Bhopal : सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल केंद्रीय जेल में बंद सिमी के मददगारों को दी जमानत

भोपाल, मध्यप्रदेश : 24 दिसंबर 2013 को खंडवा जेल ब्रेक कर भागे सिमी के कार्यकर्ताओं को शरण देने और उनकी सहायता करने वाले आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट ने राहत देते हुए जमानत दे दी।
सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल केंद्रीय जेल में बंद सिमी के मददगारों को दी जमानत
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भोपाल, मध्यप्रदेश। खंडवा जेल ब्रेक कर भागे सिमी के कार्यकर्ताओं को शरण देने और उनकी सहायता करने के आरोप में सिमी सदस्यों के साथ भोपाल की केंद्रीय जेल में बंद चार आरोपियों शोलापुर महाराष्ट्र निवासी सादिक, इस्माईल , इरफान मुछाले और उमर दंडोती को सुप्रीम कोर्ट ने राहत देते हुए जमानत पर रिहा किए जाने के आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गुरुवार को अपर सत्र न्यायाधीश रघुवीर सिंह पटेल की अदालत में आरोपियों की ओर से उनके वकील फैजान हुसैन ने जमानत के दस्तावेज पेश किए। दस्तावेज की तस्दीक के बाद अदालत ने आरोपियों को जेल से रिहा किए जाने के लिए जेल अधीक्षक को रिहाई आदेश जारी कर दिए। जिला अदालत से रिहाई आदेश जारी होने के बाद जेल प्रबंधन ने आरोपियों को रिहा कर दिया।

मामले के अनुसार 24 दिसंबर 2013 को खंडवा जेल ब्रेक कर भागे सिमी के कार्यकर्ताओं को शरण देने उनकी सहायता करने के आरोप में एटीएस ने इन आरोपियों को गिरफ्तार किया था। यह सभी 28 अन्य सिमी सदस्यों के साथ भोपाल जेल में बंद हैं।

20 मार्च 2014 को एटीएस ने तत्कालीन सीजेएम की अदालत में आवेदन पेश कर आरोपियों के मामले में चालान पेश किए जाने के लिए मोहलत दिए जाने और आरोपियों की न्यायिक हिरासत की अवधि को 90 से बढ़ाकर 180 दिन किए जाने की मांग की थी। सीजेएम ने एटीएस के आवेदन को मंजूर कर आरोपियों की न्यायिक हिरासत की अवधि को 90 से बढ़ाकर180 दिन दिया था। 90 दिनों की हिरासत पूरी होने पर इन संदिग्ध आरोपियों ने इस आधार पर जमानत के लिए आवेदन किया कि जांच एजेंसी ने इस अवधि के भीतर आरोप पत्र दायर नहीं किया। इस पर कोर्ट ने उनकी याचिका और उसके बाद की अपीलों को वर्ष 2015 में खारिज कर दिया था। इस पर आरोपियों ने हाईकोर्ट का रुख किया। हाईकोर्ट ने राहत देने से इनकार करते हुए हुए कहा कि सीजेएम भोपाल के द्वारा सही आदेश पारित किए गए हैं। हाईकोर्ट ने भी इनकी सभी याचिकाएं रद्द कर दी थीं। इस पर उनके वकील सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि सीजेएम भोपाल द्वारा रिमांड के लिए दिया गया फैसला उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर था। शीर्ष अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद चारों आरोपियों को जमानत की राहत का हकदार मानते हुए उन्हें जमानत देने का फैसला सुनाया।

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