भोपाल, मध्य प्रदेश। 2020 की वैश्विक भयावह महामारी कोविड-19 के संक्रमण को लोगों में फैलने से रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा लॉकडाउन आदेशित किया गया था। उस समय यह लोगों के कौतूहल और जिज्ञासा का विषय रहा कि काश हमारे पास हमारे देश की निर्मित वैक्सीन होती? आज हम सभी के लिए यह हर्ष, गर्व और पर्व का विषय है कि हमारे अपने देश में ही बनी हुई वैक्सीन अपने देशवासियों को लग रही है। इस उपलब्धि के लिए केन्द्र शासन, डॉक्टरों, वैज्ञानिकों और सहयोगी स्टाफ की अपार निष्ठा और कर्मठता से किया गया वैज्ञानिक शोधकार्य अत्यंत सराहनीय और प्रेरणास्पद है। यह एक अनमोल उपहार है उन न हारने वाले फ्रंट लाईन कर्म-योद्धाओं के लिए जिन्होंने कोरोना संक्रमण से लोहा लिया और लॉकडाउन को सफल बनाया। डॉक्टर, नर्स, वॉर्डबॉय और अन्य सहयोगी स्टाफ ने अपने प्राणों की परवाह किये बगैर लोगों के प्राणों की रक्षा की और उन्हें काल के गाल में समाहित होने से बचाया।
यहां यह एक भाव पूर्ण श्रद्धांजलि भी है उन कर्मशील, दानवीर और शूरवीर डॉक्टरों, पुलिसकर्मियों, नगर निगम एवं अन्य विभाग के कर्मियों के लिए जिन्होंने कर्तव्य की बलिवेदी पर अपने जीवन का बलिदान नि:स्वार्थ भाव से राष्ट्रहित में, गर्व के साथ दिया।
10.02.2021 को बड़ी ही उमंग और तरंग से मैंने भी स्वदेशी वैक्सीन (अनुपम उपहार) से अपना वैक्सीनेशन करवाया। वैक्सीनेशन करवाते समय मेरी खुशी और आंनद का ठिकाना नहीं था। मैं परम आंनद अवस्था में प्रवेश कर सभी डॉक्टर, नर्स, वॉर्डबॉय आदि को अपने हृदय की अनंत गहराईयों से कृतज्ञता ज्ञापित कर रहा था। जिस वैक्सीन का महीनों से इंतजार चल रहा था, उसे प्राप्त कर मैं उसी प्रकार नि:शब्द था , जिस प्रकार एक गूंगे व्यक्ति को गुड़ की डली खिलाई जाये तो वह उसके मीठे स्वाद को बोलकर प्रकट तो नहीं कर सकता परन्तु उस स्वाद को अपनी प्रसन्नचित्त भाव भंगिमाओं से व्यक्त कर सकता है। साथ ही यह स्थिति इसलिए बनी क्योंकि यह वैक्सीन स्वदेशी है और स्वदेशी होनहार काबिल, बुद्धिमान, डॉक्टारों एवं वैज्ञानिकों द्वारा निर्मित की गई। इससे कोविड-19 नामक वैश्विक महामारी परास्त और नेस्तनाबूद होगी। यहाँ भारत रत्न माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी, भूतपूर्व प्रधानमंत्री जी की सुप्रसिद्ध कविता-''मौत से ठन गई'' का भावार्थ स्वदेशी वैक्सीन की सफलता में भारत के डॉक्टरों एवं वैज्ञानिकों के अपार योगदान को रेखांकित करती है।
ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था ,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा ना था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा जिंदगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
जिन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
पार पाने का क़ायम, मगर हौसला,
देख तेवर, तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।
मौत से ठन गई।
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