वसुधैव कुटुम्बकम के आधार पर बनेगा नया पाठयक्रम
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BIG STORY: वसुधैव कुटुम्बकम के आधार पर बनेगा नया पाठयक्रम, गर्भ से होगा बच्चे में भाषा का विकास

नई शिक्षा नीति में नवाचारों के साथ बच्चों का सर्वागीण विकास होना है। नतीजतन अब इस नीति के अनुसार पहली से आठवीं तक का नवीन पाठयक्रम तैयार हो रहा है।
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भोपाल। प्रदेश में सत्रह साल बाद तैयार होने जा रहा नवीन पाठ्यक्रम वसुधैव कुटुम्बकम पर आधारित होगा। पुस्तकें ऐसी प्रकाशित होंगी, जिनमें मां के गर्भ से ही बच्चों में भाषा का विकास करने की विषय वस्तु शामिल की जाएगी। इसके लिए चुनिंदा शिक्षाविदों और अभिभावकों के सुझाव लिए गए हैं। अब इन्हें भारत सरकार की राष्ट्रीय पाठ्यचर्य समिति को भेजा जा रहा है।

राज्य शिक्षा केद्र का कहना है कि वर्ष 2005 में नेशनल कैरीकुलम फ्रेमवर्क (NCF) यानि राष्ट्रीय पाठ्चयर्या रूपरेखा को तैयार किया गया था। अब नई शिक्षा नीति में नवाचारों के साथ बच्चों का सर्वागीण विकास होना है। नतीजतन अब इस नीति के अनुसार पहली से आठवीं तक का नवीन पाठयक्रम तैयार हो रहा है। अधिकारियों के अनुसार प्रदेश में 85 हजार प्राथमिक और माध्यमिक शालाएं हैं। भारत सरकार ने एनसीएफ ड्राफ्ट में मप्र से सुझाव मांगे थे कि बच्चों का सर्वांगीण विकास करने के लिए क्या नया किया जा सकता है। इसके लिए शिक्षा विभाग की इकाई राज्य शिक्षा केन्द्र ने कल्चरल एवं सोशल पार्टिसिपेशन के आधार पर सुझाव लिए हैं।

इस महत्वपूर्ण प्रक्रिया में 80 शिक्षाविदों ने अपने सुझाव प्रस्तुत किए हैं। इसके अलावा करीब सवा सौ बच्चों के अभिभावक एवं समाज की अन्य विद्याओं के लोगों के सुझावों को शामिल किया गया है। इन्हें भारत सरकार के पास भेजा जा रहा है। अधिकारियों का कहना है कि इन सुझावों को भारत सरकार की एनसीएफ कमेटी परीक्षण करेगी। इसके बाद स्टेट कैरीकुलम फे्रमवर्क (राज्य पाठयचर्या रूपरेखा) बनाई जाएगी। उसी के आधार पर अगले शिक्षण सत्र से पुस्तकों का प्रकाशन होगा।

ड्राफ्ट में यह सुझाव किए गए शामिल

राज्य शिक्षा केन्द्र का कहना है कि कल्चरल एण्ड सोशल पार्टिसिपेशन के आधार पर द स्प्रिट ऑफ वसुधैव कुटुम्कब यानि हम आत्मा से कहें कि समूचा संसार इस पृथ्वी पर एक है। बच्चों में एक दूसरे के प्रति सीखने और सिखाने की समझ विकसित होना चाहिए। माता-पिता का बच्चों के साथ सकारात्मक व्यवहार होना चाहिए। बच्चे पहले सुनना सीखें। फिर बोलना और इसके बाद उन्हें लिखने की समझ सिखानी होगी।

मां के गर्भ से हो बच्चों का भाषा विकास

शिक्षाविदों ने एक सुझाव यह भी रखा कि बच्चों में भाषा का विकास मां के गर्भ से ही हो। यह तर्क आए कि मौजूदा युग में एकल परिवारों की परंपरा बढ़ रही है। इस कारण अधिकांश बच्चे दादा-दादी और नाना-नानी के साथ अपना परंपरागत ज्ञान नहंी ले पाते हैं। तब पाठयक्रम में ऐसी विषय वस्तु शामिल हो, जिससे गर्भ धारण करने के बाद माता अच्छा सोचे और अच्छा बोले। इसके अलावा नवीन पाठयक्रम में अकेले शिक्षकों को प्रशिक्षण नहीं मिलेगा। बच्चों को अच्छा नागरिक बनाने के लिए उनके अभिभावकों की भागीदारी तय होगी। उन्हें भी शिक्षकों की तरह प्रशिक्षित किया जाएगा।

इनका कहना है

भारत सरकार ने सभी राज्यों की तरह मप्र से यहां के दृष्टिकोण पर आधारित सुझाव मांगे हैं। इसके लिए जो सुझाव आए हैं। उसका पूरा ड्राफ्ट तैयार कर भारत सरकार को भेजा जा रहा है।

धनराजू एस, संचालक, राज्य शिक्षा केन्द्र

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