बसनिया बांध विरोध
बसनिया बांध विरोधSyed Dabeer Hussain - RE

क्यों हर बार आदिवासी समाज चुकाता है विकास की कीमत? जानिए बसनिया बांध के विरोध के बारे में...

मध्यप्रदेश: मंडला और डिंडोरी के आदिवासी समुदाय बसनिया बांध को लेकर विरोध कर रहे हैं। उन्हें बरगी बांध की वजह से विस्थापन का डर सता रहा हैं।
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राज एक्सप्रेस। बसनिया, मध्यप्रदेश के मंडला जिले का एक ऐसा क्षेत्र जो भारतीय संविधान के पांचवे अनुसूची के अंतर्गत आता है, क्योंकि यह एक आदिवासी बहुल इलाका है जहां 95% आदिवासी समुदाय रहता हैं। लेकिन इस जगह में अभी काफी उथल पुथल का माहौल बना हुआ है क्योंकि बसनिया इलाके के घुघरी तहसील के ओढारी गांव में जो नर्मदा नदी है उसमे एक बांध को बनाया जा रहा है, जिससे उस इलाके के 31 गांव के पानी में डूबने की आशंका है और लगभग 2700 परिवारों को अपना घर, जमीन, काम काज छोड़कर कही दूसरी जगह विस्थापित किए जाने का अनुमान हैं।

इस इलाके की बसनिया ओढारी बांध विरोधी संघर्ष समिति बांध के निर्माण को रोकने के लिए महीनो से विरोध कर रही है, यही नहीं उन्होंने मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी दिया और तो और जो सर्वे टीम बांध के इलाके का सर्वे करने आई थी उसे भी बंदी बनाया था ताकि सरकार उनकी बात को माने। लेकिन क्या है बसनिया बांध, क्यों है इस बांध को लेकर विरोध, क्या है मध्यप्रदेश में आदिवासी समुदाय की स्थिति, किस कंपनी को दिया गया है बांध बनाने का ठेका और सबसे अहम सवाल क्यों हमेशा आदिवासी बहुल इलाकों को चुकानी पड़ती है विकास की कीमत? आइए देखते है..

क्या है बसानिया बांध प्रोजेक्ट?

बसानिया बांध परियोजना एक 100 MW जल विद्युत परियोजना है। इस बांध परियोजना की घोषणा साल 2012 में की गई थी। इसके साथ इस इलाके में दो और बांध भी प्रस्तावित है। यह बांध मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी बेसिन पर योजनाबद्ध है। परियोजना वर्तमान में घोषित चरण में है। इसे सिंगल फेज में विकसित किया जाएगा। परियोजना का निर्माण 2024 में शुरू होने की संभावना है और 2026 में वाणिज्यिक संचालन में प्रवेश करने की उम्मीद हैं। 3700 करोड़ की लागत से बनने वाली बसानिया बांध से 8780 हैक्टेयर में सिंचाई और 100 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन होना प्रस्तावित है। इस बांध से 18 गांव मंडला और 13 गांव डिंडोरी जिले के प्रभावित होने वाले है। बांध में कुल 6343 हैक्टेयर जमीन डूब में आएगी। जिसमें 2443 हैक्टेयर निजी भूमि,1793 हैक्टेयर शासकीय भूमि और 2017 हैक्टेयर वन भूमि शामिल है।

क्यों हो रहा है बसनिया बांध का विरोध?

मंडला जिले की ओढ़ारी गांव में नर्मदा नदी पर प्रस्तावित बसानिया बांध जिसके चलते मंडला और डिंडौरी जिले के लगभग 31 आदिवासी बाहुल्य गांव डूब क्षेत्र में आएंगे और 2,700 से अधिक परिवार विस्थापित होंगे। मंडला जिले में तीन बांध- बसानिया, रोसरा और राघवपुर प्रस्तावित किए गए हैं, लेकिन इन बांधों में आदिवासी समुदाय की जमीन, प्राकृतिक संसाधन और निजी संपत्ति डूब जाएगी इसलिए वे इसका विरोध कर रहे हैं।

इलाके के आदिवासियों ने सरकार और बांध के निर्माण के खिलाफ मुहिम छेड़ दी है। आदिवासी समूहों को अपनी आजीविका के संकट का भी भय सता रहा है। लोगों को यह भी डर है कि जिस तरह बरगी बांध विस्थापित परिवारों के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक न्याय और संवैधानिक मूल्यों का हनन हुआ, कहीं वैसी ही दशा उनकी न हो जाए।

विरोध कर रहे आदिवासी और ग्रामीण लोगों ने सूबे के मुख्यमंत्री के नाम भी ज्ञापन जिला कलेक्टर के ऑफिस में भेजा है, जिसमे सरकार ने साल 2021 में विधानसभा सदन में कहा था कि इस बांध पर रोक लगाई जाएगी लेकिन ऐसा हो ना सका हैं। ग्रामीणों का कहना है कि किसी भी हाल में बसनिया बांध का निर्माण नहीं होने देंगे।

ग्रामीणों के विरोध के बाद भी परियोजना को निरस्त नहीं किया जा रहा है, जिससें ग्रामीणों में भारी आक्रोश पनप रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि ओढारी में बनने वाले बसनिया बांध के सबंध में ग्राम सभा में कोई चर्चा नहीं की गई। जबकि मंडला पांचवी अनुसूची में आता है जहां पेसा कानून अधिसूचित है।

