पानी भर गया तथा 2005 में भी नदी का यहीं हाल था, लेकिन दशमी पर बारिश होने से नदी में पानी आ गया। इस वर्ष भी हाटपीपल्या व आसपास के क्षेत्र में कम वृष्टी से कृषक व आमजन परेशान हैं, परंतु जैसे- जैसे डोल ग्यारस का समय नजदीक आ रहा हैं, भगवान नृसिंह से सभी लोगों की कामना हैं कि, जिस प्रकार आपने सदैव नगर पर आशीष रखा, ऐसे ही रखकर वर्षा रुपी अमृत बरसाओ, ताकि नगरवासीयों की आस्था-श्रद्धा में अगाध बढ़ोत्तरी निरंतर होती रहे।
कई बातें प्रतिमा को चमत्कारिक होने की पुष्टि करते है :
प्रतिमा विलुप्त व 3 भागों में विभक्त होने के पश्चात बहाव के विपरित न बहकर बहाव के साथ ही बहती हैं।
यह पाषाण प्रतिमा साढ़े 7 किलो वजनी ठोस पत्थर की हैं।
इसे प्रत्यक्ष पानी में तैरते हुए देखने हेतु हजारों की संख्या मे दूरदराज तक के श्रद्धालुजन आते हैं।
प्रतिमा नदी में 3 बार तैराई जाती है।
आमधारणा हैं कि, प्रतिमा तीनों बार पानी मे तैरती हैं तो आगामी वर्ष सुखद रहेगा।
2 बार तैरने पर वर्ष के 8 माह सुखद रहते हैं।
एक बार ही तैरने पर वर्ष साधारण रहेगा।
अगर प्रतिमा तीनों बार डूब जाये, तो वर्ष अनिश्चितताओं से गुजरेगा।
कब मनाया जाता हैं डोल ग्यारस पर्व :
शास्त्रानुसार डोल ग्यारस पर्व भादौ मास के शुक्ल पक्ष के 11 वें दिन मनाया जाता है, कृष्ण जन्म के 11 वें दिन माता यशोदा ने उनका जलवा पूजन किया था, इसीलिए इस दिन को डोल ग्यारसके रूप में मनाया जाता है।
प्राचीन नृसिंह मंदिर देश का एकमात्र मंदिर :
बताते चले कि, प्राचीन नृसिंह मंदिर देश का एकमात्र मंदिर है, जिसमें गायत्री त्रिपदा स्थापित हैं, जो पूरे भारत मे कहीं नहीं है। पर्व के दिन समस्त नगरवासी स्थानीय नृर्सिंह मंदिर व लक्ष्मीनारायण मंदिर, सत्यनारायण मंदिर, राधाकृष्ण मंदिर, श्रीराम मंदिर, श्री कृष्ण मंदिर आदि मंदिरों के डोल निकालकर स्थानीय डॉक्टर मुखर्जी चौक पर आते है। वहीं से बैंड बाजे एवं ढोल ढमाको के साथ नृसिंह घाट तक प्रतिमा को ले जाते है, नृसिंह घाट पर शाम 5 बजकर 30 मिनिट पर सभी मंदिरों के डोल पहुंचने के पश्चात मंदिर के पुजारी द्वारा नदी मे स्नान कर मंगल मंत्रोच्चार के पश्चात प्रतिमा को नदी के जल में छोड़ा जाता हैं, जो प्रायः 7-8 फुट की सतह तक तैरती हैं। इस दृश्य को देखकर श्रद्धालुओं की धार्मिक भावना देखते ही बनती है, पूरा घाट नृसिंह मय हो भगवान नृसिंह के जयकारे लगाता हैं।
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