Special Story: MP का जलियांवाला बाग-वो जगह जहां अंग्रेजों ने तब तक गोली चलाई जब तक नदी का पानी लाल नहीं हो गया
हाइलाइट्स :
92 साल पहले हुआ था मध्यप्रदेश में नरसंहार।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के पक्ष में हो रही थी सभा।
अंग्रेज अफसर फिशर के आदेशों पर हुआ था नरसंहार।
Charan Paduka Tragedy Of Madhya Pradesh: राजएक्सप्रेस। तारीख थी 14 जनवरी साल 1931 उस समय के मध्य भारत और वर्तमान मध्यप्रदेश के छतरपुर (Chhatarpur) में एक छोटे से गांव सिंहपुर (Singhpur) के चरण पादुका नामक स्थान पर आम सभा आयोजित की जा रही थी। इस चरण पादुका स्थान के पास में ही एक उर्मिला नदी बहती है । चरण पादुका (Charan Paduka) में हो रही सभा का मुख्य विषय महात्मा गांधी (Mohandas Karamchand Gandhi) द्वारा देश में अंग्रेजों के विरुद्ध चलाया जा रहा सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) था। देश की आजादी में किस तरह सहयोग दिया जा सकता है अभी इसकी रणनीति तय हो ही रही थी कि, अचानक से हाथों में बंदूक लिए अंग्रेज अफसर यहां पहुंचे और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। अंग्रेज फौज ने तब तक गोलियां चलाई जब तक उर्मिला नदी (Urmila River) का पानी लाल नहीं हो गया। यह कार्रवाई इतनी तीव्रता से हुई कि, किसी को भी भागने का मौका नहीं मिला। आधिकारिक रिकॉर्ड बताते हैं कि यहां 21 लोगों की मौत हुई थी ,लेकिन मरने वालों की संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है यह घटना मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के जलियांवाला बाग के नाम से जानी जाती है। आइए जानते हैं स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मध्यप्रदेश के जलियांवाला बाग नरसंहार के बारे में विस्तार से...
सबसे पहले जानते हैं कि, क्यों चरण पादुका में हुए नरसंहार को मध्य प्रदेश का जलियांवाला बाग कहा जाता है:
13 अप्रैल साल 1919 यानी चरण पादुका (Charan Paduka) में हुए नरसंहार से 12 साल पहले पंजाब के अमृतसर में बैसाखी के दिन लोग आम सभा के लिए जलियांवाला बाग (Jallianwala Bagh) में एकत्रित हुए। इस सभा के बारे में सुनते ही जनरल डायर (General Reginald Edward Harry Dyer) अन्य अंग्रेज अफसरों और सैनिकों के साथ सभा स्थल पर पहुंचा और तब तक गोलियां चलाई जब तक बंदूक की गोलियां खत्म नहीं हो गई। इस घटना में सैकड़ो लोगों की मृत्यु हुई। चरण पादुका नरसंहार (Charan Paduka Massacre) भी इस घटना से मेल खाता है इस कारण इसे मध्यप्रदेश का जलियांवाला बाग कहा जाता है।
अब जानते हैं चरण पादुका में अंग्रेजों द्वारा किये गए नरसंहार के बारे में विस्तार से...।
गोलियां चली और बदल गया उर्मिला नदी के पानी का रंग :
चरण पादुका में लोग गांधीवाद का पालन करते हुए अहिंसात्मक (Nonviolent) तरीके से अंग्रेजी हुकूमत की अनुचित कर (TAX) नीति पर चर्चा कर रहे थे, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत को यह अहिंसात्मक सभा भी बर्दाश्त नहीं हुई। उस समय के ब्रिटिश अधिकारी फिशर (Fisher) अपने हथियार बंद सैनिकों के साथ वहां पहुंचा और जनता पर अंधाधुंध गोलियां चलाना शुरु कर दी। इस सभा में मासूम बच्चे और महिलाएं भी शामिल थी। जान बचाने के लिए कुछ लोगों ने उर्मिला नदी (Urmila River) में छलांग लगा दी, लेकिन अफसोस उनमें से कई लोगों की जान तो नदी में डूबने से ही चली गई। इस नरसंहार के बाद नदी का पानी लाल हो गया। जिससे साफ़ जाहिर है कि, मरने वालों की संख्या बताए गए आंकड़ों से अधिक रही होगी।
भुला दिया गया है मध्यप्रदेश के जलियांवाला बाग हत्याकांड को :
आंकड़े कहते हैं कि चरण पादुका नरसंहार में 21 लोगों की मौत हुई और 24 लोग गंभीर रूप से घायल हुए, लेकिन स्थानीय लोगों का मानना है कि उस दिन सैकड़ों की संख्या में लोग मारे गए थे। चरण पादुका नरसंहार में ब्रिटिश अफसर फिशर द्वारा चलाई गई गोलियों से पिपट के सेठ सुंदरलाल वरोहा, चिरू कुर्मी, हल्काई अहीर और ऐसे कई वीर देश के लिए शहीद हुए थे जिनके नाम तक ज्ञात नहीं है। आजादी के बाद भी देश में पंजाब जलियांवाला बाग की तो खूब चर्चा की जाती है, लेकिन चरण पादुका नरसंहार पर चर्चा कम होती है। यहां चरण पादुका में शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक शहीद स्मृति स्तंभ भी बनाया गया है।
मध्यप्रदेश के आदिवासियों की जंगल और जमीन के संघर्ष की लड़ाई के बारे में विस्तार से जानने के लिए यह पढ़े।
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