याद आया बरगी बांध के बनने का समय

बरगी बांध, जिसे रानी अवंती बाई सागर सिंचाई परियोजना के रूप में भी जाना जाता है, मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी पर बनने वाला पहला प्रमुख जलाशय था। इससे 4.37 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई और 105 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन की उम्मीद थी। नर्मदा नदी पर जल आपूर्ति के लिए बरगी बांध जो कि नर्मदा नदी पर बनने वाले 30 प्रमुख बांधों की श्रृंखला में से एक था उसमे हजारों लोग विस्थापित किए गए थे।

सरकारी रिकॉर्ड और पुनर्स्थापित गांवों के निवासियों के साक्ष्य दिखाते हैं कि सरकार ने न केवल उनके विस्थापन के समय लोगों के पुनर्वास को नजरअंदाज किया, बल्कि 34 वर्षों तक उन्हें लगभग भूल भी गये। अब मंडला और डिंडोरी जिले के आदिवासी समुदाय को भी इसी बात का डर सता रहा है कि सरकार उनको विस्थापित करने के बाद भूल जाएगी।

आदिवासी समुदाय को चुकानी होती है विकास की कीमत

भारत में हीराकुंड, भाखड़ा, और कई अन्य बांध परियोजनाओं से विस्थापित हुए आदिवासी अभी भी परियोजना के चालू होने के समय उनसे किए गए वादे के मुताबिक मामूली मुआवजा पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। महिलाओं के लिए ग्राम्य संसाधन केंद्र द्वारा किया गया एक अध्ययन भारत में बांध परियोजनाओं से संबंधित मुआवजे के टूटे वादों के कई समान उदाहरण प्रदान करता है। बरगी बांध के अधिकांश विस्थापित किसानों ने उस पैसे से रिक्शा खरीदे हैं और अन्य बड़ी बांध परियोजनाओं के विस्थापितों में से कई मजदूर बन गए हैं।

हीराकुंड बांध के विस्थापितों का भी कुछ ऐसा ही अनुभव है। सांस्कृतिक उत्तरजीविता की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि कई विस्थापितों को पर्याप्त भूमि नहीं दी गई है। कई अन्य को खंडित या भारग्रस्त भूमि दी गई है। अधिकांश साइटों में पर्याप्त पेयजल या स्वच्छता या स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं। किसी भी पुनर्वास स्थल में चारागाह, चारा या जलाऊ लकड़ी की सुविधा नहीं है।

मध्यप्रदेश सरकार ने भी दिया है आदिवासी समुदाय के विकास पर ध्यान

आदिवासी समुदाय राज्य की आबादी का पांचवां हिस्सा बनाता है जिसके लिए मध्यप्रदेश की सरकार ने आदिवासी समुदाय को ध्यान में रखते हुए कई सराहनीय काम भी किए है, जैसे कि 'मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना' के तहत सरकार मध्यप्रदेश के युवाओं में उद्यमशीलता और नवाचार की भावना को बढ़ावा दे रही है। यह योजना 18 से 40 वर्ष के आदिवासी युवाओं के लिए अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने के लिए एक सुनहरा अवसर प्रदान करती है। इस योजना के तहत राज्य सरकार दो करोड़ तक के कर्ज पर सब्सिडी देती हैं। इस योजना के सफल कार्यान्वयन से आदिवासी समुदाय का आर्थिक रूप से उत्थान होगा और वे अपने पैरों पर खड़े होने में सक्षम होंगे।

मध्यप्रदेश सरकार ने आदिवासियों के लिए एक मजबूत स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे का निर्माण कराया है। केंद्र सरकार की वित्तीय सहायता से श्योपुर और मंडला के आदिवासी बहुल जिलों में नए मेडिकल कॉलेजों का निर्माण शुरू कराया गया था। 15 नवंबर, 2021 को इसने रक्त संबंधी बीमारियों जैसे सिकल सेल एनीमिया, थैलेसीमिया, हीमोफिलिया के खतरे को रोकने के लिए हीमोग्लोबिनोपैथी मिशन की शुरुआत की। यह मिशन आदिवासी लाभार्थियों को ऐसी किसी भी बीमारी का मुफ्त इलाज मुहैया कराएगा।

सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा, भारिया और सहरिया की दो लाख 25 हजार महिलाओं के लिए पर्याप्त पोषण लगातार सुनिश्चित कर रही है। इस दिशा में पिछले 16 माह में सीधे उनके खातों में 394 करोड़ रुपये से अधिक की राशि जमा की है।

आदिवासी समुदाय मध्य प्रदेश का अभिन्न अंग रहा है। उनके योगदान का सम्मान करने के लिए, राज्य सरकार ने 15 नवंबर 2020 को महान स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी आइकन भगवान बिरसा मुंडा के जन्म के सम्मान में 'जनजाति गौरव दिवस' मनाने के लिए समर्पित किया। मध्यप्रदेश सरकार ने भी 4 दिसंबर 2021 को बलिदान दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। इस दिन राज्य टंट्या मामा के बलिदान का जश्न मनाएगा, जिन्हें इंडिया रॉबिनहुड के नाम से भी जाना जाता है।

मध्यप्रदेश सरकार और आदिवासियों के बीच यह खींचतान काफी समय से चलती आ रही है एक तरफ सरकार की मंशा है कि बांध बनाकर उन गांव तक पानी पहुंचाया जाए जो आज भी पीने के पानी या खेती के लिए पानी जैसे जरूरी चीजों से वंचित है तो वहीं आदिवासी समुदाय अपने जन, जीवन और जंगल की रक्षा और पिछले बार के बरगी बांध के डर के कारण बांध का विरोध कर रहा है। मामले का हल अभी तक नहीं निकला है और आगे भी हंगामे की आशंका जताई जा रही हैं।

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