रेत माफियाओं का बढ़ता प्रकोप, जीवनदायिनी नदियों का अस्तित्व खतरे में

बरही, कटनी। जीवनदायिनी का अस्तित्व खतरे में डाल रहा बिष्टा, संपूर्ण कटनी जिले में इन दिनों रेत को लेकर कई विसंगतियां पाई जाती हैं।
रेत माफियाओं का बढ़ता प्रकोप
रेत माफियाओं का बढ़ता प्रकोपअजय वर्मा
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बरही, कटनी। कहने को तो नदियों को जीवनदायिनी का दर्जा दिया गया है लेकिन जीवनदायिनी का अस्तित्व ही खतरों से घिरा पड़ा हुआ है। संपूर्ण कटनी जिले में इन दिनों रेत को लेकर कई विसंगतियां पाई जाती हैं। गरीब तबके के लोगों तक तो रेत पहुंचाना सोना खरीदने जैसा हो गया है। कई ग्रामीण इलाकों में तो रेत के कारण झगड़े भी आये दिन देखने को मिलते हैं। इन दिनों कटनी जिले में सबसे आगे निकल गया रेत का खेल! कहने को तो दबंग कंपनी यानी बिष्टा कंपनी के आगे जिला क्या प्रदेश के मुखिया की तूती बोलती है। देश व क्षेत्र के लोगों की नजर में रेत के खदानों की नीलामी हुई है और नीलामी या लाइसेंसी रेत का कारोबार पूरे कटनी जिले में चल रहा है परन्तु शासन और प्रशासन की आंखों में गुलाबी नंबर का चश्मा लगा बिष्टा कंपनी रेत का खेल कर रही है। ग्रामीणों का आरोप है कि बिष्टा कंपनी की लीज जिस क्षेत्र में है उस क्षेत्र से रेत निकाल चुकी है एवं उस क्षेत्र में रेत की निकासी न कर, नदी के दूसरे क्षेत्रों से रेत निकासी कर रही है। बहिरघटा, जाजागढ़ जैसी कई खदानें ऐसी हैं जिसमें खदान कहीं, रेत कहीं से निकाली जा रही है। यहां तक की सबसे बड़ा घोटाला जाजागढ़ खदान की पीपही नदी में चल रहा है। वहां के चश्मदीद लोगों का कहना है कि जंगल के इलाके से भी अधिकाधिक मात्रा में रेत निकाल कर जंगल को भी कई प्रकार से नुकसान पहुंचाया जा रहा है, जिसके कारण वहां के जंगली जानवरों का भी आस्तित्व खतरे में दिखाई पड़ने लगा है।

रेत का खेल, अधिकारियों का मेल, क्या होगी जेल ?

रेत के खेल में जीवनदायिनी की संरचना को ही नष्ट करने में आतुर रेत के खिलाड़ी। प्रकृति की अद्भुत संरचना, पहाड़, जंगल, झरने, मैदान, जंगल आदि पर सरकारी पैसा व जनता का जनता के लिये बनाये गये शासन-प्रशासन की कोई कीमत नहीं। रेत के ठेकेदार इन अमूल्य धरोहरों की कीमत कर देश का खजाना तो नहीं, पर अपना पेट जरूर भरते नजर आ रहे हैं। मजेदार बात तो यह है कि इन रेत के बड़े खिलाड़ियों के खेल में बड़े बड़े अधिकारियों का भी मेल होता है, जो कि खूबसूरत प्रकृति की रचना का संघार कर, तहस-नहस कर रहे हैं। रेत निकासी के नियम कानून सिर्फ दिखावे के लिये होते है जिन पर बिष्टा जैसी बड़ी कंपनी अपने सारे नियम कानून चलाती हैं एवं शासन प्रशासन को अपनी जेब में रखकर नदियों और जंगल की सूरत बदल रहे हैं। बफर जोन और वन परिक्षेत्र अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ कर वन परिक्षेत्र व बफर जोन से रेत का खेल करवा रहे हैं जो नियम विरुद्ध है। ग्रामीणों का कहना है कि गरीब वर्ग यदि कहीं से किसी भी प्रकार अपने उपयोग के लिये रेत का परिवहन करता है तो उसे बिष्टा कंपनी के गुण्डों के द्वारा पकड़ कर वाहन जप्ती/राजसात व जेल जैसी कार्यवाही का करवाती है, तो क्या शासन और प्रशासन द्वारा लीज में दी हुई खदान से ही रेत निकासी न करने वाले ठेकेदार पर भी यही नियम कानून लागू होंगे ? यदि हां तो जाजागढ़ व बहिरघटा नदी के क्षेत्रफल की जांच निष्पक्ष कर दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही की जावे।

पिटपास का खेल, कोई पास कोई फेल-

रेत के खेल में माहिर हो चुकी बिष्टा कंपनी का यह खेल बहुत दिनों से चल रहा है कि है कि बिष्टा कंपनी की रेत कहीं से तो उसका पिटपास किसी दूसरे खदानों के नाम दी जाती है। जिसके कारण सरकार को लाखों करोड़ों का चूना लगाया जा रहा है। इसकी जांच करने के लिये किसी भी अधिकारी व जवाबदार के पास समय नही है, जो गूंगे, बहरे, अंध कपट बने हुए हैं यदि सही जांच कि जाये तो प्रतिदिन सरकार को लाखों का राजस्व चूना लगाया जाता है, बचाया जा सकता है। यदि रेत के परिवहन में पारदर्शिता होती तो रात के अंधेरे में सैंकड़ो रेत लोड हाइवा वाहनों का हुजूम देखने को नही मिलता है। यूं तो रेत का परिवहन, ओवरलोड, पानी की बौछार लिये दिनभर देखने को मिलता है लेकिन रात्रि के समय इनकी संख्या में इजाफा इस कदर देखने को मिलता है जैसे बरसात के मौसम में काले कीड़े ।

इनका कहना है-

1. मामला राजस्व का है राजस्व के अधिकारी आकर सीमांकन कर जानकारी दे- गौरव सक्सेना( रेंजर वन विभाग बरही)

2.ग्रामीणों के द्वारा शिकायत करने पर जांच एवं कार्रवाई की जाएगी- सच्चिदानंद त्रिपाठी( तहसीलदार बरही)

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